कविता का विश्लेषण – "महिला दिवस"

कविता का विश्लेषण – "महिला दिवस"
विश्लेषक: नवीन सिंह राणा 
निकेता राणा द्वारा रचित यह थारू बोली में कविता नारी शक्ति के विविध रूपों, संघर्षों और उपलब्धियों को संवेदनशीलता, प्रेरणा और आत्मगौरव के साथ प्रस्तुत करती है। इस कविता के माध्यम से उन्होंने नारी के ऐतिहासिक, सामाजिक, भावनात्मक और वैज्ञानिक पहलुओं को बेहतरीन ढंग से उकेरा है।

 मुख्य भाव:

कविता महिला सशक्तिकरण और उनके प्रति सम्मान के भाव से ओतप्रोत है। इसमें महिलाओं के ऐतिहासिक योगदान से लेकर आधुनिक काल तक की यात्रा को विस्तार से दर्शाया गया है।


🔸 पंक्ति-दर-पंक्ति विश्लेषण:

1. “आज महिला दिवस होने पर मिल रही है बधाई...”

यह भूमिका पंक्ति है, जो महिला दिवस के अवसर पर बधाई देते हुए शुरू होती है। यहाँ नारी की प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक की महत्ता को स्वीकार किया गया है।


2. “श्रष्टि की है वह रचयिता...”

स्त्री को सृष्टि की रचयिता और पालनहार बताया गया है। यह पंक्तियाँ नारी के जीवनदायिनी और संर्वाहक स्वरूप को दर्शाती हैं।


3. “फिर काहे लोग राह को रोड़ा बनें...”

यह भाग समाज की रूढ़ियों और स्त्रियों के समक्ष आने वाली चुनौतियों की ओर इशारा करता है। उनके सपनों में दीवारें खड़ी करने वालों की मानसिकता पर चोट करती है।


4. “आज भी दर-दर भटकत है वो पान के न्याय-अधिकार”

यह पंक्ति वर्तमान की कटु सच्चाई को उजागर करती है कि उपलब्धियों के बावजूद महिलाएं अभी भी अपने मूल अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं।


5. “पृथ्वी से चंद्रयान तक, समुद्र से गगनयान तक...”

यहाँ महिलाओं की वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्रों में उपलब्धियों को रेखांकित किया गया है।


6. “गाँव से शहर, शहर से विदेश जान तक...”

नारी के सामाजिक, राजनैतिक और वैश्विक स्तर पर योगदान को उभारती है, जहाँ वे अब PM और राष्ट्रपति तक बन रही हैं।


7. “पढ़न-लिखन को अब बाकि मिल गये अधिकार...”

यह शिक्षा के अधिकार की ओर संकेत करती है जो अब महिलाओं को खुलकर उपलब्ध हो रहे हैं, जिससे उनके सपनों को नई उड़ान मिली है।
 शैली और भाषा:

भाषा: थारू बोली,सरल, भावप्रवण और प्रभावशाली।
शब्द चयन: प्रेरक, संवेदनशील और सशक्त शब्दों का उपयोग।


🔸 निकेता की लेखन-शैली की विशेषताएँ:

1. भावों की गहराई: समाज के विरोधाभास और नारी संघर्ष को गहराई से दर्शाया।


2. प्रेरणा का स्रोत: कविता सकारात्मक ऊर्जा देती है, विशेषकर बालिकाओं व महिलाओं को।


3. सामयिकता: महिला दिवस जैसे अवसर पर बेहद उपयुक्त और सामयिक रचना।


4. बिंबों का प्रयोग: “आसमान में उड़न” जैसे बिंब नारी की आकांक्षा और संभावनाओं को दर्शाते हैं।


🔹 निष्कर्ष:

निकेता राणा ने इस कविता में स्त्री के प्रति गहरी संवेदनशीलता, समाज की चुनौतियाँ और नारी की उड़ान को बड़े ही सुंदर और प्रेरक ढंग से प्रस्तुत किया है। यह कविता न केवल महिला दिवस पर पढ़े जाने योग्य है, बल्कि यह हर उस दिन के लिए सार्थक है जब नारी की शक्ति, संघर्ष और सम्मान को समझने की आवश्यकता हो।

एक सराहनीय प्रयास, जो पाठकों के हृदय को छूता है और उन्हें सोचने पर मजबूर करता है।

🌸 निकेता राणा को हार्दिक शुभकामनाएँ इस सारगर्भित और प्रेरक रचना के लिए।

🖋️नवीन सिंह राणा 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

तराई की आत्मकथा और राणा थारू समाज

राणा थारु परिषद: एक गौरवशाली यात्रा

राणा थारू समाज: तराई की धरोहर और विलुप्त होती संस्कृति