"नशे की अंधेरी राह से उजाले की ओर: निर्मलपुर गांव की संघर्ष गाथा"**


**"नशे की अंधेरी राह से उजाले की ओर: निर्मलपुर की संघर्ष गाथा"**नवीन सिंह राणा की कलम से 

   राणा थारू समाज का गाँव निर्मलपुर, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांतिपूर्ण जीवन के लिए प्रसिद्ध था। चारों फसलों से लहलाते खेत, बाग बगीचों की हरियाली, बहती नदियाँ, और सजीव वन्यजीव और गांव में शाम को लगती चौपाल इसे स्वर्ग के समान बनाते थे। लेकिन समय के साथ गाँव में कुछ बदलाव आने लगे, जो इसके सौंदर्य और शांति को काले साये में ढकने लगे।

   गाँव में शराब का चलन पहले से था, जो विशेष अवसरों पर आनंद का साधन था। परंतु धीरे-धीरे यह आनंद एक बुरी लत में बदलने लगा। शराब के बाद, चरस, गांजा और स्मैक जैसी मादक द्रव्यों ने गाँव में अपनी जगह बना ली।
 शराब माफिया, स्मैक माफिया लुके छिपे युवाओं को अपनी गिरफ्त में लेने लगे। इससे युवाओं में इन नशों की लत तेजी से फैलने लगी। इससे समाज की स्थिति भयावह हो गई। कई घर-परिवार तबाह हो गए, गरीबी ने उन्हें जकड़ लिया, और हत्याएँ, आत्महत्याएँ जैसी घटनाएँ आम हो गईं।

    मनोहर सिंह राणा और गीता देवी का परिवार भी इस संकट से अछूता नहीं रहा। उनके दो बेटे, राहुल सिंह राणा और विवेक सिंह राणा बचपन से ही बेहद होनहार थे। राहुल राहुल सिंह राणा पढ़ाई में अव्वल था और डॉक्टर बनने का सपना देखता था। विवेक सिंह राणा को खेल में रुचि थी और वह एक राष्ट्रीय खिलाड़ी बनना चाहता था। लेकिन जब नशे की लत ने गाँव को अपनी चपेट में लिया, तो वे भी इससे प्रभावित हो गए।

राहुल सिंह राणा कॉलेज में अपने दोस्तों के साथ नशा करने लगा और विवेक सिंह राणा ने भी उसका अनुसरण किया। दोनों भाई पूरी तरह से नशे की गिरफ्त में आ गए। उनके स्वभाव में बदलाव आ गया, वे घर से पैसे चुराने लगे, और अक्सर झगड़ा करने लगे। उनके माता-पिता, मनोहर सिंह राणा और गीता देवी इस स्थिति से बेहद परेशान थे। 

    गाँव में नशे के कारण हो रही घटनाएँ और बढ़ती अपराध दर ने सभी को चिंता में डाल दिया। लोगों ने अपने प्रियजनों को खो दिया, कई परिवार गरीबी में डूब गए और सामूहिक आत्महत्या जैसी घटनाएँ भी होने लगीं। 

मनोहर सिंह राणा ने ठान लिया कि वह इस समस्या का समाधान निकालकर ही रहेगा। उसने गाँव के बुजुर्गों और सामाजिक नेताओं से मिलकर एक पंचायत बुलाई। पंचायत में उन्होंने नशे के दुष्प्रभावों और समाज पर पड़ रहे इसके प्रभावों पर चर्चा की। सभी ने मिलकर निर्णय लिया कि अब समय आ गया है कि इस समस्या का सामना किया जाए।

       गाँव में एक पुनर्वास केंद्र की स्थापना की गई, जहाँ नशे के शिकार युवाओं का इलाज और काउंसलिंग की जाने लगी। इसके साथ ही, गाँव में जागरूकता अभियान चलाया गया, जिसमें नशे के दुष्प्रभावों के बारे में बताया गया और स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित किया गया। पंचायत ने नशे की तस्करी और विक्रय पर सख्त प्रतिबंध लगा दिया।

     राहुल सिंह राणा और विवेक सिंह राणा को भी इस केंद्र में भर्ती कराया गया। धीरे-धीरे वे अपनी लत से छुटकारा पाने लगे। इस प्रक्रिया में उन्हें अपने माता-पिता का पूरा सहयोग मिला। उन्होंने अपने परिवार और समाज के लिए फिर से जीने की राह चुनी। राहुल ने अपनी पढ़ाई में वापस ध्यान लगाना शुरू किया और विवेक ने फिर से खेल कूद में रुचि लेना शुरू कर दिया।

    गाँव के प्रयासों से न केवल राहुल और विवेक बल्कि और भी कई युवा अपनी लत से उबरने में सफल रहे। निर्मलपुर फिर से अपनी पुरानी खुशियों की ओर लौटने लगा। मनोहर सिंह राणा और गीता देवी के घर में एक बार फिर से हँसी की गूँज सुनाई देने लगी। 

निर्मलपुर के लोगों ने यह सिख लिया कि सामूहिक प्रयास और दृढ़ संकल्प से किसी भी समस्या का समाधान किया जा सकता है। उन्होंने अपने गाँव को नशे की बुराई से मुक्त कर एक नई शुरुआत की। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह गाँव अब फिर से अपने वास्तविक स्वरूप में लौट आया, जहाँ हर कोई खुशी और शांति से जीवन जीने लगा।

इस कहानी ने न केवल निर्मलपुर को, बल्कि आसपास के गाँवों को भी प्रेरित किया कि वे अपने समाज को नशे की लत से बचाने के लिए सामूहिक प्रयास करें और अपने आने वाली पीढ़ी के लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित करें।
: नवीन सिंह राणा 
नोट: प्रस्तुत कहानी सत्य घटनाओं से प्रेरित पूर्णतः काल्पनिक कहानी है जिसमे आए पात्र और गांव कल्पना के आधार पर लिए गए हैं जिनका किसी व्यक्ति विशेष से कोई संबंध नहीं है यदि यह किसी व्यक्ति विशेष से मेल खाता है तो यह संयोग मात्र होगा।धन्यवाद

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