जेपी राणा की क्रांतिकारी कविता
बस कुछ पलों का और सबर करो।
कि मशाल अब बढ़ चली है मंजिल को,
जो सोये हैं बस उनको खबर करो।।1।।
कदम से कदम मिलने लगे हैं,
सुनो इनकी ताल अजब है।
एक चिंगारी जो मंद मंद बन रही शोला,
जलने लगी देखो मशाल गजब है।।2।।
मुश्किल लाख आएं रास्तों में,
जरूर कोई ना कोई हल निकलेगा।
तुम तो निकलो अपने घर से,
कारवां भी साथ चल निकलेगा।।3।।
वीरों का है लहू हममें ,
हम वीरों की संताने हैं।
गम है तो बस इस बात का
के हम "जेपी"खुद से अनजाने हैं।।4।।
श्री जेपी राणा की कलम से
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