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कविता: "मां की गोद"रचनाकार: कैप्टन सुरजीत सिंह राणाविद्यालय: ठाकुर श्याम सिंह रावत जगत सिंह रावत राधे हरि राजकीय इंटर कॉलेज, टनकपुर (चंपावत)

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कविता: "मां की गोद" रचनाकार: कैप्टन सुरजीत सिंह राणा विद्यालय: ठाकुर श्याम सिंह रावत जगत सिंह रावत राधे हरि राजकीय इंटर कॉलेज, टनकपुर (चंपावत) 🌸 कविता का भावार्थ एवं विश्लेषण: यह कविता मां की ममता, वात्सल्य, स्नेह और त्याग का अत्यंत कोमल और भावुक चित्रण करती है। रचनाकार ने बचपन की सबसे सुरक्षित, सबसे सुकूनदायक जगह – "मां की गोद" – को जीवन का पहला स्वर्ग कहा है। 🪔 मुख्य बिंदु एवं विश्लेषण: 1. मां की गोद = सारा जहां और पहला स्वर्ग > "छोटे से आंचल में सारा जहां समाया, मां की गोद में ही तो पहला स्वर्ग पाया।" 👉 यह पंक्तियाँ यह दिखाती हैं कि एक बच्चे के लिए मां की गोद पूरी दुनिया होती है। बच्चा वहीं सबसे पहले स्नेह, सुरक्षा और अपनापन महसूस करता है। 2. मां की मुस्कान = बच्चे की दुनिया > "नन्हे कदमों की जब हलचल हुई, मां की मुस्कान में सजी दुनिया नई।" 👉 जब बच्चा चलना सीखता है, तो मां की मुस्कान ही उसकी सबसे बड़ी प्रेरणा बनती है। मां की खुशी बच्चे की दुनिया बन जाती है। 3. मां की संवेदनशीलता > "नींद न आए तो वह थपकी सुनाए, आंखों...

कविता: "वो किसान जो खुद भूखा है..." भाग 1 व 2

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कविता विश्लेषण और भावार्थ ✍️ कविता: "वो किसान जो खुद भूखा है..." भाग 1 व 2 ✍️ नवीन सिंह राणा 🌾 भावार्थ (अर्थ) भाग 1: यह कविता उस किसान की कथा है, जिसका नाम इतिहास की किताबों में नहीं दर्ज, और जिसकी छाया भी चुनावी वादों में नहीं होती। वह किसान, जो सूखी मिट्टी को अपनी सांसों से सींचता है, वही आज गाँव-गाँव सबसे पीछे है। उसके पसीने से धरती भीगती है, और अन्न पैदा होता है, पर उसी की झोपड़ी खाली रहती है, बच्चे भूखे होते हैं, बेटी की शादी अटकती है, और जीवन कर्जों में डूबा होता है। गर्मी, सर्दी, बारिश – हर मौसम उसके मन, तन और सपनों पर वार करता है। वो कभी बीमार होता है, कभी आत्महत्या करने की स्थिति में पहुँचता है, पर फिर भी खेती से उम्मीद नहीं छोड़ता। कविता का यह भाग किसान की मेहनत, उसकी पीड़ा, उसकी अवहेलना, और उसके संघर्ष को अत्यंत संवेदनशीलता से उजागर करता है। 🌾 भावार्थ (अर्थ) भाग 2: इस भाग में किसान की मानसिक, सामाजिक और राजनीतिक उपेक्षा पर तीखा व्यंग्य और भावनात्मक प्रश्न उठाए गए हैं। किसान कुछ दिनों के लिए "जनता" कहलाता है, फिर वह सिर्फ आंकड़ों में सिमट जात...

