# वीरता का संकल्प: वीर रस से ओतप्रोत राणा समाज के लिए एक कविता
### वीरता का संकल्प
: नवीन सिंह राणा की कलम से
राणा प्रताप के वंश हो तुम,
फिर क्यों आज घबराते हो ।
भले न उठा सको वैसा भाला,
कदम से कदम मिलाने से सरमाते हो।।1।।
लुटा स्वाभिमान, लुटी अस्मिता,
लुट रहा है आज समाज ।
फिर भी रखे हाथ में हाथ,
क्यों मौन बैठे हो आज।।2।।
वीरता का रक्त है बहता,
रग-रग में वीरता का संकल्प ।
क्यों नहीं उठता आज वांकुरे
करने को हर अत्याचार का अन्त।।3।।
बचपन से सुनी जो कहानियाँ,
स्वाभिमान की हैं तेरी शान ।
क्यों आज वे सारी बातें फिर,
भूल गया तू मेरे वीर जवान।।4।।
उठा लो साहस का हथियार,
जगा लो मन में हुंकार ।
हर बाधा को कर के पार,
करो अपनी निर्बलता का संहार ।।5।।
मातृभूमि की सेवा में,
झोंक दो अपना जीवन वीर,
हर जुल्म से लड़कर,
बदल लो तुम अपनी तकदीर।।6।।
बन जाओ फिर से प्रताप,
हो दुश्मनों के लिए प्रलय।
रक्षा करो अपनी माटी की,
बनकर सबका अभय।।7।।
राणा प्रताप की संतान हो तुम,
फिर क्यों आज घबराते हो,
भले न उठा सको वैसा भाला,
कदम से कदम मिलाने से सरमाते हो।।8।।
उठो, जागो और ना रुको,
ले नई क्रांति का संकल्प महान।
बढ़ा अपने समाज को आगे,
यही है तुम्हारा स्वा अभिमान।
यही है तुम्हारा स्वाभीमान।।9।।
:नवीन सिंह राणा की कलम से
टिप्पणियाँ