कहानी **"शिवा और जन्माष्टमी की झांकी"**

*"शिवा और जन्माष्टमी की झांकी"**

कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हर वर्ष राणा थारू समाज में धूमधाम से मनाया जाता है। इस विशेष अवसर पर, गाँव के सभी लोग सज-धज कर मंदिर में एकत्र होते हैं। राणा थारू समाज के लोग भगवान कृष्ण के प्रति गहरी आस्था रखते हैं और उनकी लीला को अपनी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं।

कहानी शुरू होती है गंगापुर गाँव में, जहाँ छोटे-से शिवा ने पहली बार कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाने का जिम्मा उठाया। शिवा 12 साल का एक चतुर और साहसी लड़का था, जो हमेशा कुछ नया करने की कोशिश करता था। उसकी दादी उसे कृष्ण की कहानियाँ सुनाया करती थीं, और वे कहानियाँ उसके मन में गहरे बैठ गई थीं।

शिवा ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर पूरे गाँव में मटकी फोड़ने का आयोजन किया। मटकी फोड़ना कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का प्रतीक है। शिवा और उसके दोस्तों ने रंग-बिरंगे कपड़े पहने और सिर पर पगड़ी बांधकर तैयार हो गए।

शिवा ने मंदिर के प्रांगण में एक सुंदर झांकी बनाई, जिसमें कृष्ण जी की बाल लीला, गोपियों के साथ रासलीला, और कंस का वध जैसी घटनाएँ दिखाई गईं। पूरे गाँव के लोग उस झांकी को देखने के लिए उमड़ पड़े। शिवा ने न केवल झांकी सजाई, बल्कि अपने दोस्तों के साथ मिलकर मटकी फोड़ने की प्रतियोगिता भी आयोजित की। 

इस प्रतियोगिता में, शिवा ने कृष्ण की तरह सबसे ऊँची मटकी फोड़ने का संकल्प लिया। वह और उसके साथी एक दूसरे के कंधों पर चढ़कर मटकी तक पहुँचने की कोशिश कर रहे थे। पूरे गाँव के लोग तालियाँ बजा रहे थे और जयकारे लगा रहे थे। आखिरकार, शिवा ने मटकी फोड़ दी, और दूध-दही की धारा बह निकली। सबने मिलकर इस विजय का आनंद लिया।

इस पूरे आयोजन के बाद, गाँव के बुजुर्गों ने शिवा की तारीफ की और कहा, "तूने इस बार की जन्माष्टमी को सचमुच यादगार बना दिया। कृष्ण की बाल लीलाओं को जीवंत कर दिया है।"

इस तरह से, राणा थारू समाज में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति और परंपराओं से जोड़ने का भी एक जरिया है। शिवा की मेहनत और उत्साह ने यह साबित कर दिया कि बच्चों के लिए यह पर्व केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि अपनी जड़ों को समझने और उन्हें आगे बढ़ाने का अवसर है।

राणा संस्कृति मंजूषा की प्रस्तुति 

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