कविता:चाचा के बैलों की एक जोड़ी (राणा थारू समाज के एक गांव की सत्य घटना पर आधारित ")

राणा थारू समाज के एक गांव की सत्य घटना पर आधारित "चाचा के बैलों की एक जोड़ी "( कविता)


एक बालिका जिसका नाम निकेता है उसके परिवार में एक दुखांत घटना घटती है जिससे वह इतनी आहत होती है कि वह अपने हृदय की वेदना को शब्दों में उकेरने का प्रयास करती है जो नीचे दी गई है 

एक थी प्यारे सफेद बैलों की जोड़ी ,
जुड़े हुए थे वह चाचा से कोई प्रेम की डोरी ।
करते थे वह चाचा को ढेर सारा प्यार ,
चाचा भी उन पर करते थे ढेर सारा दुलार ।
वह दिन भर खेतों में जब काम करते ,
चाचा भी उनके साथ चलते -फिरते ।
कभी हल चलाते , कभी मेड़ बनाते ,
कभी क्यारी बनाते , कभी बाड़े लगाते ।
जब खेतों में थे वह फसल लगाते ,
उसे देख के वह सब मंद-मंद मुस्काते ।
इसी एक उम्मीद पर‌ कि जब फसलें लहलहायेंगीं ,
सारे‌ दुःख-दर्द दूर होंगे ढेर सारी खुशियां आयेंगी ।
एक दिन चाचा अचानक से हो गये बीमार ,
शरीर कमजोर होने से चलने में हो गये वह लाचार
उनको ठीक करने में घरवालों ने लड़ी-लडाई ,
लाखों उपचारों के बाद भी,एक दिन उनको मृत्यु आई ।
चारों तरफ से छा गये दुःख के ढेरों बादल ,
आंसुओं से भीग रहे थे सब लोगों के आंचल ।
चाचा के आज जाने से वो बैल भी रो रहे थे ,
न जाने क्या होगा अब उनका वो तो क्या-क्या सोच रहे थे ।
कुछ ही दिन बीते थे, कुछ ही रातें बीतीं थीं ,
अलग-अलग दामों में अब उनकी बोली लगती थीं ।
एक दिन किसी गांव से दो आदमी थे आये ,
उनको गये फिर बैल थे दिखाये ।
उन्होंने बैलों को देखा ऐसा , कोहीनूर हीरा मिला है जैसा ,
कहने लगे वो क्या दाम है इनका , कितना लोगे इनका पैसा ।
फिर दस हजार रूपए में बोली लगी थी ,
फिर लेने वालों को वह मंहगी लगी थी ।
अब नौ हजार में उनका सौदा हुआ था
घर को बनाने में बैलों ने कितना सहयोग किया था
कुछ दिन बाद वह बैलों को लेने आये ,
साथ में वह उनकी कीमत भी लाये ।
जब उन्होंने दी चाची के हाथों में कीमत को ,
चाची रोकर सोच रही अपनी ही किस्मत को ।
अब वह बैल ले जाने को हो गये थे तैयार ,
चाची और मां की आंखों से आंसू निकले लाखों बार ।
अब बैल भी उनके साथ चलने को हो गये थे तैयार
चाची ने उनको प्यार किया और सहलाया बार-बार
उनको फिर दुआएं दी और कहे शब्द अंतिम बार ,
आज से ये तुम्हारे मालिकआज से ये तुम्हारे मालिक हैं, तुम पर हैं इनका
अधिकार ।
खूब कमाई करना तुम,घर में हैं तुम्हें अब खुशियां लाना ,
आज मिलन है अंतिम बार, ये है हमें खुद को समझाना ।
बैल थे अब जाने लगे , चाची उनको थी देख रही ,
कभी जोर से कभी धीरे से सुबक-सुबक रो रही ।
न जाने कितना रोई थी , कितने आंसू बहाये थे ,
मालिक के उनके जाने से, बैल हो गये पराये थे ।
कितना सहयोग भरा था, चाचा और बैल का रिश्ता
आज खत्म वह हो गया था, धीरे-धीरे और आहिस्ता
कितने दिनों तक न जाने चाची ने कुछ खाना खाया
रो-रोकर के उनका शरीर कमजोर था हो आया ।
कैसी है ये नियती आई , कैसे-कैसे दिन हैं आते
आज भी जब बैलों को याद हैं करते , आंखो में आंसू भर आते ।।



🌾 संपूर्ण भावार्थ — "चाचा के बैलों की एक जोड़ी"

