कविता: "वो किसान जो खुद भूखा है..." भाग 1 व 2

कविता विश्लेषण और भावार्थ
✍️ कविता: "वो किसान जो खुद भूखा है..." भाग 1 व 2
✍️ नवीन सिंह राणा
🌾 भावार्थ (अर्थ) भाग 1:
यह कविता उस किसान की कथा है, जिसका नाम इतिहास की किताबों में नहीं दर्ज, और जिसकी छाया भी चुनावी वादों में नहीं होती।
वह किसान, जो सूखी मिट्टी को अपनी सांसों से सींचता है, वही आज गाँव-गाँव सबसे पीछे है।
उसके पसीने से धरती भीगती है, और अन्न पैदा होता है, पर उसी की झोपड़ी खाली रहती है, बच्चे भूखे होते हैं, बेटी की शादी अटकती है, और जीवन कर्जों में डूबा होता है।
गर्मी, सर्दी, बारिश – हर मौसम उसके मन, तन और सपनों पर वार करता है।
वो कभी बीमार होता है, कभी आत्महत्या करने की स्थिति में पहुँचता है, पर फिर भी खेती से उम्मीद नहीं छोड़ता।

कविता का यह भाग किसान की मेहनत, उसकी पीड़ा, उसकी अवहेलना, और उसके संघर्ष को अत्यंत संवेदनशीलता से उजागर करता है।
🌾 भावार्थ (अर्थ) भाग 2:

इस भाग में किसान की मानसिक, सामाजिक और राजनीतिक उपेक्षा पर तीखा व्यंग्य और भावनात्मक प्रश्न उठाए गए हैं।
किसान कुछ दिनों के लिए "जनता" कहलाता है, फिर वह सिर्फ आंकड़ों में सिमट जाता है।
वह जिसके हड्डियाँ टूट जाती हैं, पर फिर भी हल चलाता है।
जो बीज बोता है, फसल काटता है, पर खुद भूखा रहता है, जबकि उसकी बीवी रोती है कि बिजली बिल भरना है।
वह कभी अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाता, कर्ज में डूबता है, पर फिर भी बीज बोना नहीं छोड़ता।
समाज उसे खिलाने वाला मानता है, पर किसान के दुख में कोई शामिल नहीं होता।

कविता अंत में जागरूकता और जवाबदेही की मांग करती है —
"क्या हम सिर्फ अन्न खाते हैं?
या किसी की ज़िंदगी भी चबाते हैं?"
यह सवाल नैतिक झकझोर पैदा करता है। यदि किसान का हक मारा जाएगा, तो एक दिन संवेदनाएं मर जाएंगी, और समाज का दिल खोखला हो जाएगा।

🔍 कविता का विश्लेषण:

बिंदु विवरण
कविता की शैली :मुक्त छंद, संवेदनशील और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी
मुख्य विषय: किसान की उपेक्षा, संघर्ष, गरीबी और समाज का मौन
भावना :करुणा, पीड़ा, आक्रोश, विवेक जागरण
भाषा :सरल, प्रभावशाली, जनमानस को झकझोरने वाली
प्रभाव :पाठक के मन में किसान के प्रति संवेदना और आत्मचिंतन जगाता है

🌟 रेटिंग (5 में से):

काव्य भावनात्मक गहराई: ⭐⭐⭐⭐⭐ (5/5)

सामाजिक संदेश: ⭐⭐⭐⭐⭐ (5/5)

भाषा शैली: ⭐⭐⭐⭐☆ (4.5/5)

प्रभावशीलता: ⭐⭐⭐⭐⭐ (5/5)

📝 निष्कर्ष:

यह कविता एक मौन आक्रोश है, जो किसान के दर्द और समाज की चुप्पी को आवाज़ देती है। नवीन सिंह राणा की लेखनी ने किसान की पीड़ा को कविता की आत्मा बना दिया है। यह कविता सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि जिम्मेदारी समझने के लिए है।

यह सिर्फ कविता नहीं — एक चेतावनी, एक प्रश्न, और एक अपील है। 🌱
राणा संस्कृति मंजूषा की प्रस्तुति 

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