विषय: अन्य प्रवासी समुदायों की तुलना में राणा थारू समाज का आर्थिक विकास क्यों नहीं हो पाया: एक विचार और विश्लेषणलेखक: नवीन सिंह राणा
विषय: अन्य प्रवासी समुदायों की तुलना में राणा थारू समाज का आर्थिक विकास क्यों नहीं हो पाया: एक विचार और विश्लेषण
लेखक: नवीन सिंह राणा
राणा थारू समाज सदियों से तराई क्षेत्र में निवास करता आया है और निरंतर सांस्कृतिक, सामाजिक व आर्थिक उन्नति की दिशा में प्रयास करता रहा है। परंतु, इतनी लंबी अवधि बीत जाने के बावजूद, यह समाज उन प्रवासी समुदायों की तरह विकसित नहीं हो पाया, जो अन्य स्थानों से आकर यहां बसे और समय के साथ आगे बढ़ते गए।
वर्तमान परिदृश्य में यदि राणा थारू समाज की जीवनशैली, सामाजिक स्थिति और आर्थिक स्तर की बात करें तो यह संतोषजनक नहीं कहा जा सकता।
आख़िर इसके कारण क्या हैं?
यह प्रश्न आज हर उस जागरूक, शिक्षित और समाजसेवी व्यक्ति के मन में उठना चाहिए, जो राणा थारू समाज की बेहतरी के लिए चिंतित है।
मैं स्वयं वर्षों से इस विषय पर सोचता रहा और समाज के विभिन्न स्तरों पर जुड़े लोगों से संवाद करता रहा ताकि यह समझ सकूं कि आखिर इतने वर्षों बाद भी राणा समाज अपेक्षित विकास क्यों नहीं कर पाया।
जब मैंने समाज में सक्रिय एक महिला अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता से बातचीत की, जो वस्त्र व्यवसाय चला रही हैं, तो उन्होंने कई महत्वपूर्ण बातें साझा कीं:
1. व्यवसायिक सोच का अभाव
राणा थारू समाज में व्यवसायिक सोच की गंभीर कमी है। बहुत कम लोग छोटे या बड़े स्तर पर व्यापार करने की सोच रखते हैं। व्यापार के लिए केवल धन नहीं, बल्कि जोखिम उठाने की समझ और जोखिम प्रबंधन की क्षमता भी चाहिए होती है, जो प्रायः समाज में नहीं देखी जाती।
2. परिवार की प्रति व्यक्ति आय की ओर ध्यान न देना
उन्होंने बताया कि समाज में बहुत कम लोग यह सोचते हैं कि उनके परिवार की प्रति व्यक्ति आय क्या है। जब प्रति व्यक्ति आय कम होती है, तो जीवनस्तर भी कम रहता है और विकास की गति भी धीमी हो जाती है। यह अत्यंत आवश्यक है कि समाज इस पर ध्यान दे और आय बढ़ाने के उपाय अपनाए।
3. काम के आकार और प्रकार को लेकर संकोच
बहुत से लोग यह सोचते हैं कि कौन-सा काम छोटा है, कौन-सा बड़ा, कौन-सा काम उनके व्यक्तित्व के अनुकूल है या नहीं। यही सोच आर्थिक प्रगति में बाधा बन जाती है। हर प्रकार का ईमानदार कार्य सम्मानजनक होता है।
4. परंपरागत खेती से चिपके रहना
समाज के अधिकांश लोग किसान हैं, परंतु वे केवल पारंपरिक खेती करते हैं। नए युग में नकदी फसलों (Cash Crops) की ओर बढ़ना होगा, ताकि सीधे आर्थिक लाभ मिल सके और खेती को व्यवसाय का रूप दिया जा सके।
उन्होंने यह भी कहा कि व्यवसायिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने किसी संस्थान में नौकरी करने के बजाय स्वयं का व्यवसाय शुरू किया, जिससे न केवल वह आत्मनिर्भर बनीं, बल्कि अपने समाज के अन्य लोगों को भी रोजगार देने का अवसर प्रदान किया।
इसके अतिरिक्त मैंने श्री डी. सिंह राणा जी से भी बातचीत की, जो स्वयंसेवी व्यवसायी हैं और उर्वरक व्यवसाय तथा विवाह भवन का संचालन करते हैं। उन्होंने निम्नलिखित बिंदु साझा किए:
1. प्रारंभिक शिक्षा की कमी
शुरुआती समय में शिक्षा की पहुंच बहुत सीमित थी, जिससे समाज में शिक्षा का स्तर बहुत पीछे रह गया और इसका सीधा प्रभाव आर्थिक स्थिति पर पड़ा।
2. व्यवसायिक दृष्टिकोण का अभाव
उन्होंने भी इस बात पर जोर दिया कि बिना व्यावसायिक सोच के लोग सही निवेश नहीं कर पाते और आर्थिक जोखिम उठाने से डरते हैं, जिससे व्यापार की ओर समाज नहीं बढ़ता।
3. स्थिरता की प्रवृत्ति (Migration की कमी)
आर्थिक विकास के लिए स्थान परिवर्तन (Migration) जरूरी होता है, लेकिन राणा समाज के लोग अपने क्षेत्र से बाहर जाने में रुचि नहीं रखते। यही कारण है कि वे नए अवसरों से वंचित रह जाते हैं।
4. उच्च शिक्षा के लिए संसाधनों की कमी
आर्थिक रूप से कमजोर अभिभावक अपने बच्चों को उच्च शिक्षा नहीं दिला पाते, जिससे वे बड़े अवसरों से दूर रह जाते हैं और समाज का विकास रुक जाता है।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि जब समाज सामाजिक, राजनीतिक और शैक्षणिक रूप से सशक्त नहीं होता, तब वह आर्थिक रूप से भी पिछड़ जाता है।
निष्कर्ष:
सदियों से तराई की उपजाऊ भूमि पर निवास करने वाला राणा थारू समाज आज भी वैसा विकास नहीं कर पाया जैसा अपेक्षित था। जबकि दूसरे समुदाय, जो बाद में यहां आए, उन्होंने बेहतर योजनाओं, सोच और दृष्टिकोण से आर्थिक उन्नति की।
अब समय आ गया है कि राणा थारू समाज के शिक्षित, संवेदनशील और समाज के प्रति उत्तरदायी लोग एकजुट होकर समाज के पुनर्निर्माण की दिशा में ठोस कदम उठाएं। हमें व्यावसायिक सोच, नई कृषि पद्धतियों, शिक्षा और उद्यमशीलता को बढ़ावा देकर समाज को सशक्त बनाना होगा।
जय हिंद! जय राणा थारू समाज!
🖋️नवीन सिंह राणा
(यह लेख समाज के लोगों से साक्षात्कार और सर्वेक्षण पर आधारित है।)
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