यह कविता एक ऐसे मानवीय रिश्ते को उकेरती है जो मानव और पशु के बीच भावनात्मक अपनत्व, निस्वार्थ सहयोग और परस्पर प्रेम पर टिका होता है। कहानी शुरू होती है दो सफेद प्यारे बैलों की जोड़ी से, जो चाचा के जीवन का हिस्सा नहीं, बल्कि उनकी आत्मा के साथी बन चुके थे। वे केवल बैल नहीं थे — वे घर के सदस्य थे, संघर्ष के साथी थे, और आशा के प्रतीक थे।

चाचा और वह बैल खेतों में साथ दिन बिताते थे। कभी हल चलाते, कभी खेतों की मेड़ बनाते। उनकी दिनचर्या में सिर्फ काम नहीं था, उसमें सपने थे — उस फसल के जो लहलहाकर उनकी मेहनत को मुस्कान में बदल देती। हर बीज में एक उम्मीद थी कि कभी तो ऐसा दिन आएगा जब सारी पीड़ा दूर होगी और जीवन खुशियों से भर जाएगा।

लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। अचानक एक दिन चाचा बीमार पड़ जाते हैं। पूरा परिवार उनकी देखभाल में जुट जाता है, लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी चाचा इस दुनिया को अलविदा कह देते हैं। घर में सिर्फ इंसान नहीं रोते, वो बैल भी आंसू बहाते हैं, जिन्हें शायद चाचा की हर बात समझ में आती थी। यही उस रिश्ते की गहराई है, जिसे शब्दों से नहीं, बस दिल से महसूस किया जा सकता है।

चाचा के जाने के बाद वह बैल घर पर एक चुप्पी और खालीपन के बीच जी रहे थे। लेकिन आर्थिक मजबूरियां सिर उठाती हैं। घर चलाने के लिए वो बैल अब बोली में चढ़ते हैं। जिस जोड़ी ने घर बसाने में खून-पसीना बहाया, उसे अब बेचने की नौबत आ जाती है।

जब बैलों को ले जाने वाले लोग आते हैं, तो चाची अपने हाथों से उन बैलों को सहलाती हैं। उनकी आंखों से बहते आंसू सिर्फ बैलों को नहीं विदा कर रहे होते, वो चाचा की स्मृतियों को, अपने संघर्षों की साझेदारी को और जीवन के एक पूरे युग को विदा कर रही होती हैं। वो उन्हें दुआ देती हैं – जैसे कोई मां अपने बेटे को अंतिम बार आशीर्वाद देकर विदा करती है।

बैल भी सब समझते हैं। वे चुपचाप चल देते हैं, लेकिन उनकी आंखें बोल रही होती हैं – “क्या अब हम पराया हो गए?” चाची की आंखों में वह दृश्य हमेशा के लिए बस जाता है। और फिर शुरू होता है एक शोक का काल — न भूख लगती है, न नींद आती है। चाची बस यादों में डूबी रहती हैं — उन खेतों की, उन पलों की, जब चाचा और बैल साथ थे।

आज भी जब चाची उस बैलों की जोड़ी को याद करती हैं, तो उनकी आंखें भीग जाती हैं। वह रोती नहीं, पर भीतर से हर बार टूट जाती हैं। क्योंकि जब कोई साथी सिर्फ शरीर से नहीं, आत्मा से जुड़ा होता है, तो उसका जाना जीवन में एक रिक्तता छोड़ जाता है — जिसे कोई भर नहीं सकता।


🌺 इस कविता की आत्मा क्या कहती है?

यह कविता सिर्फ एक परिवार की कहानी नहीं है — यह हर उस किसान, हर उस स्त्री, हर उस पशु की कहानी है, जो समर्पण से जुड़ते हैं और फिर मजबूरी में बिछड़ते हैं।

यह हमें सिखाती है कि –

  • रिश्ते सिर्फ खून से नहीं बनते, सेवा, साथ और समर्पण से बनते हैं।
  • पशु भी प्रेम को समझते हैं और विछोह का दुख सहते हैं।
  • गरीबी सिर्फ आर्थिक नहीं होती, भावनात्मक भी होती है, जब इंसान अपनी आत्मा के हिस्से को भी बेचना पड़ता है।

🕯️ अंतिम पंक्तियों में छुपा संदेश:

“कैसी है ये नियती आई, कैसे-कैसे दिन हैं आते
आज भी जब बैलों को याद हैं करते, आंखो में आंसू भर आते।”

इन पंक्तियों में केवल एक बैल जोड़ी की विदाई नहीं है — यहाँ एक संघर्षशील जीवन का अंत, सपनों का टूटना और स्मृतियों में जिंदा प्रेम है।


