राणा थारू समाज और समाज से उच्च प्रतिभाओं का पलायन
राणा थारू समाज और समाज से उच्च प्रतिभाओं का पलायन: लेख
:नवीन सिंह राणा
राणा थारू समाज, जो अपने आप में एक विशेष पहचान और संस्कृति को समर्पित है, ने वर्षों की मेहनत और संघर्ष के बाद अपने बच्चों को उच्च शिक्षा की राह पर चलायाहै । इस समाज के बुजुर्गों और नेताओं का सपना था कि उनकी संतानें ऊँचे पदों पर पहुंचें, और उनकी इस कामयाबी से समाज का उत्थान हो। वे चाहते थे कि बेटे-बेटियाँ अपने समाज के भीतर ही रहें, शादी करें, और समाज को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं। लेकिन आधुनिकता और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के चलते, इस समाज के युवा एक नई दिशा में बढ़ रहे हैं, जो कि समाज की अपेक्षाओं से भिन्न है।
**समाज का सपना**
बच्चों के लिए उच्च शिक्षा दिलवाने का सपना आज समाज के हर सदस्य का था। इसके लिए उन्होंने कठिन परिश्रम कियाहै ,खेतों में पसीना बहाकर, अपनी संपत्ति गिरवी रखकर, और कभी-कभी तो अपने पेट पर पत्थर बांधकर, वे अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों और कॉलेजों में भेजने में सक्षम हो पाए। उनका मानना है कि जब उनके बच्चे पढ़-लिखकर बड़े पदों पर पहुंचेंगे, तो वे समाज की सेवा करेंगे और उसकी गरिमा को और ऊँचा उठाएंगे। परिवार समृद्ध होगा तो समाज भी समृद्धि की ओर आगे बड़ेगा।
बेटों से अपेक्षा की जाती थी कि वे शिक्षा प्राप्त करके बड़े अधिकारी बनें और समाज की लड़कियों से शादी कर समाज के भीतर ही रहें, ताकि एक परिवार नहीं दो परिवार खुश हाल हों। वहीं, बेटियों से भी यही आशा की जाती थी कि वे पढ़-लिखकर समाज के भीतर ही नौकरी करें और समाज के भीतर ही शादी कर समाज की प्रगति में अपना योगदान दें। और उनसे सम्पूर्ण समाज को नई दिशा मिले।
उच्च शिक्षा और आधुनिकता**
समय बीतने के साथ, बच्चों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलाहै। वे बड़े शहरों में गए, जहाँ उन्होंने आधुनिक विचारधारा और एक नई जीवनशैली को अपनाया। नए मित्र, नए परिवेश और नए अनुभवों ने उनके दृष्टिकोण को व्यापक बनाया। उन्होंने स्वतंत्रता और व्यक्तिगत विकास को प्राथमिकता दी है।
जिन बेटों और बेटियों से समाज को उम्मीदें थीं कि वे अपने समाज की प्रगति में योगदान देंगे, वे अब अपने नए जीवन में रम गए। वे अपने करियर को प्राथमिकता देने लगे और समाज की अपेक्षाओं से परे जाकर, वे ऐसे निर्णय लेने लगे जो उनके व्यक्तिगत जीवन के लिए सही थे, लेकिन समाज के हितों के विपरीत।
पलायन की बढ़ती प्रवृत्ति**
समाज के जिन बच्चों ने बड़े पदों पर जाकर सफलताएँ प्राप्त कीं, वे अब समाज से दूर रहने लगेहैं कुछ को राणा थारू ही कहलाने में गुरेज लगता है जिससे उन्होंने अपने समाज की जगह दूसरी संस्कृतियों और समाजों में अपने जीवनसाथी चुन रहे है।यह प्रवृत्ति धीरे-धीरे बढ़ने लगीहै और अब समाज में ऐसी चर्चाएँ होने लगीं हैं कि उच्च प्रतिभाओं का समाज से पलायन हो रहा है।
समाज की बेटियां भी अब उच्च शिक्षा और बेहतर नौकरियों की तलाश में शहरों में जा रही । वे अपनी नई जिंदगी और अपनी नयी पहचान में रम गई, और समाज के भीतर लौटने की उम्मीदें धुंधली होती जा रही,जब उन्होंने अपने समाज के बाहर शादी की और अपने जीवन की नई राह चुनी।
**समाज का संकट और नया मार्ग**
इस प्रवृत्ति से समाज में एक बड़ी चुनौती खड़ी हो रही ।समाज के बुजुर्ग और नेता अब चिंतित हैं कि अगर यह सिलसिला यूं ही चलता रहा, तो समाज का उत्थान कैसे होगा? समाज के भीतर उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे अब समाज में लौटकर योगदान देने की बजाय, उसे छोड़ रहे ।
समाज के सभी लोगों को सभा कर इस मुद्दे पर विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि बुजुर्गों ने इस स्थिति पर चिंता व्यक्त की है और युवाओं से आशा की है कि वे अपनी जड़ों को न भूलें। समझने की जरूरत है कि व्यक्तिगत उन्नति के साथ-साथ समाज के प्रति भी उनकी जिम्मेदारी है।
समाज के इस संकट को देखते हुए, एक नया मार्ग चुना जाय व अपने बच्चों को यह समझाने की कोशिश की जाय कि वे जहां भी जाएं, समाज के लिए कुछ न कुछ करते रहें। समाज के माता पिता बच्चों की स्वतंत्रता को महत्व दें, लेकिन साथ ही उन्हें यह भी सिखाये कि समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी भी महत्वपूर्ण है।
समाज में अपने बच्चों को सशक्त बनाने का निश्चय अच्छा प्रयास है लेकिन यह भी तय किया जाय कि वे बच्चों को समाज की जड़ों से जुड़े रहने के लिए प्रेरित करें। समय समय पर बच्चों के लिए कुछ कार्यक्रमों की शुरुआत की जाय जहां वे अपने समाज की संस्कृति और परंपराओं के साथ जुड़े रहें और समाज के विकास में योगदान दें।
इस लेख का सार यह है कि समाज और व्यक्तिगत उन्नति के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। उच्च प्रतिभाओं का पलायन एक वास्तविकता है, लेकिन इसे संतुलित किया जा सकता है अगर समाज और बच्चे मिलकर एक नया मार्ग अपनाएं, जिसमें आधुनिकता और परंपरा दोनों का समन्वय हो। तब ही समाज की असली उन्नति सम्भव है।
नोट : उपरोक्त लेख में व्यक्तिगत विचार हैं इस मुद्दे पर लोगों की अलग अलग राय भी हो सकती है।