*प्रकृति की गोद में राणा थारू समाज: एक प्रेरणादायक कहानी**
**प्रकृति की गोद में राणा थारू समाज: एक प्रेरणादायक कहानी**
नवीन सिंह राणा की कलम से
ग्राम रामपुरा की हरी-भरी वादियों में बसा राणा थारू समाज अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध था। यहाँ के लोग मेहनती, खुशहाल और प्राकृतिक जीवन जीने में विश्वास रखते थे। मगर पिछले कुछ वर्षों में नशे की लत ने यहाँ की शांति को भंग कर दिया था। नशे के कारण कई परिवार बर्बाद हो चुके थे, बच्चे अनाथ हो गए थे, बूढ़े मां बाप बेसहारा और पत्नियाँ अपने बच्चों की परवरिश को लेकर चिंतित थीं।
इस समाज की एक बहादुर महिला, सुमित्रा, जो अपने गाँव में सुमी दीदी के नाम से मशहूर थी, ने ठान लिया कि वह इस नशे की समस्या से अपने समाज को मुक्त करेगी। सुमी दीदी के पति भी नशे की लत के शिकार हो चुके थे और कुछ साल पहले ही उनका निधन हो गया था। अपने पति के निधन के बाद सुमी ने अपने बच्चों और समाज को सँभालने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली।
एक दिन, सुमी दीदी ने गाँव के बीचों-बीच एक सभा का आयोजन किया। सभा का स्थान गाँव के सुंदर तालाब के किनारे चुना गया, जहाँ चारों ओर हरे-भरे पेड़ थे और पक्षियों की चहचहाहट से वातावरण संगीतमय था। इस प्राकृतिक सौंदर्य के बीच सुमी ने सभी को संबोधित करते हुए कहा, "हमारी यह धरती हमें सब कुछ देती है, और हम इसको बदले में क्या दे रहे हैं? नशे की लत ने हमारे जीवन को नष्ट कर दिया है। हमें इसे रोकने के लिए एकजुट होना होगा।"
सुमी दीदी ने नशे के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए। उन्होंने गाँव की महिलाओं और युवाओं को साथ लेकर 'नशामुक्ति अभियान' चलाया। हर सुबह गाँव के बच्चे और बुजुर्ग तालाब के किनारे इकट्ठा होते और सुमी दीदी के नेतृत्व में योग और ध्यान करते। प्रकृति की गोद में बिताया यह समय उनके जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मकता भर देता।
सुमी दीदी ने गाँव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हस्तशिल्प और कृषि आधारित प्रशिक्षण भी दिया। धीरे-धीरे गाँव की महिलाएँ आर्थिक रूप से मजबूत होने लगीं और उन्होंने अपने परिवार को नशे की गिरफ्त से बाहर निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए भी सुमी ने एक छोटा विद्यालय शुरू किया, जहाँ वे स्वयं पढ़ाने लगीं।
कुछ ही महीनों में, सुमी दीदी के प्रयासों ने रंग लाना शुरू कर दिया। गाँव में नशे की लत से पीड़ित लोगों की संख्या कम होने लगी और लोग एक बार फिर से अपने जीवन में खुशियों की बहार महसूस करने लगे। गाँव के बच्चे फिर से मुस्कुराने लगे, बूढ़े मां बाप का सहारा लौट आया और पत्नियाँ अपने बच्चों के साथ सुरक्षित और खुशहाल जीवन जीने लगीं।
सुमी दीदी के अथक प्रयासों से राणा थारू समाज ने नशे के खिलाफ जंग जीत ली। उनका यह प्रयास एक मिसाल बन गया और आसपास के गाँव भी इससे प्रेरित होकर नशामुक्ति अभियान में शामिल हो गए।
इस प्रकार, प्रकृति की गोद में बसे इस छोटे से गाँव ने अपनी खुशियों को वापस पा लिया। सुमी दीदी की मेहनत और समाज के लोगों की एकजुटता ने साबित कर दिया कि अगर हम ठान लें तो कोई भी मुश्किल हमारे रास्ते की दीवार नहीं बन सकती। आज रामपुरा गाँव फिर से अपने प्राकृतिक सौंदर्य और खुशहाल जीवन के लिए जाना जाता है, और यह सब संभव हुआ सुमी दीदी की दृढ़ता और समर्पण से।
:नवीन सिंह राणा
नोट: प्रस्तुत कहानी सत्य घटनाओं से प्रेरित पूर्णतः काल्पनिक कहानी है जिसमे आए पात्र , चित्र और गांव कल्पना के आधार पर लिए गए हैं जिनका किसी व्यक्ति विशेष से कोई संबंध नहीं है यदि यह किसी व्यक्ति विशेष से मेल खाता है तो यह संयोग मात्र होगा।धन्यवाद