संघर्ष और उम्मीद: राणा थारू किसान की गाथा (वर्तमान में सच्ची घटनाओं पर आधारित)

संघर्ष और उम्मीद: राणा थारू किसान की गाथा 
Published by Naveen Singh Rana 

     सुबह का सूरज उगते ही रमेश सिंह राणा की आंख खुल गई। चारों ओर फैले खेतों का नजारा उसके लिए एक नई उम्मीद लाता था, लेकिन साथ ही एक गहरी चिंता भी। रमेश सिंह राणा जो राणा थारू समाज का एक छोटा किसान था, अपने परिवार की जिम्मेदारियों और खेती के उच्च लागत के बीच जूझ रहा था खेती किसानी से उतना लाभ नही हो पा रहा था, इसलिए साथ में छोटे मोटे और काम भी करने होते थे, तब जाकर जिन्दगी का पहिया गांव की ऊबड़ खाबड़ रास्ते में चल पाता था।

     रमेश सिंह राणा के पास थोड़ी सी जोत वाली जमीन थी, जिसमें वह अपने परिवार के लिए अन्न उगाता था। उसकी पत्नी, सुनीता, और दो छोटे बच्चे उसकी दुनिया थे। महंगाई बढ़ रही थी और परिवार की जरूरतें भी। सुनीता देवी अक्सर बीमार रहती थी काम के बोझ और जिम्मेदारियों ने उसे और अधिक कमजोर बना दिया था और साथ में महंगी दवाइयों के कारण उनकी आर्थिक स्थिति और भी कठिन हो जाती थी लेकिन जीवन तो जीना ही है घर की रोजी रोटी की चक्की तो चलानी ही है। और मांग कर भी तो हर कोइ गुजारा नही कर सकता।

   रमेश सिंह राणा हर दिन खेत में कठिन परिश्रम करता था। वह जानता था कि खेती करना अब पहले जैसा नहीं रहा। बीज, खाद, और कीटनाशक सब महंगे हो गए थे। फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए उसे आधुनिक तकनीक अपनानी पड़ती थी, लेकिन उसकी जेब इसकी इजाजत नहीं देती थी। फिर भी, वह अपने सपनों को जिंदा रखने के लिए संघर्ष करता रहा। क्योंकि तमाम सपने उसे सोने नही देते थे।

    फसल का समय आते ही रमेश सिंह राणा की मेहनत रंग लाई। उसकी धान की फसल अच्छी हुई थी। जिसे देखकर उसका मन हर्षित होता,लेकिन जब बाजार में फसल बेचने का समय आया, तो उसे वहां मुश्किलों का सामना करना पड़ा। दलाल और व्यापारी फसल के दामों में लीपा-पोती करते थे, धान की फसल में कभी फफले का रोना रोते तो कोई क्वालिटी का रोना रोते।जिससे रमेश सिंह राणा को उचित मूल्य नहीं मिल पाता था। वह जानता था कि उसने जितनी मेहनत से फसल उगाई है और धान के दाने सोने की तरह चमकते हैं फिर भी उसको सही रेट नही मिल पा रहा, जाहिर है उसकी मेहनत का फल किसी और की जेब में जा रहा है।

   एक दिन, जब रमेश सिंह राणा अपने खेत से लौट रहा था, तो उसने गांव के सरपंच, सुरेश, को देखा। सुरेश ने रमेश सिंह की स्थिति को समझा और उससे बात की। सुरेश ने रमेश को एक किसान संगठन में शामिल होने की सलाह दी, जो किसानों के अधिकारों के लिए लड़ता था और उन्हें उचित मूल्य दिलाने में मदद करता था।

    रमेश ने सुरेश की बात मानी और संगठन में शामिल हो गया। धीरे-धीरे उसे समझ में आया कि एकता में शक्ति है। संगठन ने उन्हें सीधे बाजार से जोड़ने में मदद की और उनकी फसल का उचित मूल्य दिलवाया। रमेश सिंह की आर्थिक स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ और उसकी उम्मीदें फिर से जाग उठीं।

     रमेश की यह कहानी केवल उसकी नहीं, बल्कि हजारों छोटे किसानों की है, जो कठिन परिस्थितियों में भी अपने सपनों को जिंदा रखते हैं और संघर्ष करते हैं। यह कहानी हमें सिखाती है कि मेहनत, एकता और सही मार्गदर्शन से हर मुश्किल का सामना किया जा सकता है। रमेश का जीवन अब संघर्ष से भरा जरूर है, लेकिन उसमें उम्मीद की किरण भी है।
राणा थारू समाज के उन हजारों किसानों को समर्पित कहानी, जो छोटी जोत भूमि होने से कोई खास आय उत्पन्न नही कर पाते हैं, बहुत सारे तो हिम्मत हार जाते हैं और जो छोटी जोत भूमि होती है उसे भी बेंच कर भूमिहीन हो जाते हैं। और भूमिहीन मजदूर बनकर रह जाते हैं यह आज के समय की वास्तविकता है।
राणा संस्कृति मंजूषा की प्रस्तुति 

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