कविता: पिता (जयप्रकाश राणा आज के समय में राणा थारू समाज के एक उभरते युवा कवि हैं जिनकी रचनाएं यथार्थ परक और हृदय को झकझोर देने वाली होती हैं ।)
Published by Naveen Singh Rana
जयप्रकाश राणा आज के समय में राणा थारू समाज के एक उभरते युवा कवि हैं जिनकी रचनाएं यथार्थ परक और हृदय को झकझोर देने वाली होती हैं ।
कविता: पिता
आसमान से बड़ा तेरा साया है
तू ही है जो मुझे इस दुनिया में लाया है
देखी है बहुत अदाकारी इस दुनिया में
मगर सबसे अलग तूने किरदार निभाया है
दो अक्षरों से मिलकर बना है
मगर भाव बहुत बड़ा है
तेरा हाथ है जब तक सर पे
साथ जैसे भगवान खड़ा है
सहता है चुपचाप सब कुछ
फिर भी मुस्काता है
इतना धैर्य ना जाने कहाँ से लाता है
झेलता है धूप बरसात ठण्ड और आकाल भी
पर कभी भूखा नहीं सुलाता है
देवलोक भी जिसके चरणों में शीश नवाता है
वह पुण्यआत्मा पिता कहलाता है
पिता ने हाथ बढ़ाया तब मेरे कदमों को चलना आया
पिता ने बिठा कर कंधों में दुनिया दारी का पाठ पढ़ाया
जब जब भटकने लगा मैं मंजिल से
हाथ पकड़कर सही रास्ता दिखाया
पिता है तो सबकुछ है
पिता है तो दुःख में भी सुख है
पिता है तो हर मुश्किल आसान है
पिता है तो सुरक्षित सम्मान है
पिता है तो मंदिर का अर्थ है
पिता है तो धरती में स्वर्ग है
अगर जमीं पे खुदा है वो पिता है
उज्जवल भविष्य का जो रास्ता है वो पिता है
तेरे साथ होने से हासिल हर मुकाम होगा
पिता तेरे नाम से ही मेरा नाम होगा
पिता तेरे नाम से ही मेरा नाम होगा
रचयिता -जयप्रकाश राणा
उनके द्वारा रचित यह कविता “पिता” एक अत्यंत भावनात्मक और समर्पित काव्य है, जो पिता के योगदान, त्याग, धैर्य और महानता को गहराई से उजागर करती है। अब इसका आलोचनात्मक विश्लेषण नीचे बिंदुवार किया गया है:
1. विषय-वस्तु (Theme) का विश्लेषण:
कविता का केंद्रीय भाव पिता के प्रति कृतज्ञता है। कवि ने पिता को ईश्वर, मंदिर, स्वर्ग, रक्षक, मार्गदर्शक और संघर्षशील जीवन योद्धा के रूप में प्रस्तुत किया है। यह कविता न केवल पिता के त्याग को रेखांकित करती है, बल्कि उनके मौन बलिदान और आत्मबल पर भी रोशनी डालती है।
2. भाषा और शैली (Language and Style):
सरल, भावपूर्ण और प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग किया गया है, जो हर आयु वर्ग के पाठक को छूती है।
कविता में अनुप्रास (जैसे – "धूप बरसात ठण्ड और आकाल") तथा पुनरुक्ति अलंकार (जैसे – "पिता है तो...") का सुंदर प्रयोग हुआ है।
सामान्य शब्दों में गहरी भावनाएँ संजोई गई हैं, जिससे यह कविता सशक्त और प्रभावी बनती है।
3. काव्यगत सौंदर्य और अलंकार (Poetic Beauty and Figures of Speech):
रूपक अलंकार – पिता को ईश्वर, मंदिर, स्वर्ग आदि से तुलना करना एक गहरा रूपक है।
उत्कर्ष और विभावना – पिता की छवि को आदर्श और परम पूजनीय के रूप में चित्रित करना कवि की भावनात्मक गहराई को दर्शाता है।
चित्रात्मकता – "पिता ने बिठा कर कंधों में दुनिया दारी का पाठ पढ़ाया" जैसी पंक्तियाँ दृश्य सृजन करती हैं।
4. संरचना और शैलीगत विशेषताएँ:
कविता में वृद्धिशीलता है – यह धीरे-धीरे भावों की तीव्रता को बढ़ाते हुए चरम पर पहुँचती है।
"पिता है तो..." की दोहराव शैली पाठक के मन में प्रभाव को दृढ़ करती है।
अंतिम पंक्ति ("तेरे नाम से ही मेरा नाम होगा") कविता को एक पूर्णता और गौरव का भाव देती है।
5. सामाजिक और भावनात्मक संदेश:
कविता आधुनिक समाज को पिता के प्रति संवेदनशील और कृतज्ञ बनने की प्रेरणा देती है।
जहाँ अक्सर "माँ" के प्रति अधिक साहित्य रचा गया है, वहाँ यह कविता "पिता" के अदृश्य योगदान को उजागर करती है।
संभावित सुधार या सुझाव:
कुछ स्थानों पर लय थोड़ी असमान प्रतीत होती है; उदाहरणतः – "झेलता है धूप बरसात ठण्ड और आकाल भी" में मात्राएँ असंतुलित लगती हैं।
यदि कविता को छंदबद्ध रूप दिया जाए तो यह और अधिक प्रभावी बन सकती है।
निष्कर्ष:
जयप्रकाश राणा की यह कविता पिता के प्रति गहन श्रद्धा और सम्मान की अद्भुत प्रस्तुति है। यह न केवल भावनात्मक रूप से गहराई लिए है, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी एक सशक्त संदेश देती है – कि पिता भी उसी ममता, त्याग और समर्पण के पात्र हैं, जिनके बिना जीवन की नींव अधूरी है।
श्रेणी: भावनात्मक, प्रेरणादायक, पारिवारिक काव्य
राणा संस्कृति मंजूषा
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