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राणा थारू समाजस्य समस्याः नेतृत्वे अभावः

### राणा थारू समाजस्य समस्याः नेतृत्वे अभावः राणा थारू समाजः, यः उत्तरभारते तराई भावर प्रदेशे स्थितः अस्ति, एकः अद्वितीयः सांस्कृतिकः ऐतिहासिकः च विरासतस्य धनी समाजः अस्ति। स्वस्य समृद्धः सांस्कृतिकः धरोहरः ऐतिहासिकः महत्वः च अपि, अयं समाजः अद्य अपि अनेके समस्याः सामना करोति। एतेषां समस्यानां मुख्यः कारणः अस्ति उत्तमः निस्वार्थः नेतृत्वस्य अभावः। अस्मिन् लेखे वयं तासां विविधाः समस्याः चर्चा करिष्यामः याः नेतृत्वस्य अभावेन उद्भवन्ति, समाजं संगठितं प्रगतिपथं च अग्रे नयन्ति। कुशल: सामाजिकः संगठनस्य अभावः सामाजिकः संगठनः कस्यापि समुदायस्य प्रगतेः निमित्तं आवश्यकः अस्ति। राणा थारू समाजे नेतृत्वस्य अभावेन कुशल : सामूहिकता संगठनस्य च भावना अभावः दृश्यते। समाजे एकता संगठनस्य अभावः अस्ति, येन समुदायस्य जनाः स्वधिकाराणां सुविधानां च निमित्तं संघर्षं कर्तुं न शक्नुवन्ति। सही नेतृत्व समाजस्य सदस्यान् एकत्र कर्तुं, सामूहिककार्याणि संचालनं कर्तुं, समस्यानां समाधानं च कर्तुं महत्वपूर्णः भवति। . शिक्षा स्वास्थ्य सेवायाः अभावः नेतृत्वस्य अभावेन समाजे शिक्षा स्वास्थ्य सेवायाः च स्थिति दयनीया अस्ति। उत्त...

राणा थारू समाज के कर्मचारी वर्ग का संगठित योगदान: समाज हित में एकजुटता और सशक्तिकरण की दिशा में प्रयास**

*राणा थारू समाज के कर्मचारी वर्ग का संगठित योगदान: समाज हित में एकजुटता और सशक्तिकरण की दिशा में प्रयास**: लेख  : नवीन सिंह राणा  राणा थारू समाज, उत्तर भारत का एक प्राचीन और समृद्ध समुदाय, जिसने अपने गौरवशाली इतिहास, सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं को पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजा है। आज के समय में, इस समाज के लोग विभिन्न विभागों और सेवाओं में कार्यरत हैं—चाहे वह शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशासन, पुलिस, बैंकिंग, कृषि, तकनीकी क्षेत्र, या अन्य कोई विभाग हो। इन विभिन्न विभागों में कार्यरत समाज के लोग न केवल अपने व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में सफल हो रहे हैं, बल्कि अपने समाज के लिए भी एक सशक्त भूमिका निभा सकते हैं।  वर्तमान समय में, आवश्यकता इस बात की है कि राणा थारू समाज का हर कर्मचारी वर्ग समाज हित में एक छत्र के तले एकजुट होकर अपने योगदान को सुनिश्चित करे। यह संगठित प्रयास न केवल समाज को एक नई दिशा देगा, बल्कि समाज के विकास और उन्नति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 1. **कर्मचारी संघों का गठन और सक्रियता** समाज के विभिन्न विभागों में कार्यरत कर्मचारियों को एकजुट करने के लिए सबसे पहला और...

