रानी दुर्गावती: सच्ची वीरांगना की शहादत को नमन (24 जून)
रानी दुर्गावती: सच्ची वीरांगना की शहादत को नमन (24 जून)
संपादकीय
राणा संस्कृति मंजूषा की प्रस्तुति
Published by Naveen Singh Rana
रानी दुर्गावती, भारतीय इतिहास की एक अमर वीरांगना, जिनकी वीरता और साहस ने इतिहास के पन्नों में अमिट छाप छोड़ी है। उनका नाम सुनते ही आँखों के सामने एक ऐसी महिला की छवि उभरती है, जिसने अपने राज्य और सम्मान की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनके शहादत दिवस पर हम सभी को उनका स्मरण करना चाहिए और उनके बलिदान से प्रेरणा लेनी चाहिए।
16वीं शताब्दी में गोंडवाना राज्य की महारानी बनने वाली रानी दुर्गावती ने न केवल प्रशासन में उत्कृष्टता दिखाई, बल्कि युद्धक्षेत्र में भी अपनी वीरता का प्रदर्शन किया। उनके शासनकाल में गोंडवाना राज्य ने समृद्धि और शांति का अनुभव किया। उनकी प्रजा के प्रति उनका प्रेम और समर्पण अद्वितीय था।
रानी दुर्गावती का संघर्ष अकबर के साथ हुआ, जो उनके राज्य को अपने साम्राज्य में मिलाना चाहता था। अपने राज्य की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए उन्होंने बहादुरी से लड़ाई लड़ी। 24 जून 1564 को, जब मुगलों के साथ अंतिम संघर्ष हुआ, तो रानी दुर्गावती ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए मुगलों के सामने झुकने की बजाय शहादत को चुना।
उनकी शहादत केवल एक वीरांगना की बलिदान गाथा नहीं है, बल्कि यह एक संदेश भी है कि हमारे देश की धरती पर जन्मी महिलाओं ने सदैव ही साहस और बलिदान का परिचय दिया है। रानी दुर्गावती ने यह साबित कर दिया कि नारी शक्ति किसी भी चुनौती का सामना कर सकती है और अपने आत्मसम्मान और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।
आज रानी दुर्गावती के शहादत दिवस पर हमें उनके जीवन और उनके आदर्शों से प्रेरणा लेनी चाहिए। हमें यह याद रखना चाहिए कि उनका बलिदान हमारे लिए एक प्रेरणा स्रोत है और हमें उनके साहस, नेतृत्व और बलिदान को हमेशा स्मरण रखना चाहिए। उनके आदर्शों पर चलकर हम भी अपने समाज और देश की सेवा में योगदान दे सकते हैं।
रानी दुर्गावती को शत-शत नमन! उनकी शहादत को कोटि-कोटि प्रणाम!
राणा संस्कृति मंजूषा की प्रस्तुति