काव्य संवाद : "प्रेरणा की परछाईं में"

🌿 काव्य संवाद : "प्रेरणा की परछाईं में" ✍️ लेखनी: नवीन सिंह राणा के संवाद पर आधारित [निकेता:] कौन सा है ये अनुपम ऐप, जहाँ लेखों का होता माप? पढ़ा सभी ने, जान लिया, तेरे भावों का अनुपम ताप। [नवीन:] कोई ऐप नहीं, ये ब्लॉग है प्यारा, कितनों ने पढ़ा, बताता इशारा। तेरी कविता पर शब्द रचे हैं, मन के भावों को शब्दों में कसे हैं। [निकेता:] बहुत सुंदर लिखा है तुमने, अब तो कोई रोक न पाए। प्रकाशन की ओर बढ़ते क़दम, हर कोई बस वाह-वाह गाए। [नवीन:] प्रेरणा कहाँ से आती है, मैं भी नहीं जानता, पहले भी लिखा, पर खाली सा मानता। अब कुछ है जो भीतर से बोलता है, शब्दों को नए रंगों में खोलता है। [निकेता:] प्रेरणा तो है प्रकृति की गोद में, बच्चों की मुस्कान, खेत की ओस में। नदियाँ, जंगल, मिट्टी की बयार, ये सब बनते हैं कविता का आधार। [नवीन:] गीता कहती है जो न दुख से डरे, न सुख में डूबे, न पाने से फिरे। न भूत का भार, न भविष्य की चाह, क्या कहें ऐसे को, कहाँ से लाएं राह? [निकेता:] शायद समय ही उसका नाम है, या फिर वो... ! 😁 [नवीन:] हाहाहा! क्या खूब कही बात, थोड़ी सी हंसी भी है ज़रूरी साथ। वरना दर्शन की गहराई ...

लघु कथा: "चाचा के बैलों की जोड़ी"

लघु कथा: "चाचा के बैलों की जोड़ी" ✍️ लेखक: नवीन सिंह राणा  📚 शैली: ग्रामीण, भावनात्मक, यथार्थपरक 🌾 कहानी प्रारंभ गांव का नाम था बसंतपुर, गांव में बहुत सारे परिवारों के साथ ही अपने परिवार के साथ और वहाँ रहते थे रामदीन चाचा — एक सीधे-सादे, मेहनती किसान। उनकी पहचान थी उनकी सफेद बैलों की एक प्यारी जोड़ी, जिन्हें सब 'राजा' और 'रतन' के नाम से जानते थे। लेकिन गांववाले कहते थे — "रामदीन चाचा और उनके बैल एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं।" और यह था भी सच। रामदीन चाचा सुबह सूरज उगने से पहले उठते, राजा-रतन को प्यार से रोटी खिलाते, फिर खेतों की ओर निकल पड़ते। बैल भी मानो चाचा की हर बात समझते हों — जब हल चलाना होता तो खुद आगे बढ़ जाते, जब पानी पीना होता तो खुद रुक जाते। चाचा उनके साथ बातें करते, हँसते, गुनगुनाते। राजा और रतन चाचा के लिए सिर्फ जानवर नहीं थे — वो उनके साथियों जैसे थे, बेटे जैसे थे। गांव के बच्चों को अक्सर चाचा कहते सुनाई देते, "इन बैलों ने मेरे साथ मिलकर ये खेत बसाए हैं, ये घर बनाया है, ये जीवन खड़ा किया है।" 🌿 एक सुबह, जो सब बदल गई... एक दिन...

कविता:चाचा के बैलों की एक जोड़ी (राणा थारू समाज के एक गांव की सत्य घटना पर आधारित ")

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राणा थारू समाज के एक गांव की सत्य घटना पर आधारित "चाचा के बैलों की एक जोड़ी "( कविता) एक बालिका जिसका नाम निकेता है उसके परिवार में एक दुखांत घटना घटती है जिससे वह इतनी आहत होती है कि वह अपने हृदय की वेदना को शब्दों में उकेरने का प्रयास करती है जो नीचे दी गई है  एक थी प्यारे सफेद बैलों की जोड़ी , जुड़े हुए थे वह चाचा से कोई प्रेम की डोरी । करते थे वह चाचा को ढेर सारा प्यार , चाचा भी उन पर करते थे ढेर सारा दुलार । वह दिन भर खेतों में जब काम करते , चाचा भी उनके साथ चलते -फिरते । कभी हल चलाते , कभी मेड़ बनाते , कभी क्यारी बनाते , कभी बाड़े लगाते । जब खेतों में थे वह फसल लगाते , उसे देख के वह सब मंद-मंद मुस्काते । इसी एक उम्मीद पर‌ कि जब फसलें लहलहायेंगीं , सारे‌ दुःख-दर्द दूर होंगे ढेर सारी खुशियां आयेंगी । एक दिन चाचा अचानक से हो गये बीमार , शरीर कमजोर होने से चलने में हो गये वह लाचार उनको ठीक करने में घरवालों ने लड़ी-लडाई , लाखों उपचारों के बाद भी,एक दिन उनको मृत्यु आई । चारों तरफ से छा गये दुःख के ढेरों बादल , आंसुओं से भीग रहे थे सब लोगों के आंचल । चाचा के आज ज...