**राणा थारू समाज का थारू विकास भवन: गौरव स्थल से स्वाभिमान और आदर का प्रतीक बनाने की दिशा में रणनीति**

** राणा थारू समाज का थारू विकास भवन: गौरव स्थल से स्वाभिमान और आदर का प्रतीक बनाने की दिशा में रणनीति: एक विचार  : नवीन सिंह राणा  राणा थारू समाज का थारू विकास भवन न केवल इस समाज का गौरव स्थल है, बल्कि यह समाज की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक धरोहर को संरक्षित रखने का एक महत्वपूर्ण केंद्र भी है। यह भवन उस गौरवशाली इतिहास और धरोहर का प्रतीक है, जिसने राणा थारू समाज को पहचान दी है। इस गौरव स्थल को समाज के प्रत्येक व्यक्ति के दिल से जोड़ने, इसे स्वाभिमान का प्रतीक बनाने और अन्य समाज के लोगों के लिए आदरणीय स्थल के रूप में स्थापित करने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रयासों की आवश्यकता है। 1. ** थारू विकास भवन के सांस्कृतिक महत्व को बढ़ावा देना** थारू विकास भवन का मुख्य उद्देश्य राणा थारू समाज की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजना और उसका प्रचार-प्रसार करना है। इसके लिए आवश्यक है कि इस भवन में समाज के इतिहास, कला, संगीत, और परंपराओं का व्यापक प्रदर्शन हो।  - ** सांस्कृतिक संग्रहालय का निर्माण**: भवन में एक स्थायी सांस्कृतिक संग्रहालय की स्थापना की जानी चाहिए, जिसमें राणा थारू समाज के ऐतिहास...

**"राणा थारू समाज: आधार से जुड़कर संगठन की साख को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की रणनीति"**

**"राणा थारू समाज: आधार से जुड़कर संगठन की साख को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की रणनीति"** :नवीन सिंह राणा  राणा थारू समाज, उत्तर भारत के ऐतिहासिक और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने वाला एक समाज है। इस समाज का गौरवशाली अतीत और उज्ज्वल भविष्य तब ही संभव हो सकता है जब समाज अपने आप को संगठित और सशक्त बनाए। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, हमें आधार से जुड़े सामाजिक संगठन का निर्माण करना होगा, जो जन-जन तक अपनी पकड़ मजबूत बनाकर हर गांव में अपनी साख बढ़ा सके। राणा थारू समाज का कोइ संगठन तभी सफल होगा जब समाज के हर वर्ग, हर उम्र और हर क्षेत्र के लोग इसमें सक्रिय रूप से भाग लें। संगठन की नींव को मजबूत बनाने के लिए सबसे पहले आवश्यक है कि समाज के सभी सदस्य एकजुट हों और एक-दूसरे के प्रति सहयोग का भाव रखें। इस एकजुटता के माध्यम से समाज को एक शक्तिशाली संगठनात्मक ढांचे की आवश्यकता है, जो आधार से जुड़ा हो और जन-जन तक अपनी पकड़ बनाए रखे। 1. **स्थानीय समितियों का गठन**: हर गांव और कस्बे में राणा थारू समाज के संघठन की स्थानीय समितियां गठित की जानी चाहिए। ये समितियां स्थानीय समस्याओं को सुलझाने औ...

राणा थारू समाज: विकास की राह में चुनौतियाँ और संभावनाएँ :विमर्श

** राणा थारू समाज: विकास की राह में चुनौतियाँ और संभावनाएँ** : नवीन सिंह राणा की कलम से  आजादी के बाद भारत ने विकास की दिशा में बड़े कदम उठाए। नए भारत के निर्माण में हर वर्ग, हर समाज ने अपना योगदान दिया। लेकिन कुछ समाज ऐसे भी रहे जो विकास की इस दौड़ में पूरी तरह से भागीदार नहीं बन सके, और उनमें से एक है राणा थारू समाज। यद्यपि इस समाज ने खेती और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है, फिर भी वह व्यापार में बुलंदियों को छूने, बड़े अधिकारी बनने, और राजनीति में उच्च पदों पर पहुँचने में अभी भी संघर्ष कर रहा है।  ### ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और वर्तमान स्थिति राणा थारू समाज का इतिहास अद्वितीय है, यह समाज सदियों से अपने परंपरागत जीवनशैली और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के साथ जुड़ा रहा है। आजादी के बाद, जब देश के अन्य हिस्सों में विकास की बयार बह रही थी, तब राणा थारू समाज ने भी शिक्षा और खेती के क्षेत्र में अपने कदम बढ़ाने शुरू किए। बच्चों को स्कूल भेजने, और खेती में नई तकनीकों का उपयोग करने जैसी पहलें समाज में बदलाव का संकेत थीं।  हालाँकि, इस बदलाव के बावजूद, राणा थारू समाज आर्...

