कहानी का शीर्षक: "विभाजन की लहर: राणा थारू समाज पर क्रीमेलियर का संकट"**

**कहानी का शीर्षक: "विभाजन की लहर: राणा थारू समाज पर क्रीमेलियर का संकट"**
: नवीन सिंह राणा 
(प्रस्तुत काल्पनिक कहानी में क्रीमेलियर के भविष्य में संभावित प्रभावों को देखते हुऐ वर्णित किया गया है और समाज को कुछ जागरूक करने का प्रयास किया गया है, जिसमे कहानी को रोचकता देने हेतु कुछ ऐसे विचार भी शामिल हो गए हैं जिनका वास्तविकता से कोई संबंध नही है)

राणा थारू समाज, जो उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में बसता है, एक बार फिर चुनौती के सामने था। सदियों से इस समाज ने अपने अद्वितीय संस्कृति, परंपराओं और एकजुटता को बनाए रखा था। यहाँ के लोग खेती, जंगल से उत्पाद एकत्रित करना और हस्तशिल्प के जरिए अपनी आजीविका चलाते थे। समाज में हमेशा समानता और भाईचारे का बोलबाला था।

लेकिन एक दिन सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश आया जिसने पूरे समाज को चिंता में डाल दिया। कोर्ट ने क्रीमेलियर नामक एक विवादास्पद नीति को मंजूरी दे दी। इस नीति के तहत समाज के उन लोगों को आरक्षण और अन्य सरकारी सुविधाओं से वंचित कर दिया जायेगा जिनकी आर्थिक स्थिति बेहतर मानी जायेगी।

समाज में इस फैसले की गूँज सुनाई देने लगी।  हरिप्रसादराणा, जो समाज के सबसे पुराने और सम्मानित व्यक्ति थे, ने समाज की चौपाल पर सभी को इकट्ठा किया। "ये फैसला हमारी समाज की जड़ें हिला देगा," उन्होंने गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा। "हमारे बच्चे, जो शिक्षा और रोजगार की तलाश में पहले ही संघर्ष कर रहे हैं, अब और पीछे धकेल दिए जाएँगे।"

महेश, जो समझ का एक होशियार छात्र था और डॉक्टर बनने का सपना देखता था, ने अपने पिता से पूछा, "पिताजी, क्या अब मेरे सपने टूट जाएँगे? क्या मैं डॉक्टर नहीं बन पाऊँगा?"

उसके पिता, जो खुद एक किसान थे, ने भारी दिल से कहा, "महेश, अगर ये नीति लागू होती है, तो हमारे पास उच्च शिक्षा और नौकरी पाने के समान अवसर नहीं होंगे। केवल आर्थिक आधार पर हमें अवसरों से वंचित किया जाएगा।"

समाज की महिलाओं ने भी इस मुद्दे पर गहरी चिंता व्यक्त की। रमा देवी, जिनकी दो बेटियाँ थीं, ने कहा, "हमारी बेटियों को शिक्षा और विवाह में समान अवसर नहीं मिलेंगे। उन्हें हमेशा से पीछे समझा जाएगा, सिर्फ इसलिए कि हम आर्थिक रूप से थोड़े से बेहतर स्थिति में हैं।"

कई गाँव के युवाओं में इस फैसले के खिलाफ गुस्सा पनपने लगा। वे समझ रहे थे कि इस नीति से समाज में विभाजन और भेदभाव बढ़ेगा। अमीर और गरीब के बीच की खाई गहरी होगी, जिससे समाज में असमानता बढ़ेगी।

रामलाल, जो किसी गाँव का एक कारीगर था, ने कहा, "अगर यह नीति लागू हुई, तो हमारे रोजगार के अवसर कम हो जाएँगे। सरकार की योजनाएँ, जो हमें समर्थन देती हैं, उन तक हमारी पहुँच कम हो जाएगी। हमारे बच्चों को सरकारी नौकरियों में भी पीछे रखा जाएगा।"

समाज के कई गाँव में लगातार असंतोष बढ़ता गया। वे जानते थे कि क्रीमेलियर नीति का लागू होना उनके भविष्य को अंधकार में धकेल देगा। इसलिए, पूरे राणा थारू समाज ने इस फैसले के खिलाफ आवाज उठाने का निर्णय लिया। 

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका दाखिल की, जिसमें उन्होंने इस नीति के सामाजिक और आर्थिक प्रभावों को स्पष्ट रूप से रखा। उन्होंने तर्क दिया कि यह नीति उनकी सांस्कृतिक विरासत, उनके रोजगार और उनके बच्चों के भविष्य के लिए खतरा है।

समाज के बुजुर्ग, युवा, महिलाएँ, और बच्चे सब मिलकर इस संघर्ष में शामिल हो गए। उन्होंने शांति पूर्वक प्रदर्शन किया, सरकार और न्यायपालिका से अपनी पीड़ा को साझा किया। उन्होंने यह संदेश दिया कि राणा थारू समाज के लिए एकता, समानता और सम्मान सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं।

आखिरकार, उनकी एकजुटता और संघर्ष रंग लाया। सुप्रीम कोर्ट ने क्रीमेलियर नीति के खिलाफ फैसला दिया और सरकार ने राणा थारू समाज को उसके अधिकारों से वंचित होने से बचा लिया। इस संघर्ष ने साबित कर दिया कि जब लोग अपनी संस्कृति, पहचान, और अधिकारों के लिए एकजुट होकर खड़े होते हैं, तो कोई भी बाधा उन्हें रोक नहीं सकती।

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**निष्कर्ष:**  
इस कहानी का उद्देश्य यह दिखाना है कि क्रीमेलियर नीति के कारण राणा थारू समाज को रोजगार, शिक्षा, और सामाजिक समानता में बड़े नकारात्मक प्रभावों का सामना करना पड़ सकता है। इस नीति से समाज में विभाजन, असमानता और असंतोष की भावना बढ़ सकती है। कहानी के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट और सरकार से इस फैसले को वापस लेने का आह्वान किया गया है ताकि समाज की एकता और विकास को संरक्षित रखा जा सके।


राणा संस्कृति मंजूषा की प्रस्तुति 

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