🌺 माँ की वंदना: हे मातृ तेजस्विता वत्सले 🌺

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कविता का शीर्षक: 🌺 माँ की वंदना: हे मातृ तेजस्विता वत्सले 🌺 ✍️ नवीन सिंह राणा 🌸 भावार्थ / सारांश: इस कविता में माँ की तेजस्विता, ममता, संस्कार और जीवन में उनके अतुलनीय योगदान का वंदन किया गया है। कवि माँ को वात्सल्य, करुणा, श्रद्धा, शिक्षा और प्रेम की अविरल अमृतधारा बताते हैं। माँ के आशीर्वाद को कवि जीवन की सबसे बड़ी पूंजी मानते हैं, जो दुख-दर्द, पीड़ा और असमर्थता को भी हर लेती है। माँ केवल जन्मदात्री नहीं, बल्कि जीवन को ज्योति देने वाली शक्ति हैं। माँ का स्पर्श और उपस्थिति हर विकलता का समाधान है। कवि कहते हैं कि माँ के बिना संसार अधूरा है, हर गीत, हर भावना, हर प्रीति माँ की उपस्थिति से ही सजीव होती है। माँ की दी गई शिक्षा जीवन की मूलभूत नींव है, जिससे जीवन हर पग पर आगे बढ़ता है। कविता का अंतिम भाग माँ को धात्री (पोषक), अंबा (मातृरूप), वात्सल्यमयी और विशाल हृदय वाली देवी के रूप में नमन करता है। 🌟 काव्य विशेषताएँ: भाषा सरल, भावपूर्ण और गूढ़ है। छंदबद्धता और लयात्मकता सुंदर है। बिंबात्मकता: “गंगाजल शीतल”, “हर प्रीति की पुंजिता”, “हृदय अति विशाल” जैसे उपमान प्रभावी हैं। भा...

कविता: हे हिंदी प्रभा निकेतनम! ✍️ नवीन सिंह राणा

 कविता: हे हिंदी प्रभा निकेतनम! ✍️ नवीन सिंह राणा जो सुंदर कविता साझा की  गई है – "हे हिंदी प्रभा निकेतनम!" – इसका एक-एक पंक्ति का अर्थ स्पष्ट रूप में नीचे दिया जा रहा है। 1. हे हिंदी प्रभा निकेतनम! हे भाषा विद्या निकेतनम! ➤ हे हिंदी ज्ञान की चमक की निवास स्थली! हे भाषा और विद्या का घर! 2. अनिकेत तुम, हिंदी निकेतनम। ➤ तुम सीमाओं से परे हो, फिर भी हिंदी के रूप में एक विशेष आश्रय हो। 3. ज्ञान की वाहिनी, अनुशंसा प्रवाहिनी, ➤ तुम ज्ञान की धारा हो, और श्रेष्ठता की प्रेरणा देने वाली हो। पं क्ति "ज्ञान की वाहिनी, अनुशंसा प्रवाहिनी," का भावार्थ है: "तुम ज्ञान को वहन करने वाली हो और श्रेष्ठ विचारों की सतत धार बहाने वाली हो।" शब्दार्थ: ज्ञान की वाहिनी: ज्ञान को धारण करने वाली, उसे फैलाने वाली। अनुशंसा प्रवाहिनी: उत्तम विचारों, गुणों या आदर्शों की निरंतर धारा प्रवाहित करने वाली। भावार्थ (विस्तार से): यह पंक्ति किसी हिंदी भाषा के आश्रय स्थल  की स्तुति में कही गई है। वह ज्ञान की संवाहक है — लोगों को शिक्षित करती है, सोचने की दिशा देती है। साथ ही वह उत्तम बातों (अनुशंसा...