**"राणा थारू समाज: भूमि विभाजन, आर्थिक संकट, और भविष्य की चुनौतियाँ": सम सामयिक लेख

**"राणा थारू समाज: भूमि विभाजन, आर्थिक संकट, और भविष्य की चुनौतियाँ": सम सामायिक लेख  : नवीन सिंह राणा की कलम से  राणा थारू समाज का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य एक ऐसा विषय है जिसमें समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और सामाजिक संघर्ष दोनों ही महत्वपूर्ण रूप से शामिल हैं। इस लेख में हम इस समाज की कृषि व्यवस्था, भूमि विभाजन, बाहरी प्रभाव, और इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न समस्याओं पर विस्तृत चर्चा करेंगे। ### **प्रारंभिक कृषि व्यवस्था और भरण-पोषण** राणा थारू समाज का इतिहास यह बताता है कि पहले इस समुदाय के लोग मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर थे। वे अपने भरण-पोषण के लिए अनाज उत्पादन करते थे, लेकिन उस समय खेती का उद्देश्य केवल घरेलू उपयोग के लिए अनाज उगाना था। उत्पादन की दर कम थी और यह सिर्फ परिवार की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त था। बाजार की अवधारणा और व्यापारिक मंशा उस समय समाज में नहीं थी। ### **हरित क्रांति और पंचवर्षीय योजनाओं का प्रभाव** हरित क्रांति और पंचवर्षीय योजनाओं के आने से खेती के तरीके और उत्पादन में बदलाव आया। सरकार की ओर से नए कृषि उपकरण, उन्नत बीज, और खादों का प्रयोग बढ़...

राणा थारू समाज और समाज से उच्च प्रतिभाओं का पलायन

राणा थारू समाज और समाज से उच्च प्रतिभाओं का पलायन: लेख  :नवीन सिंह राणा  राणा थारू समाज, जो अपने आप में एक विशेष पहचान और संस्कृति को समर्पित है, ने वर्षों की मेहनत और संघर्ष के बाद अपने बच्चों को उच्च शिक्षा की राह पर चलायाहै । इस समाज के बुजुर्गों और नेताओं का सपना था कि उनकी संतानें ऊँचे पदों पर पहुंचें, और उनकी इस कामयाबी से समाज का उत्थान हो। वे चाहते थे कि बेटे-बेटियाँ अपने समाज के भीतर ही रहें, शादी करें, और समाज को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं। लेकिन आधुनिकता और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के चलते, इस समाज के युवा एक नई दिशा में बढ़ रहे हैं, जो कि समाज की अपेक्षाओं से भिन्न है। **समाज का सपना ** बच्चों के लिए उच्च शिक्षा दिलवाने का सपना आज समाज के हर सदस्य का था। इसके लिए उन्होंने कठिन परिश्रम कियाहै ,खेतों में पसीना बहाकर, अपनी संपत्ति गिरवी रखकर, और कभी-कभी तो अपने पेट पर पत्थर बांधकर, वे अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों और कॉलेजों में भेजने में सक्षम हो पाए। उनका मानना है कि जब उनके बच्चे पढ़-लिखकर बड़े पदों पर पहुंचेंगे, तो वे समाज की सेवा करेंगे और उसकी गरिमा...

