""शिक्षा के बदलते स्वरूप और उसके मूल्य""
""शिक्षा के बदलते स्वरूप और उसके मूल्य""
नवीन सिंह राणा की कलम से
पाँच दशकों में हमारे राणा समाज के गाँवों में शिक्षा की स्थिति में व्यापक परिवर्तन आया है। एक समय था जब गाँव-गाँव में स्कूलों की कोई व्यवस्था नहीं थी। शिक्षा का केंद्र एक छोटा सा सरकारी स्कूल होता था जो पाँच से सात मील की दूरी पर स्थित होता था। उस समय कुछ ही पढ़े-लिखे लोग होते थे जिन्हें अक्षर ज्ञान था, और वही लोग अन्य ग्रामीणों को अक्षर ज्ञान देकर उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाते थे।
उन दिनों की बात करें तो लोग भले ही औपचारिक शिक्षा में कमज़ोर होते थे, लेकिन उनमें ज्ञान की कोई कमी नहीं थी। वे धार्मिक ग्रंथों को पढ़कर याद कर लेते थे, और उनसे प्रेरणा लेकर गीत, भजन, और दास्तानें बनाते थे। ये लोग अपने ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाते थे, और इसी के माध्यम से समाज को शिक्षित और प्रेरित करते थे।
इसके विपरीत, आज शिक्षा के क्षेत्र में हमने बहुत प्रगति की है। गाँव-गाँव में स्कूल स्थापित हो चुके हैं, उच्च शिक्षा के अवसर बढ़ गए हैं, और डिजिटल माध्यमों से शिक्षा का प्रसार भी हो रहा है। लेकिन, आधुनिक शिक्षा प्रणाली में कुछ महत्वपूर्ण तत्वों की कमी महसूस की जा रही है। आज के समय में भौतिक शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है, और व्यावहारिक ज्ञान का महत्व कम हो गया है।
आजकल, शिक्षा का उद्देश्य महज नौकरी पाने तक सीमित हो गया है। विद्यार्थी पाठ्यपुस्तकों में उलझे रहते हैं और वास्तविक जीवन के अनुभवों से दूर होते जा रहे हैं। जबकि पहले शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास था। लोग अपने जीवन के अनुभवों से सीखते थे और उस ज्ञान का उपयोग समाज के विकास में करते थे।
यह महत्वपूर्ण है कि हम शिक्षा के इस बदलते स्वरूप पर विचार करें। हमें यह समझना होगा कि शिक्षा केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसमें व्यावहारिक ज्ञान, नैतिकता, और संस्कारों का समावेश भी होना चाहिए। हमें अपने बच्चों को न केवल एक सफल करियर के लिए तैयार करना है, बल्कि उन्हें एक अच्छा इंसान भी बनाना है।
इसके लिए हमें पुराने समय की शिक्षा प्रणाली से प्रेरणा लेकर आधुनिक शिक्षा में उन तत्वों को शामिल करना होगा। हमें अपने बच्चों को किताबों के साथ-साथ जीवन के वास्तविक अनुभवों से भी सीखने का अवसर देना होगा। इसके लिए हमें शिक्षा प्रणाली में सुधार करने की आवश्यकता है, ताकि हमारा समाज फिर से ज्ञान और नैतिकता के उच्च मानकों पर खरा उतर सके।
अंत में, हमें यह याद रखना चाहिए कि शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य समाज के हर व्यक्ति को एक बेहतर इंसान बनाना है। इसलिए, हमें अपनी शिक्षा प्रणाली में संतुलन बनाए रखना होगा, ताकि हम अपने पूर्वजों की तरह ज्ञान से परिपूर्ण और नैतिकता से संपन्न समाज का निर्माण कर सकें।
:नवीन सिंह राणा