गुरु पूर्णिमा और भारतीय संस्कृति: राणा संस्कृति मंजूषा द्वारा संपादकीय**
**गुरु पूर्णिमा और भारतीय संस्कृति: राणा संस्कृति मंजूषा द्वारा संपादकीय**
गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो न केवल हमारे शास्त्रीय परंपराओं में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, बल्कि आज की आधुनिक जीवनशैली में भी उसका विशेष महत्व है। यह पर्व अषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, और इसे महर्षि वेदव्यास के जन्मदिन के रूप में भी जाना जाता है, जिन्होंने चारों वेदों का संकलन किया था।
भारतीय समाज में गुरु का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण और आदरणीय रहा है। "गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।" इस मंत्र में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश के समान बताया गया है, जो दर्शाता है कि गुरु का स्थान हमारे जीवन में कितनी महत्ता रखता है।
गुरु पूर्णिमा का महत्व सिर्फ धार्मिक या आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं है, बल्कि यह शिक्षा और ज्ञान के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का भी प्रतीक है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमें अपने शिक्षकों और मार्गदर्शकों के प्रति आभार व्यक्त करना चाहिए, जिन्होंने हमें ज्ञान, संस्कार और जीवन के मूल्य सिखाए।
भारतीय संस्कृति में राणा समुदाय का योगदान भी अतुलनीय है। राणा संस्कृति अपने वीरता, सम्मान और संकल्प के लिए जानी जाती है। राणा समुदाय के लोग अपने अदम्य साहस और देशभक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर, राणा संस्कृति मंजूषा द्वारा हमें यह समझने का मौका मिलता है कि शिक्षा और ज्ञान की धारा को आगे बढ़ाने में इस समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
राणा संस्कृति में भी गुरु का आदर और सम्मान उच्चतम स्तर पर होता रहा है। यहाँ गुरु को केवल एक शिक्षक नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक, एक संरक्षक और एक प्रेरणा स्रोत माना जाता है। यह परंपरा हमें यह सिखाती है कि हमें अपने जीवन में गुरु के महत्व को समझना चाहिए और उनकी शिक्षाओं का पालन करना चाहिए।
आज की दुनिया में, जहां तकनीकी और वैज्ञानिक प्रगति अपने चरम पर है, वहां भी गुरु पूर्णिमा का महत्व कम नहीं हुआ है। इस दिन का महत्व सिर्फ परंपरा का निर्वाह करना ही नहीं, बल्कि ज्ञान की अविरल धारा को संजोकर रखना और आने वाली पीढ़ियों तक उसे पहुंचाना भी है।
अंत में, गुरु पूर्णिमा हमें यह सिखाता है कि चाहे समय कितना भी बदल जाए, ज्ञान और शिक्षक का महत्व हमेशा बना रहेगा। राणा संस्कृति की मंजूषा में हम इस पर्व को एक नई दृष्टि से देख सकते हैं, जहां गुरु और शिक्षा की परंपरा को न केवल संरक्षित किया गया है, बल्कि उसे नित नए आयाम भी दिए गए हैं।
इसलिए, आइए इस गुरु पूर्णिमा पर हम सभी अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट करें और उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लें, ताकि भारतीय संस्कृति की यह अमूल्य धरोहर हमेशा हमारे जीवन को आलोकित करती रहे।
*राणा संस्कृति मंजूषा*