"राणा थारू समाज की उड़ान"**

 "राणा थारू समाज की उड़ान"** :नवीन सिंह राणा  भारत देश के कई गाँव में बसे राणा थारू समाज की पहचान सदियों से उसकी परंपरागत जीवनशैली, खेती-बाड़ी, और जंगलों से जुड़ी है ।आजादी के बाद जब देश ने विकास की ओर कदम बढ़ाए, तो राणा थारू समाज ने भी धीरे-धीरे शिक्षा और खेती के क्षेत्र में अपने छोटे-छोटे कदम रखना शुरू किया। यह समाज धीरे-धीरे शिक्षा के महत्व को समझने लगा, और गाँव के बच्चों को स्कूल भेजने लगा। समाज के कुछ लोगों ने खेती के अलावा शिक्षा को भी अपनाना शुरू किया, और उनके बच्चे अब उच्च शिक्षा के लिए शहरों की ओर जाने लगे। हालाँकि, शिक्षा का यह प्रयास सराहनीय था, लेकिन समाज अब भी उच्च अधिकारी बनने, व्यापार में बुलंदियों को छूने, और राजनीति में ऊँचे पदों पर पहुँचने में पीछे था। इसका मुख्य कारण समाज की आर्थिक स्थिति और पुरानी मान्यताओं में जकड़ा रहना था।  गाँव के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति, राम सिंह जी, समाज के भले के लिए हमेशा चिंतित रहते थे। और अपने गांव के बड़े पधान थे, जिनका खूब आदर सम्मान समाज में था,।एक दिन उन्होंने गाँव समाज की पंचायत बुलाईजिसमे कई गांव के बड़े बुजुर्गों और युवाओ...

"स्वर्णा और साहसी अर्जुन की अद्भुत यात्रा"कहानी

"स्वर्णा और साहसी अर्जुन की अद्भुत यात्रा"कहानी  एक बार की बात है, उत्तराखंड के हरे-भरे जंगलों के किनारे राणा थारू जनजाति के एक छोटे से गाँव में एक नन्हा बच्चा, अर्जुन, रहता था। अर्जुन बेहद निडर और जिज्ञासु था। उसे जंगल के जीव-जंतु और उनकी कहानियों में बहुत दिलचस्पी थी। एक दिन, अर्जुन को उसकी दादी ने एक अद्भुत परियों की कहानी सुनाई। दादी ने कहा, "बहुत समय पहले, हमारे गाँव के पास एक जादुई तालाब था। उस तालाब में एक सुनहरी मछली रहती थी, जिसका नाम था स्वर्णा। स्वर्णा के पास जादुई शक्तियाँ थीं और वह बच्चों की मदद करने के लिए जानी जाती थी।" अर्जुन ने दादी की कहानी सुनी और उसकी आँखों में चमक आ गई। उसने मन ही मन निश्चय किया कि वह उस जादुई तालाब को ढूंढ़ेगा और स्वर्णा से मिलेगा। अगली सुबह, अर्जुन ने अपने सबसे अच्छे दोस्तों, नीलू और पायल, को अपने साहसिक अभियान के बारे में बताया। वे तीनों साथ में जंगल की ओर निकल पड़े। रास्ते में उन्हें रंग-बिरंगे पक्षी, चमकते फूल और झरने मिले। चलते-चलते वे एक छोटे से गाँव पहुंचे, जहाँ एक बूढ़ा आदमी बैठा हुआ था। बूढ़े ने बच्चों को देखा और मुस्क...

**कहानी: संघर्षों की दास्तान

**कहानी: संघर्षों की दास्तान** नवनीत एक साधारण इंसान था, जो अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ एक शांतिपूर्ण जीवन बिता रहा था। उसने अपनी जिंदगी के हर छोटे-बड़े कदम को सोच-समझकर उठाया था, ताकि उसके परिवार को किसी भी प्रकार की कमी महसूस न हो। हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया, उसे एहसास हुआ कि उसके पास अब खुद का एक घर होना चाहिए। नवनीत ने कई सालों तक बचत की थी, लेकिन वह इतनी नहीं थी कि वह सीधे एक घर खरीद सके। इसीलिए, उसने होम लोन लेने का फैसला किया। कागजी कार्यवाही और बैंक के चक्कर काटने के बाद, नवनीत ने आखिरकार अपना सपना पूरा कर लिया। उसने एक छोटा-सा, लेकिन सुंदर घर बनवाया, जहां उसके परिवार की हर खुशी और उसकी मेहनत का फल था। लेकिन घर का काम अभी पूरा भी नहीं हुआ था कि उसकी बड़ी बेटी, रिया, की तबियत अचानक बिगड़ने लगी। नवनीत और उसकी पत्नी ने सोचा कि यह साधारण बुखार या कोई छोटी बीमारी होगी, जो जल्द ही ठीक हो जाएगी।  लेकिन जब रिया की तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ और उसकी दृष्टि कमजोर होने लगी, तो उनका दिल बैठ गया। वे देश के सबसे अच्छे डॉक्टरों के पास गए, हर संभव इलाज कराया, लेकिन कोई भी इलाज ...

