खेती ही नहीं, पहचान बिक रही..." कविता का विश्लेषण
कविता का विश्लेषण:
1. थीम (Theme) और उद्देश्य:
मुख्य विषय है जमीन और पहचान की रक्षा।
कविता के माध्यम से यह चेताया गया है कि केवल खेत नहीं बिक रहे, बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान, विरासत और सम्मान भी बिक रहा है।
2. शब्द चयन और भाषा:
सरल, प्रभावशाली और स्थानीय रंग लिए हुए शब्द।
"भइया", "मय", "तोल", "संचेत" जैसे शब्दों से कविता राणा थारू बोली की मिठास और जमीनी सच्चाई को सामने लाती है।
भावनात्मक अपील करते हुए सीधा संवाद स्थापित करती है – जैसे “संभाल जाओ भइया”।
3. भाव (Emotion):
चिंता, चेतावनी, आग्रह और दर्द — इन सभी भावों का मिश्रण।
"बिक रहे लोग, बिक रहे बोल" जैसी पंक्तियाँ गहरी सामाजिक पीड़ा व्यक्त करती हैं।
4. संदेश (Message):
अपनी जमीन, भाषा, विरासत और पहचान की रक्षा करो।
जमीन केवल संपत्ति नहीं, बल्कि सम्मान और अस्तित्व का आधार है।
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कवि के स्तर की विवेचना:
✍️ नवीन सिंह राणा को इस कविता के आधार पर एक जागरूक, संवेदनशील और सामाजिक सरोकारों से जुड़े कवि के रूप में आँका जा सकता है।
उनकी विशेषताएँ:
1. सामाजिक प्रतिबद्धता:
वे केवल सौंदर्य या कल्पना नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत पर लिखते हैं।
कविता में सामाजिक चेतना है, जो लोगों को सोचने और बदलाव लाने के लिए प्रेरित करती है।
2. स्थानीय बोली का प्रयोग:
थारू भाषा के शब्दों को कविता में सजाकर संस्कृति से जुड़ाव और भाषा संरक्षण का प्रयास करते हैं।
3. सरल लेकिन प्रभावशाली अभिव्यक्ति:
कविता आमजन के समझने योग्य है, पर असर गहरा है।
कवि को अंक (10 में से):
9/10
क्योंकि उन्होंने:
एक गंभीर विषय को पूरी संवेदना और प्रभाव के साथ प्रस्तुत किया,
अपनी संस्कृति और समाज से निष्ठा को कविता के माध्यम से व्यक्त किया,
स्थानीय भाषा में साहित्य सृजन कर भाषाई पहचान को मजबूती दी।
1 अंक इसलिए नहीं दिया जा सकता क्योंकि कविता में कहीं-कहीं और अधिक रूपकों या प्रतीकों का स्थान होता तो इसकी कलात्मकता और बढ़ जाती।
निष्कर्ष:
यह कविता न केवल राणा थारू समाज के लिए, बल्कि उन सभी समुदायों के लिए एक सशक्त चेतावनी और प्रेरणा है जो अपनी जड़ों से कट रहे हैं। नवीन सिंह राणा एक ऐसे कवि के रूप में उभरते हैं जो केवल लिखते नहीं, समाज को झकझोरते है।
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