🙏 नमन उन चाचाओं को, उन बैलों को, और उन चाचियों को

जो जीवन की चक्की में पिसकर भी प्रेम और ममता का दीप जलाए रखते हैं।


उपरोक्त कविता: चाचा के बैलों की एक जोड़ी 

की एक एक पंक्ति का अर्थ नीचे दिया जा रहा है।

1. एक थी प्यारे सफेद बैलों की जोड़ी,
→ चाचा के पास सफेद रंग की प्यारी बैलों की एक जोड़ी थी।

2. जुड़े हुए थे वह चाचा से कोई प्रेम की डोरी।
→ वे बैल चाचा से गहरे प्रेम और आत्मीयता से जुड़े हुए थे।

3. करते थे वह चाचा को ढेर सारा प्यार,
→ बैल अपने मालिक चाचा से बहुत प्रेम करते थे।

4. चाचा भी उन पर करते थे ढेर सारा दुलार।
→ चाचा भी उन बैलों को बहुत स्नेह और प्यार देते थे।

5. वह दिन भर खेतों में जब काम करते,
→ जब दिनभर बैल खेतों में मेहनत करते थे,

6. चाचा भी उनके साथ चलते-फिरते।
→ चाचा भी उनके साथ रहते, काम करते और उनका साथ निभाते।

7. कभी हल चलाते, कभी मेड़ बनाते,
→ कभी खेत में हल चलाते और कभी खेतों की मेड़ बनाते।

8. कभी क्यारी बनाते, कभी बाड़े लगाते।
→ कभी सब्जियों की क्यारी तैयार करते, तो कभी खेत की बाड़ बनाते।

9. जब खेतों में थे वह फसल लगाते,
→ जब खेत में फसल बोई जाती थी,

10. उसे देख के वह सब मंद-मंद मुस्काते।
→ तो बैल और चाचा खुशी-खुशी उसे देखकर मुस्कुराते थे।

11. इसी एक उम्मीद पर‌ कि जब फसलें लहलहायेंगीं,
→ इस आशा में कि जब फसलें अच्छी होंगी,

12. सारे‌ दुःख-दर्द दूर होंगे, ढेर सारी खुशियां आयेंगी।
→ तब सब दुख मिट जाएंगे और घर में खुशियां आएंगी।

बीमारी और बिछड़ने का दौर:

13. एक दिन चाचा अचानक से हो गये बीमार,
→ एक दिन अचानक चाचा बीमार हो गए।

14. शरीर कमजोर होने से चलने में हो गये वह लाचार
→ कमजोरी के कारण वे चलने-फिरने में असमर्थ हो गए।

15. उनको ठीक करने में घरवालों ने लड़ी-लड़ाई,
→ घरवालों ने उनकी बीमारी से लड़ने की भरसक कोशिश की।

16. लाखों उपचारों के बाद भी, एक दिन उनको मृत्यु आई।
→ कई इलाजों के बावजूद, एक दिन चाचा की मृत्यु हो गई।

17. चारों तरफ से छा गये दुःख के ढेरों बादल,
→ घर और गांव में शोक की लहर छा गई।

18. आंसुओं से भीग रहे थे सब लोगों के आंचल।
→ सभी लोग शोक में थे और रो-रोकर दुख व्यक्त कर रहे थे।

19. चाचा के आज जाने से वो बैल भी रो रहे थे,
→ चाचा की मौत से बैल भी उदास और दुखी थे।

20. न जाने क्या होगा अब उनका, वो तो क्या-क्या सोच रहे थे।
→ बैल भी सोच में डूबे थे कि अब उनका भविष्य क्या होगा।

बिकने का समय:

21. कुछ ही दिन बीते थे, कुछ ही रातें बीतीं थीं,
→ चाचा के निधन को कुछ ही दिन और रातें बीती थीं,

22. अलग-अलग दामों में अब उनकी बोली लगती थीं।
→ अब बैलों की बोली लगाई जा रही थी — उन्हें बेचा जा रहा था।

23. एक दिन किसी गांव से दो आदमी थे आये,
→ एक दिन गांव के बाहर से दो व्यक्ति आए।

24. उनको गये फिर बैल थे दिखाये।
→ उन्हें बैलों को दिखाया गया।

25. उन्होंने बैलों को देखा ऐसा, कोहीनूर हीरा मिला है जैसा,
→ उन्होंने बैलों को देखकर कहा कि ये तो जैसे कोहिनूर हीरा हैं।

26. कहने लगे वो क्या दाम है इनका, कितना लोगे इनका पैसा।
→ वे बैलों की कीमत पूछने लगे।