जन्माष्टमी क्विज 2024

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कहानी **"शिवा और जन्माष्टमी की झांकी"**

*"शिवा और जन्माष्टमी की झांकी"** कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हर वर्ष राणा थारू समाज में धूमधाम से मनाया जाता है। इस विशेष अवसर पर, गाँव के सभी लोग सज-धज कर मंदिर में एकत्र होते हैं। राणा थारू समाज के लोग भगवान कृष्ण के प्रति गहरी आस्था रखते हैं और उनकी लीला को अपनी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं। कहानी शुरू होती है गंगापुर गाँव में, जहाँ छोटे-से शिवा ने पहली बार कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाने का जिम्मा उठाया। शिवा 12 साल का एक चतुर और साहसी लड़का था, जो हमेशा कुछ नया करने की कोशिश करता था। उसकी दादी उसे कृष्ण की कहानियाँ सुनाया करती थीं, और वे कहानियाँ उसके मन में गहरे बैठ गई थीं। शिवा ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर पूरे गाँव में मटकी फोड़ने का आयोजन किया। मटकी फोड़ना कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का प्रतीक है। शिवा और उसके दोस्तों ने रंग-बिरंगे कपड़े पहने और सिर पर पगड़ी बांधकर तैयार हो गए। शिवा ने मंदिर के प्रांगण में एक सुंदर झांकी बनाई, जिसमें कृष्ण जी की बाल लीला, गोपियों के साथ रासलीला, और कंस का वध जैसी घटनाएँ दिख...

कहानी का शीर्षक: "विभाजन की लहर: राणा थारू समाज पर क्रीमेलियर का संकट"**

**कहानी का शीर्षक: "विभाजन की लहर: राणा थारू समाज पर क्रीमेलियर का संकट"** : नवीन सिंह राणा  (प्रस्तुत काल्पनिक कहानी में क्रीमेलियर के भविष्य में संभावित प्रभावों को देखते हुऐ वर्णित किया गया है और समाज को कुछ जागरूक करने का प्रयास किया गया है, जिसमे कहानी को रोचकता देने हेतु कुछ ऐसे विचार भी शामिल हो गए हैं जिनका वास्तविकता से कोई संबंध नही है) राणा थारू समाज, जो उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में बसता है, एक बार फिर चुनौती के सामने था। सदियों से इस समाज ने अपने अद्वितीय संस्कृति, परंपराओं और एकजुटता को बनाए रखा था। यहाँ के लोग खेती, जंगल से उत्पाद एकत्रित करना और हस्तशिल्प के जरिए अपनी आजीविका चलाते थे। समाज में हमेशा समानता और भाईचारे का बोलबाला था। लेकिन एक दिन सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश आया जिसने पूरे समाज को चिंता में डाल दिया। कोर्ट ने क्रीमेलियर नामक एक विवादास्पद नीति को मंजूरी दे दी। इस नीति के तहत समाज के उन लोगों को आरक्षण और अन्य सरकारी सुविधाओं से वंचित कर दिया जायेगा जिनकी आर्थिक स्थिति बेहतर मानी जायेगी। समाज में इस फैसले की गूँज सुनाई देने लगी। ...

