विश्व वर्षावन दिवस और राणा थारू समाज: एक महत्वपूर्ण समन्वय संपादकीय राणा संस्कृति मंजूषा
विश्व वर्षावन दिवस और राणा थारू समाज: एक महत्वपूर्ण समन्वय
संपादकीय
राणा संस्कृति मंजूषा
Published by Naveen Singh Rana
वर्षावनों का महत्व केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अद्वितीय है। हर साल 22 जून को विश्व वर्षावन दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य इन अमूल्य वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण की दिशा में जागरूकता फैलाना है। इस संदर्भ में, हमारा राणा थारू समाज का योगदान और उनकी संस्कृति पर विचार करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
राणा थारू समाज, जो भारत और नेपाल की सीमा पर स्थित तराई क्षेत्र में निवास करता है, यह एक ऐसा समुदाय है जिसने वर्षो से वर्षावनों के साथ एक विशेष संबंध विकसित किया है। उनकी परंपराएँ और जीवनशैली वर्षावनों पर अत्यधिक निर्भर रही हैं क्योंकि इस समुदाय को प्रकृति पूजक माना जाता है, प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाकर सदियों से थारू समाज के लोग अपनी आजीविका के लिए वनों पर निर्भर करते हैं और पारंपरिक कृषि तथा वनोपज का उपयोग करते हुए अपने जीवनयापन करते रहे हैं।
विश्व वर्षावन दिवस हमें यह अवसर प्रदान करता है कि हम राणा थारू समाज की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को समझें और उनके पारंपरिक ज्ञान का सम्मान करें। यह समाज सदियों से वर्षावनों की रक्षा करते आ रहा है। इनके पारंपरिक कृषि प्रणालियाँ और वनों का उपयोग करने के तरीके हमें स्थायी विकास और पर्यावरण संरक्षण के बारे में महत्वपूर्ण सबक सिखा सकते हैं।
राणा थारू समाज के वन-संरक्षण के प्रयास आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने कि अतीत में थे। उनका गहन पर्यावरणीय ज्ञान, वन्य जीवन के संरक्षण और स्थायी संसाधन प्रबंधन की दिशा में एक मॉडल के रूप में कार्य कर सकता है। विशेष रूप से, इनकी वन-संरक्षण पद्धतियाँ और सामाजिक संरचना, आधुनिक पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने में सहायक हो सकती हैं।
विश्व वर्षावन दिवस का यह संदेश हमें प्रेरित करता है कि हम केवल वनों के संरक्षण की दिशा में ही काम न करें, बल्कि उन समुदायों की भी सराहना करें जो इन वनों की रक्षा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राणा थारू समाज का उदाहरण इस बात का प्रतीक है कि कैसे एक समुदाय अपने पारंपरिक ज्ञान और संस्कृति के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे सकता है।
अंततः, विश्व वर्षावन दिवस और राणा थारू समाज के संदर्भ में, हमें यह समझना चाहिए कि हमारे पर्यावरण का संरक्षण केवल वनस्पतियों और जीवों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें उन सभी सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं का समावेश है जो इन वनों से जुड़े हैं। हमें इस दिशा में मिलकर काम करना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इन अमूल्य धरोहरों का लाभ उठा सकें और एक संतुलित और स्वस्थ पर्यावरण में जी सकें।
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