1:रोचक और प्रेरणादायक कहानी, कविता, लेख व संस्मरण आदि विधाओं पर आधारित रचनात्मक लेखन,
2:बाल साहित्य लेखन,
3: राणा समाज की परम्परा व संस्कृति पर आधारित लेखन ,
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप सिंह जयंती की स्मृतियां
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हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप सिंह जयंती का आयोजन थारू विकास भवन मे राणा थारू परिषद द्वारा अयोजित किया गया।
तराई की आत्मकथा और राणा थारू समाज ✍️नवीन सिंह राणा मेरा नाम तराई है, और मैं उत्तराखंड के उस क्षेत्र की गाथा हूँ, जो कभी ऋषि-मुनियों की तपोस्थली हुआ करती थी। मेरे आंचल में सीता माता ने वनवास के दिन बिताए, और यहाँ ही महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था। मैंने पांडवों का अज्ञातवास देखा, अर्जुन का पराक्रम भी यहीं का हिस्सा बना जब उसने कौरवों को पराजित कर विराट राजा की गायों को सुरक्षित लौटाया। मेरे घने जंगल और शांत धाराएँ हमेशा से ही वीरों और तपस्वियों का आश्रय स्थल रही हैं। समय के साथ, मेरी भूमि विदर्भ के राजाओं के अधीन आई, जिनके पास अनगिनत पशुधन था। मैंने राजाओं के किले देखे और युद्धों की गूंज सुनी। कीचक का वध मेरे वन-क्षेत्र किच्छा के पास हुआ, और भीमसेन की वीरता का साक्षी मैं बना। फिर गुप्त काल आया और कत्यूरियों का शासन हुआ। उनके काल में मेरी समृद्धि चरम पर थी, लेकिन धीरे-धीरे उठा-पटक ने मुझे त्रस्त कर दिया। मुगलों के आक्रमणों ने मेरी शांति को तोड़ा, और मैं संघर्ष की भूमि बन गई। जब मुगल आए, उन्होंने मेरे हिस्सों पर अधिकार जमाया। अकबर ने मुझे राजा रूद्र चंद को सौंपा, और इस चंदवंश न...
राणा थारु परिषद: एक गौरवशाली यात्रा :✍️नवीन सिंह राणा (विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार यह लेख लिखने का प्रयास किया है यदि भूल बस अथवा जानकारी के अभाव में किसी प्रकार की गलती हुई हो तो आशा है उसे सुधार करने में सहयोग प्रदान करेंगे।) प्रारंभिक बीज – समाज की उन्नति का संकल्प राणा थारु समाज, प्रकृति के बीच बसा, पहाड़ों, नदियों, और घने जंगलों से घिरा हुआ, सादगी और शौर्य का प्रतीक है। इस समाज की जड़ें भारतीय सभ्यता के इतिहास में गहराई से धंसी हुई हैं। सदियों से राणा थारु लोग अपने रीति-रिवाजों, परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए हैं। इस अद्वितीय समाज के उत्थान और विकास की यात्रा की शुरुआत वर्ष 1960 में हुई, जब एक स्वप्न देखा गया—अपने समाज के लोगों को शिक्षा, रोजगार और सम्मान दिलाने का। यह स्वप्न केवल एक व्यक्ति का नहीं था, बल्कि पूरे समाज की उम्मीदें उसमें जुड़ी थीं। इसी संकल्पना से जन्म हुआ *नोगवां ठग्गू विकास समिति* का, जो आगे चलकर "राणा थारु परिषद" के रूप में विख्यात हुआ। श्री ओमप्रकाश सिंह राणा, जो इस आंदोलन के मार्गदर्शक थे, ने राणा थारु समाज के विक...
राणा थारू संस्कृति वीडियो राणा थारू समाज: तराई की धरोहर और विलुप्त होती संस्कृति 🖋️ नवीन सिंह राणा तराई की मनोहारी भूमि, जो अपनी हरी-भरी वादियों, बहती नदियों, और शांति से लबालब जंगलों के लिए जानी जाती है, राणा थारू समाज का वह प्राचीन आवास है जिसने न केवल इस भूमि को आबाद किया, बल्कि इसे अपनी समृद्ध संस्कृति और विरासत से अलंकृत भी किया। सदियों से यह समाज अपने मेले, त्यौहार, और परंपराओं के माध्यम से सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में ऊंचाई पर रहा। परंतु आज, समय की तेज रफ्तार और संरक्षण के अभाव ने इन धरोहरों को विलुप्ति की कगार पर ला खड़ा किया है। तराई के मेलों का गौरवशाली इतिहास राणा थारू समाज के इतिहास में मेलों और हाट बाजारों की अद्वितीय भूमिका रही है। ये केवल व्यापार या मनोरंजन के अवसर नहीं थे, बल्कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान, सामुदायिक एकता, और परंपराओं के प्रचार-प्रसार के जीवंत मंच थे। उलदन गांव का मेला, देवकला गांव का मेला, चकपुर गांव का मेला, और कैलाश नदी का मेला जैसी परंपराएं समाज के जीवन का हिस्सा थीं। इन मेलों में से, कैलाश का मेला, जिसे स्थानीय लोग चीका घाट का ...
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