संघठन मंत्री द्वारा किए जा सकने वाले संभावित गलत कार्य

संघठन मंत्री की जिम्मेदारियों में संगठन को सुव्यवस्थित और सुचारू रूप से चलाना शामिल होता है। लेकिन अगर वह अपनी भूमिका का दुरुपयोग करता है, तो कुछ संभावित गलत कार्य इस प्रकार हो सकते हैं: 1. **सत्ता का दुरुपयोग**: अपने पद का उपयोग व्यक्तिगत लाभ के लिए करना, जैसे कि अपने करीबी लोगों को पद देना।    2. **भ्रष्टाचार**: संगठन के संसाधनों का दुरुपयोग करके आर्थिक लाभ प्राप्त करना। 3. **जानकारी का दुरुपयोग**: गोपनीय जानकारी को गलत तरीके से इस्तेमाल करना या लीक करना। 4. **गुटबाजी**: संगठन में अपने समर्थकों का गुट बनाकर निर्णय लेने में पक्षपात करना। 5. **गैर-लोकतांत्रिक तरीके**: संगठन के फैसलों में पारदर्शिता और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का पालन न करना। 6. **सूचना दबाना**: संगठन के सदस्यों से महत्वपूर्ण जानकारी छिपाना। 7. **नैतिक अनियमितताएँ**: नैतिकता और आचार संहिता का उल्लंघन करना। ये कुछ उदाहरण हैं कि एक संगठन मंत्री कैसे अपने पद का गलत उपयोग कर सकता है। इसलिए कभी कभी सभी सद्स्यों को इस पर नजर रखना जरूरी हो सकता है ।

कोन से संभावित गलत कार्य किसी समिति का अध्यक्ष कर सकता है?

कभी कभी किसी सामाजिक संगठन में अध्यक्ष द्वारा किए जा सकने वाले कुछ गलत कार्य निम्नलिखित हो सकते हैं: 1. **धन का दुरुपयोग**: संगठन के धन का अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए उपयोग करना। 2. **सत्ता का दुरुपयोग**: संगठन के सदस्यों पर अपने निजी हितों को थोपना या अपने पद का अनुचित लाभ उठाना। 3. **भ्रष्टाचार**: निर्णय प्रक्रिया में पक्षपात करना, रिश्वत लेना, या अनैतिक तरीकों से संगठन के संसाधनों का उपयोग करना। 4. **पारदर्शिता की कमी**: संगठन के कार्यों और वित्तीय मामलों में पारदर्शिता नहीं रखना, जिससे सदस्यों को सही जानकारी न मिल सके। 5. **सदस्यों की अनदेखी**: संगठन के अन्य सदस्यों के सुझावों, विचारों और आवाज़ को नजरअंदाज करना। 6. **गुप्त निर्णय लेना**: संगठन के महत्वपूर्ण फैसले बिना सलाह-मशविरा के गुप्त रूप से लेना। 7. **अवांछनीय गतिविधियों में शामिल होना**: संगठन के नाम का उपयोग अवैध या अनैतिक गतिविधियों के लिए करना। 8. **दुराचार या शोषण**: संगठन के सदस्यों या कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार, शोषण, या अनुचित व्यवहार करना। ऐसे कार्य संगठन की छवि और उद्देश्यों को नुकसान पहुंचा सकते हैं और अध्यक्ष को ...

कैसे करें बिना अध्यक्ष के समिति का संचालन?

