विनाश से उभार नशा मुक्ति की ओर कदम (राणा थारू समाज की सच्ची कहानी )
### **विनाश से उभार, नशा मुक्ति की ओर कदम (राणा थारू समाज की सच्ची कहानी**)
नवीन सिंह राणा की कलम से
**पृष्ठभूमि:**
तराई क्षेत्र के हरे-भरे जंगलों में बसा 'अम्बिकापुर' गाँव, राणा थारू समाज का एक प्रमुख केंद्र था। प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर इस गाँव के निवासी मेहनती और सरल थे। लेकिन धीरे-धीरे गाँव में शराब का नशा बढ़ने लगा, जिसका असर युवाओं और बड़ों पर गहराई से पड़ रहा था।
**मुख्य पात्र:**
1. **राजू सिंह राणा** - गाँव का एक होनहार युवा, जिसने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी।
2. **भीमा सिंह राणा** - राजू का पिता, जो शराब के नशे में डूबा रहता था।
3. **सरिता देवी** - राजू की माँ, जो परिवार को एकजुट रखने की कोशिश करती थी।
4. **गाँव के अन्य निवासी** - जो शराब की समस्या से जूझ रहे थे।
**कहानी:**
राजू सिंह राणा गाँव का सबसे होनहार युवा था। उसने शहर में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी और गाँव के बच्चों के लिए एक आदर्श था। लेकिन राजू के घर की स्थिति बहुत खराब थी। उसके पिता, भीमा सिंह राणा, शराब के नशे में डूब चुके थे। नशे की लत ने उन्हें इतना कमजोर कर दिया था कि वे परिवार की देखभाल नहीं कर पाते थे।
राजू सिंह राणा ने अपने पिता को कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन नशे की लत ने भीमा पर गहरा असर डाला था। गाँव के अन्य लोग भी इसी समस्या से जूझ रहे थे। हर दिन शराब के कारण झगड़े होते, घरों में अशांति फैलती और बच्चे इस माहौल से प्रभावित हो रहे थे।
राजू सिंह राणा ने एक दिन ठान लिया कि वह अपने गाँव को इस बुराई से मुक्ति दिलाएगा। उसने सबसे पहले अपने पिता के इलाज की व्यवस्था की। भीमा को एक नशामुक्ति केंद्र में भेजा गया, जहाँ पर धीरे-धीरे उनका इलाज हुआ। भीमा को नशे की बुरी लत से छुटकारा पाने में बहुत समय लगा, लेकिन राजू की दृढ़ संकल्प और प्यार ने उन्हें सहारा दिया।
राजू सिंह राणा ने गाँव के अन्य लोगों को भी इसके बुरे प्रभावों के बारे में समझाना शुरू किया। उसने गाँव में एक सभा का आयोजन किया, जहाँ उसने सभी गाँववालों को संबोधित करते हुए कहा, "शराब ने हमारे समाज को बहुत नुकसान पहुँचाया है। हम अपने बच्चों के लिए एक अच्छा भविष्य चाहते हैं, लेकिन यह तभी संभव है जब हम खुद इस बुरी लत से बाहर निकलें। हमें एकजुट होकर इस बुराई के खिलाफ लड़ना होगा।"
राजू के शब्दों ने गाँववालों पर गहरा असर डाला। धीरे-धीरे लोगों ने शराब छोड़ने का संकल्प लिया। उन्होंने एक सामूहिक नशामुक्ति अभियान शुरू किया। गाँव के बुजुर्गों ने युवाओं को शराब के बुरे प्रभावों के बारे में बताया और उन्हें इसके खिलाफ लड़ने की प्रेरणा दी।
इस अभियान के दौरान, गाँव की महिलाएँ भी सक्रिय हो गईं। सरिता देवी और अन्य महिलाएँ घर-घर जाकर लोगों को समझाने लगीं। उन्होंने एक महिला संगठन बनाया, जो शराब विरोधी अभियान में प्रमुख भूमिका निभाने लगीं।
गाँव में एक नशामुक्ति केंद्र की स्थापना की गई, जहाँ पर लोग अपना इलाज करा सकते थे। धीरे-धीरे गाँव में शराब की लत कम होने लगी। बच्चों ने अपने माता-पिता को इस बुरी लत से बाहर निकलते देखा और उनमें भी सकारात्मक बदलाव आने लगे।
राजू के प्रयासों और गाँववालों की एकजुटता से 'अम्बिकापुर' गाँव धीरे-धीरे खुशहाल और समृद्ध होने लगा। शराब की लत से मुक्त होकर लोग एक नए जीवन की शुरुआत करने लगे। बच्चों ने अपने माता-पिता को फिर से स्वस्थ और खुशहाल देखा, जिससे उनका भविष्य भी उज्ज्वल हो गया।
**अंत:**
यह कहानी यह संदेश देती है कि जब एक व्यक्ति ठान लेता है और समाज को एकजुट करके किसी बुराई के खिलाफ लड़ता है, तो सफलता अवश्य मिलती है। राणा थारू समाज के 'अम्बिकापुर' गाँव ने यह साबित कर दिखाया कि एकजुटता और दृढ़ संकल्प से किसी भी बुराई पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
: नवीन सिंह राणा
नोट: प्रस्तुत कहानी सत्य घटनाओं से प्रेरित पूर्णतः काल्पनिक कहानी है जिसमे आए पात्र और गांव कल्पना के आधार पर लिए गए हैं जिनका किसी व्यक्ति विशेष से कोई संबंध नहीं है यदि यह किसी व्यक्ति विशेष से मेल खाता है तो यह संयोग मात्र होगा।धन्यवाद