शिव उमा बसुंधरा सौंदर्य दर्शन (लिखित)
शिव उमा वसुंधरा भ्रमण
(नवीन सिंह राणा द्वारा रचित काव्य सौन्दर्य संग्रह )
कर कठोर विनती शिव से,
भोले को चिर निद्रा से जगाया ।
नैसर्गिक सौंदर्य दर्शन मन ,
शंकर भोले को बताया।।1।।
मुस्कुराए भोले भंडारी,
प्रस्थान किया भ्रमण को ।
साथ चली उमा माता ,
प्रसन्न किया स्व मन को।।2।।
पवन पथ चलकर ,
कैलाश गि रि पार किया ।
शिव शक्ति उमा जी को ,
हिम गिरी अति भा गया।।3।।
मन आनंदित कर, सती मां
दृश्य देख फूली न समाई ।।
मन की सारी प्रसन्नता ,
भोले नाथ को बताई।।4।।
शुक्ल रंग हिम ग्लेशियर ,
लगते हैं बड़े ही मनोहारी ।
हिम दर्शन से मन की,
मिटी तृप्ता सती की सारी।।5।।
लघु दीर्घ गिरि ढके हिम ,
स्वेत हिम लगे बड़ी निराली ।
लगे मानों औ ढ रखी हो,
मनभावन श्वेत दुशाली।।6।।
पल बनते ,पल् बिगड़ते ,
यह मनोहारी ललित ग्लेशियर।
हर्षित करते हैं मन को,
ऊंचे शुक्ल रंग गिरिशिखर।।7।।
हर दिशा में हिम ही हिम,
ना दिखे कहीं हरियाली।
कहां मिलेगी दर्शन को नाथ,
वसुंधरा पुष्पों वाली।।8।।
तनिक आगे बढ़ ,
पूरी हुई उमा अभिलाषा।
चाह जैसी थी दर्शन की ,
पूरी हुई उनकी आशा।।9।।
फूलों की सुंदर घाटी ,
लगती है देखो प्यारी ।
बोली उमा तन कर दूं न्योछावर ,
दिखती कितनी मनोहारी।।10।।
रंग-बिरंगे पुष्प मनमोहक,
कितने हैं यह निराले ।
कंटकधारी कंट विहीन पुष्प लता,
लगते हैंअति मन को मतवाले।।।11।।
कोमल पुष्प कांटों का दर्द,
पल पल जीवन भर सहते ।
फिर भी जीते हमसफर बन,
हंसकर मुस्कुरा महकते।।12।।
कंटक संग रहती मंजरी,
यह है प्रकृति की माया।
कंटक ही होते हैं नित
,पुष्पों के सच्चे साया।।13।।
उमा कहे घाटी का मौसम ,
नाथ कितना लगे निराला ।
पुष्पों को तोड़कर ,
बना लूं एक मंजरी माला। 14।।
भोले बोले कोमल कर ना लगाना ,
पुष्प ही जग शोभा बढ़ाते।
पूर्ण योवन में हैं कोमल पुष्प यह,
जीना और है चाहते। 15।।
देखो उमा वह निर्झर झर झर,
लगता है कितना प्यारा।
निर्मल पावन शीतल जल,
है निश्छल इसका सारा। ।16।।
झर झर कर गिरता ,
कर कल कल का नित नाद ।
नाथ निर्जर बता पाता ,
स्व मन का विषाद। ।17।।
उमा मुस्कुरा बोली निर्झर से,
क्यों होता रे निर्झर उदास ।
तू ही तो नित मिटाता,
सभी जीवो की प्यास ।।18।।
निर्झर निर्मल शीतल जल ,
तु बहे बन अति उज्जवल ।
मैं देती आशीष तुझे ,
रहे युग युग , सुंदर प्रबल।।19।।
वटवृक्ष तले सदा ,
ले शीतल जलधार बहे।
हर युग में उत्स तू ,
पावन बन कर नित रहे। ।20।।
आगे जब बड़े कुछ कदम ,
अवलोकित दृश्य मनोहरी सुंदर ।
निहा रन लगे शिव उमा ,
तरु के पीछे छुप कर। ।21।।
रंग बिरंगे पंख फैलाकर ,