किसी संगठन को बिना अध्यक्ष के आगे बढ़ाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन यदि अध्यक्ष पद को हटाने से संगठन में दिक्कतें कम होती हैं, तो इसे कुछ तरीकों से सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया जा सकता है: 1. **कोर टीम का गठन**: अध्यक्ष की जगह, एक कोर टीम बनाई जा सकती है जिसमें संगठन के महत्वपूर्ण कार्यों को संभालने के लिए विभिन्न लोगों को जिम्मेदारियां सौंपी जाएं। यह टीम सामूहिक रूप से निर्णय लेगी और संगठन के उद्देश्यों की ओर कार्य करेगी। 2. **स्वायत्तता और पारदर्शिता**: संगठन के सभी सदस्यों को अपने काम में स्वायत्तता दी जाए, ताकि वे अपनी भूमिका निभा सकें। साथ ही, पारदर्शिता बनाए रखने के लिए सभी निर्णय सामूहिक रूप से लिए जाएं और सभी सदस्यों को इसके बारे में जानकारी दी जाए। 3. **लोकतांत्रिक निर्णय प्रक्रिया**: निर्णय लेने के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाई जाए, जिसमें सभी सदस्यों की राय ली जाए और बहुमत से निर्णय लिया जाए। इससे किसी एक व्यक्ति पर निर्भरता कम होगी। 4. **लघु समिति**: संगठन के विभिन्न पहलुओं को संभालने के लिए अलग-अलग समितियों का गठन किया जाए, जो अपने कार्यक्षेत्र में स्वतंत्रता से काम करें। इ...

अनुभव आधारित प्रशिक्षण (Experience-Based Training) क्या है?**

**अनुभव आधारित प्रशिक्षण (Experience-Based Training) क्या है?** अनुभव आधारित प्रशिक्षण एक ऐसी विधि है जिसमें व्यक्ति को वास्तविक जीवन के अनुभवों से सीखने का अवसर दिया जाता है। इस प्रकार के प्रशिक्षण में व्यक्ति किसी कार्य को करके, समस्याओं का सामना करके, और उनके समाधान खोजकर सीखता है। यह प्रशिक्षण पुस्तकीय ज्ञान के बजाय वास्तविक जीवन की परिस्थितियों पर आधारित होता है। **मुख्य विशेषताएँ:** 1. **सीखने का सक्रिय तरीका:** इस प्रशिक्षण में व्यक्ति को खुद से कार्य करने और निर्णय लेने का मौका मिलता है। इससे वह सक्रिय रूप से सीखता है और ज्ञान को अपने अनुभवों के साथ जोड़ता है। 2. **समस्या-समाधान कौशल का विकास:** प्रशिक्षण के दौरान व्यक्ति को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिससे उसकी समस्या-समाधान की क्षमता में सुधार होता है। 3. **टीम वर्क और नेतृत्व का विकास:** अनुभव आधारित प्रशिक्षण में अक्सर समूह में काम किया जाता है, जिससे टीम वर्क और नेतृत्व के गुणों का विकास होता है। 4. **व्यावहारिक ज्ञान:** यह प्रशिक्षण व्यक्ति को वास्तविक परिस्थितियों में काम करने का अनुभव प्रदान करता है, जिससे...

थारू समाज में तीज पर्व: परंपरा, उल्लास और सांस्कृतिक धरोहर"

"थारू समाज में तीज पर्व: परंपरा, उल्लास और सांस्कृतिक धरोहर" By Naveen Singh Rana  तीज का पर्व थारू समाज में प्राचीन समय से उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता रहा है। पुराने समय में तीज की बाजार का विशेष महत्व था, जहां सोन पापड़ी, लच्छे और नाशपाती जैसे फलों और मिठाइयों का भरपूर आनंद लिया जाता था। हालांकि, आजकल तीज मनाने के तरीके में बदलाव आया है, लेकिन इसका उत्साह और उल्लास वैसा ही बना हुआ है। तीज पर्व की एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि जब कोई बालक जन्म लेता है, तो बेमाइया देवियों का चित्र बनाया जाता है, जिन्हें हमारी मां के रूप में पूजा जाता है। सावन महीने में बहनें अपने भाइयों और भतीजों के लिए लंबी उम्र की कामना करती हुई तीज का त्यौहार मनाती  हैं, खासकर वे भाई , भतीजे जो दूर दराज में काम करने जाते हैं। इन बहनों का स्नेह और ममता गुलगुला और पूरी जलधारा में प्रवाहित कर प्रकट की जाती है और गंगा मां से उनके अच्छे होने की कामना की जाती है। समाज में इस सम्बन्ध में कई लोककथाये कही जाती हैं  उन्ही में से एक लोक लोककथा कही जाती है कि एक बार की बात है, दो बहनें वे और मईया गंग...