तीस मारखा और विजय शिकारी की कथा: बुक्सा समाज की दिव्य गाथा

तीस मारखा और विजय शिकारी की कथा: बुक्सा समाज की दिव्य गाथा

भूमिका
यह कहानी बुक्सा जनजाति की पौराणिक और दिव्य गाथा है, जिसमें सकतपुरिया गोत्र के विजय शिकारी और उनके पुत्र तीस मारखा का उल्लेख है। यह कथा बुक्सा समाज की धार्मिक मान्यताओं और उनकी ऐतिहासिक धरोहर का हिस्सा है। विजय शिकारी और तीस मारखा को समाज में देवता के रूप में पूजा जाता है। इस कहानी को विस्तार से समझने के लिए आइए इसे क्रमबद्ध तरीके से जानते हैं।


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विजय शिकारी: एक दिव्य शिकारी की कथा

शिकार और परियों का मिलन
बहुत समय पहले की बात है, विजय शिकारी, जिन्हें विजुआ शिकारी भी कहा जाता है, एक दिन शिकार के लिए जंगल गए। शिकार के दौरान उन्होंने एक तालाब में स्वर्ग से आईं परियों को स्नान करते हुए देखा। उनकी दिव्य सुंदरता ने विजय शिकारी को मोहित कर दिया, और उन्होंने उनमें से एक परी को अपने जीवनसाथी के रूप में चुनने का निर्णय लिया।

विजय शिकारी ने अपनी तंत्र विद्या का उपयोग करके परियों के वस्त्र छिपा दिए। स्नान के बाद, जब परियां तालाब से बाहर निकलीं, तो उन्होंने देखा कि उनके वस्त्र गायब हैं। अपनी दिव्य शक्तियों से उन्होंने पता लगाया कि विजय शिकारी ने उनके कपड़े छिपाए हैं।

वचन और गंधर्व विवाह
परियां विजय शिकारी के पास पहुंचीं और कपड़े लौटाने की मांग की। विजय शिकारी ने कहा कि वह तभी उनके वस्त्र लौटाएंगे, जब वे उनकी शर्त मानेंगी। परियों ने पूछा, "क्या शर्त है?" विजय शिकारी ने कहा कि वह उनमें से एक परी से विवाह करना चाहते हैं। परियां वचनबद्ध थीं और उन्हें विवाह के लिए सहमत होना पड़ा।

विजय शिकारी और परी का विवाह गुरु के समक्ष संपन्न हुआ। विवाह के बाद, परियों ने विजय शिकारी और उनकी पत्नी को आशीर्वाद दिया और भविष्यवाणी की कि उनके घर एक दिव्य बालक का जन्म होगा, जो एक साथ तीस कार्य करने की क्षमता रखेगा और लोगों की भलाई करेगा।


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तीस मारखा: दिव्य पुरुष की कहानी

जन्म और नामकरण
विजय शिकारी और परी के विवाह के बाद उनके घर एक बालक का जन्म हुआ। बालक के जन्म के साथ ही गांव के तीस बड़े कार्य स्वतः पूर्ण हो गए। यह देखकर सभी लोग चकित रह गए और बालक का नाम 'तीस मारखा' रखा गया।

तीस मारखा के चमत्कार और भलाई के कार्य
तीस मारखा ने बचपन से ही अपने पिता के साथ मिलकर लोगों की सेवा की। विजय शिकारी अपनी तंत्र विद्या से बीमारियों का इलाज करते थे और लोगों के दुख-दर्द दूर करते थे। तीस मारखा ने भी अपने पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए लोगों की समस्याओं का समाधान किया।

एक दिन, मांझी जाति के एक व्यक्ति ने तीस मारखा की परीक्षा लेनी चाही। उसने तीस अलग-अलग गांवों से गंभीर समस्याएं लेकर तीस मारखा के पास आया। तीस मारखा ने अपनी दिव्य शक्तियों से सभी समस्याओं का समाधान कर दिया। यह देखकर मांझी तीस मारखा का भक्त बन गया।


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तीस मारखा का विवाह और त्रासदी

तीस मारखा का विवाह बड़े धूमधाम से हुआ। विवाह के अवसर पर पूरे गांव में खुशियां मनाई जा रही थीं। विजय शिकारी भी इस खुशी में अपनी पत्नी से नृत्य करने का आग्रह करते हैं। परंतु यह भूल गए कि उन्होंने अपनी पत्नी से वचन लिया था कि वे कभी उनसे नृत्य करने के लिए नहीं कहेंगे।

वचन भंग होने के कारण, उनकी पत्नी ने स्वर्गलोक लौटने का निर्णय लिया। उन्होंने विजय शिकारी को यह कहते हुए छोड़ दिया कि उन्होंने अपना वचन तोड़ा है। इस घटना से विजय शिकारी और तीस मारखा का परिवार अत्यंत दुखी हो गया।


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तीस मारखा और विजय शिकारी का योगदान

विजय शिकारी और तीस मारखा ने अपने जीवन में अनेक चमत्कार किए और लोगों की भलाई की। उनके पुण्य कार्यों के कारण बुक्सा समाज ने उन्हें देवता का दर्जा दिया।

विजय शिकारी की मृत्यु के बाद उनकी समाधि थान मंदिर के पास बनाई गई। तीस मारखा ने अपने पिता के कार्यों को आगे बढ़ाया। वृद्धावस्था में तीस मारखा का भी देहांत हो गया, और उनकी समाधि भी थान मंदिर के पास बनाई गई।


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थान मंदिर और बुक्सा समाज की श्रद्धा

आज भी बुक्सा समाज के हर गांव में थान मंदिरों में विजय शिकारी और तीस मारखा की पूजा की जाती है। ये मंदिर बुक्सा समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान हैं। सकतपुरिया गोत्र के वंशज आज भी इन दिव्य पुरुषों की गाथा को याद करते हैं और उनकी परंपराओं को जीवित रखते हैं।

नोट: बुक्सा समाज के कुछ स्रोतों से ज्ञात 




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