महाराणा प्रताप: हिंदुआ सूरज

"महाराणा प्रताप -हिंदुआ सूरज"

 कहीं दूर क्षितिज में सूर्य उगा।
      होकर भयभीत अंधकार भगा।।
निद्रा में सोया संसार जगा।
       मां जयवंता ने लाल जना।।

ज्येष्ठ शुक्ल और तिथि तृतीया।
       ‌ एक देवदूत अवतार लिया।।
देवों ने शक्ति-पात किया ।
       मां चामुण्डा ने वरदान दिया।।।

 पूत के पांव पालने में देखा ।।
           गुण देख नाम "प्रताप" रखा ।।
 प्यार से सब कहते कीका।
       वह राज दुलारा जन-जन का ।।

अप्रतिम तेज झलकता था।
      उत्तरोत्तर प्रताप निखरता था।।
वह कदम जहां भी रखता था ।
      धरती पर सूर्य चमकता था।।

समझो न ऐसे ही नाहक।
    "हिंदुआ सूरज"कहलाते हैं।।
 हैं धर्म सनातन के रक्षक।
     वो अपना शीश चढ़ाते हैं ।।

"दीवान" एकलिंग कहलाते हैं।
        शक्ति को शीश सदा नवाते हैं ।।
वो सब के मन को भाते हैं।
       जब शत्रु को खूब छकाते हैं।।

हर बात वचन के पक्के थे।
     उतने ही मन के सच्चे थे।।
तलवार सदा दो रखते थे।
     निहत्थे पे वार न करते थे।।

मर्यादा का सदा सम्मान किया।
     शत्रु को पहले शस्त्र दिया ।।
ललकारा फिर वार किया।
     शत्रु को भी संस्कार दिया।।

राणा ने दृढ़ उद्घोष किया।
    सम्मुख सबके शपथ लिया।।
दूध रखूं उज्जवल मां का । 
    अपमान न होगा आंचल का।।
 
नश्वर के सम्मुख नहीं झुकुंगा।
    न दाग अश्व को लगने दुंगा।।
 हाथ जोड़ नहीं खड़ा होऊंगा।।
     नहीं बेटी मलिच्छ को ब्याहुंगा।।

 राणा का सुनकर यह ऐलान।
      भयभीत हुआ अकबर महान ।।
 तब दूत पर दूत भेजे तमाम ।
      लिये अमन का छद्म पैगाम ।।

चला राणा से संधि करने।
     लगा दांव पर दांव खेलने ।
हा!मति गयी उसकी चरने।।
     आ गया शत्रु स्वयं मरने।।

संधि तो एक बहाना था।
    बस वीरों को भरमाना था।।
सब राजपाट हथियाना था ।
   उनको निज दास बनाना था।

तू भूल न शठ! वो राणा है।
     करते हैं, वही जो ठाना है।।
"संग मुगलों के नहीं जाना है"।
     पुरखों के वचन निभाना है।।

गरज उठे मेवाड़ नरेश 
     कह दो जाकर मेरा संदेश।
 यह माटी मेरी , मेरा देश।।
     जा तू अपना रस्ता देख।।
 
छोड़ दिया सब राजपाट।।
     शत्रु से करने दो दो हाथ।।
मैं नहीं निभाऊं तेरा साथ।
     मंजूर न तेरी कोई बात।।

 तू गऱ हमसे टकरायेगा।
     यूं ख़ाक में मिल जायेगा।।
 राणा ही ख्वाब़ में आयेगा।।
     भयभीत हुआ मर जायेगा।।

तू डाल -डाल मैं पात- पात।
       अरे ! करेगा तू क्या बात।।
 देख देख अपनी औकात।
       शीश कटेगा धड़ के साथ।।

मीना बाजार सजाता है तू।
     नारी बन मुंह छिपाता है तू।।
त्रिया का हरण कराता है तू।
  फिर भी "महान" कहलाता है तू।।

न‌ रहे बांस न बजे बांसुरी।
     नही बचेगी शक्ति आसुरी।।
करेगी ताण्डव रणबांकुरी।
    तेरा दिन है आज आखरी।।

ले देख खड़ा है काल यहां।
     जायेगा बचकर आज कहां।।
भाग सके तो भाग जहां।
      यमदूत खड़ा है यहां वहां।।

आज फैसला अंतिम होगा।
     आसमा और रक्तिम होगा।।
लहु आज तेरा मद्धिम होगा।
   सुफल न कोई जतन होगा।।

भागा दुआ मांगने अकबर।
       मत्था रगड़ा ख्वाजा के दर।।
हे सांई ! तू बस इतना कर।
     "राणा" को मेरे वस में कर"।।

"नादान अरे क्या चाहता है"।
     जो जी में आये कहता है।।
वन्दे के वंश की बात नहीं ।
     मौला की इस पर रजा नहीं।

सुनकर ख्वाजा का फरमान।
     बिखरे अकबर के अरमान।।
मिली ख़ाक में उसकी शान।
      मानो उसका लुटा जहान"।।

अकबर ने फिर चाल चली।
  ऐलान कर दिया गली गली।।
राणा को बात न भायी भली।
  क्या करुं लड़ाई नहीं टली।।

अकबर के सैनिक लाखों पार।
    राणा के बस आठ हजार।।
फिर भिड़े सूरमा आर-पार।
  हुआ भयंकर नरसंहार।।

खनखन तलवार खनकती थीं।
      जब अपनों पर ही चलती थीं।
संग शीश भुजाएं कटती थी।
      उछल उछल कर गिरती थीं।।

रण का हाल बेहाल हुआ।
      हल्दीघाटी का दामन लाल हुआ।।
इक इक लाल हलाल हुआ ।
     लहू से लवालव ताल हुआ।।

कटे मुण्ड से रूंड लड़े।
      मैंदां वीरों से पटे पड़े।।
गिर जाते वो खड़े खड़े।
      प्राण हलक में अटक पड़े।।
 
पीढ़ी की पीढ़ी हुई समाप्त।
    छूटा सब अपनों का साथ।।
बूढ़े बच्चे हुए अनाथ।
      हाहाकार मचा दिन-रात।।

मिली मलिच्छ से आजादी।
      सहकर अपनी बर्बादी।।
रखो याद यह कुर्बानी।
      भरकर आंखों में पानी।।

आओ हम सब शीश नवाये।
    जन्म दिवस पर मंगल गायें।।
आशीष आज उनका पायें।
     जीवन अपना सफल बनायें।

पुष्पा राणा
वरिष्ठ प्रबंधक
केनरा बैंक
लखनऊ
Mob 9140090486
लखनऊ

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

तराई की आत्मकथा और राणा थारू समाज

राणा थारु परिषद: एक गौरवशाली यात्रा

राणा थारू समाज: तराई की धरोहर और विलुप्त होती संस्कृति