मयूर तांडव मचा रहा है ।
हर्षित है इसका मन अति ,
मन ही मन गा सा रहा है। 22।।
तभी नजर आया एक फल ,
था मधुर मीठा सरस ।
पूछने लगी उमा भोले से,
कुल्लू नाथ में फल सूरत सूरत। 23।।
तभी सुनाई दी नाद विकराल ,
भयभीत उमा जगपति निकट आई।
देख विशाल गजराज को ,
मन ही मन पार्वती घबराई। 24।
भोले बोले यह विशाल जीव ,कर धारी गजराज ।
देव लोक की सवारी है यह , एरावत महाराज। 25।।
भूखा तभी भालू निराला
था बहुत ही खतरनाक 25 से चलता तन कर तल पर चल सकता पकड़ वृक्ष की साख।
एक लघु वृक्ष के सहारे जी खड़ा था एक जीव
कस्तूरी मृग जग का नियारा गंद फेंक रहा अजीब।
छोटी सी रंगीन चिड़िया, दिखती कितनी प्यारी।
कहते इसको बुलबुल है, धरती में सबसे न्यारी। ।
हुई संध्या दिवाकर लगा ढलने ,गगन में लालिमा लाया ।
मन को करता पर्वतीय देख मन अति हर्ष आया।
लाल वसुंधरा लाल गगन लाल हो गया सारा ।
जहां सुशोभित हो ताजा घटना लगता स्वर्ग ही है यहां।
उमा बोली होने लगी है रात्रि, नाथ हम कहां विश्राम करेंगे ।
है यहां अंधकार कानन में यहां, हम रात्रि निवास करेंगे। ।
पलक झपकते नजर आई, निर्जन कंद्रा।
लगे भयानक प्रवेश किया जब अंदर लगे सुंदर महल। ।
देख सुंदर कंदरा पार्वती का मन हर साया।
है जगतपिता भोले भोले क्या है अभाव सब कर दिखाया।
हुआ जब नभ में चंद्रोदय उमा के मन अति भाए ।
सोने का था लिए नभ में, मन देख बहुत मुस्काया। ।
पूर्णिया वन में निशा पति लगता बहुत ही मनोहारी ।
चंद्र चांदनी दृश्य भाविनी थैली धरा पर सारी ।।
पूर्ण यौवन का मयंक देख सबका मन अति हर्ष आता ।
देख 100 श्याम वर्ण थक गई स्वयं दुखी हो जाता।।
चंद्र ही है अंबर का साया तभी तो भोले शो मस्तक लगाते ।
चांदनी लगती प्यारी मयंक निशा को सजाती। ।
गुजरी मंद मंद अति रात्रि कंदरा में आप भोले ने चौपाल लगाई ।
देख सुंदर सी चौपाल अति उमा मां हर साई। ।
विश्व के श्रेष्ठ दाता देते सबको घर महल ।
स्वयं रहते निर्जन कंदरा में भोले सर्कल जीवन प्रतिपल
। निद्रा में आकर कंदरा में रात बिताई।
प्रातः हुआ जब, दिवाकर ने किरण फैलाई।।
दूर दूर कहीं लाली मानव में लिए धरा में दस्तक लगाई ।फैली आसमां में किरणें उमा दिवाकर देख मुस्कुराई।
मंद मंद मधुर शीतल पवन प्रात काल की बेला।
सूरज रक्त वर्ण अंबर में लग रहा बड़ा अलबेला।
हुए प्रसन्न सर्कल जीव उड़ने लगे गगन में।
शांतिप्रिय हरी हरियाली लगे मतवाली धरा में।
संपूर्ण प्रकृति दर्शन कर उमा बहुत ही हर्ष आई ।
लौट गए कैलाश गिरी "अजनबी नवीन "को दी बधाई
।
मैं "अजनबी नवीन "सदा उमा भोले के शरण में रहूं। ऐसा मुझको वर दो प्रभु हमेशा काव्य सौंदर्य कहूं। ।
समाप्