27. फिर दस हजार रूपए में बोली लगी थी,
→ पहले बोली 10,000 रुपए की लगी।

28. फिर लेने वालों को वह मंहगी लगी थी।
→ पर उन्हें ये कीमत ज्यादा लगी।

29. अब नौ हजार में उनका सौदा हुआ था
→ अंततः 9,000 रुपये में बैल बेच दिए गए।

30. घर को बनाने में बैलों ने कितना सहयोग किया था
→ ये वही बैल थे जिन्होंने चाचा के साथ मिलकर घर बसाया था।

बिछड़ने की वेदना:

31. कुछ दिन बाद वह बैलों को लेने आये,
→ कुछ दिन बाद वे लोग बैलों को लेने फिर आए।

32. साथ में वह उनकी कीमत भी लाये।
→ उन्होंने साथ में पैसे भी लाए।

33. जब उन्होंने दी चाची के हाथों में कीमत को,
→ जब उन्होंने चाची को पैसे दिए,

34. चाची रोकर सोच रही अपनी ही किस्मत को।
→ चाची रोते हुए अपनी हालत और किस्मत को कोस रही थीं।

35. अब वह बैल ले जाने को हो गये थे तैयार,
→ अब बैल जाने के लिए तैयार कर दिए गए थे।

36. चाची और मां की आंखों से आंसू निकले लाखों बार।
→ चाची और मां की आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी।

37. अब बैल भी उनके साथ चलने को हो गये थे तैयार
→ बैल भी चुपचाप उनके साथ चलने को तैयार हो गए।

38. चाची ने उनको प्यार किया और सहलाया बार-बार
→ चाची ने उन्हें बार-बार प्यार से सहलाया।

39. उनको फिर दुआएं दी और कहे शब्द अंतिम बार,
→ चाची ने विदाई में उन्हें दुआ दी और अंतिम शब्द कहे:

40. आज से ये तुम्हारे मालिक हैं, तुम पर हैं इनका अधिकार।
→ "आज से ये तुम्हारे नए मालिक हैं, उनकी सेवा करना।"

41. खूब कमाई करना तुम, घर में हैं तुम्हें अब खुशियां लाना,
→ "नए घर में मेहनत करना और खुशियां लाना।"

42. आज मिलन है अंतिम बार, ये है हमें खुद को समझाना।
→ "ये हमारा आखिरी मिलन है, हमें खुद को यही समझाना है।"

बिछड़ने का असर और स्मृति:

43. बैल थे अब जाने लगे, चाची उनको थी देख रही,
→ बैल अब जा रहे थे, चाची उन्हें देखती जा रही थीं।

44. कभी जोर से कभी धीरे से सुबक-सुबक रो रही।
→ वह कभी धीरे, कभी जोर से सुबक-सुबक कर रो रही थीं।

45. न जाने कितना रोई थी, कितने आंसू बहाये थे,
→ चाची ने बहुत रोया, अनगिनत आंसू बहाए।

46. मालिक के उनके जाने से, बैल हो गये पराये थे।
→ चाचा के निधन के बाद बैल अब पराए हो गए थे।

47. कितना सहयोग भरा था, चाचा और बैल का रिश्ता
→ चाचा और बैलों का रिश्ता परिश्रम, स्नेह और सहयोग से भरा था।

48. आज खत्म वह हो गया था, धीरे-धीरे और आहिस्ता
→ वह संबंध अब धीरे-धीरे टूट गया था।

49. कितने दिनों तक न जाने चाची ने कुछ खाना खाया
→ चाची कई दिनों तक ठीक से खा-पी नहीं सकीं।

50. रो-रोकर के उनका शरीर कमजोर था हो आया।
→ रोने और दुख से उनका शरीर कमजोर हो गया था।

51. कैसी है ये नियती आई, कैसे-कैसे दिन हैं आते
→ यह कैसी नियति है, जो जीवन में ऐसा दुख लेकर आती है।

52. आज भी जब बैलों को याद हैं करते, आंखो में आंसू भर आते।।
→ आज भी जब चाची बैलों को याद करती हैं, उनकी आंखें भर आती हैं।
आशा है आप सभी को उपरोक्त कविता का भावार्थ और अर्थ समझ में आया होगा इसमें कुछ मानवीय त्रुटि हो सकती हैं जिसके लिए खेद है लेकिन लेखक ने उपरोक्त कविता का अर्थ बहुत ही सावधानी पूर्वक लिखने का प्रयास किया है यदि कोई त्रुटि हो तो अवगत कराने का कष्ट करें धन्यवाद ।
🖋️नवीन सिंह राणा 

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