अब न बेचेंगे धरा..... नवीन सिंह राणा द्वारा रचित

अब न बेचेंगे धरा……
जिस बंजर को तोड़ा पुरखों ने,
ऊसर धरा को उपजाऊ बनाई।
जरा संभल जा मेरे राणा भाई
क्यों तूने इसे लुटाई।
कोड़ी में क्यों तूने इसे लुटाई।
जिस बंजर को तोड़ा पुरखों ने
ऊसर धरा को उपजाऊ बनाई।1।

जहां बसे थे दादा परदादा,
हीरे की खान धरा बनाई।
खेती कर उपजा मोती के दाने,
क्यों तूने इसे लुटाई।
खेत बेच क्या होगी तेरी भलाई।
जिस बंजर को तोड़ा पुरखों ने,   
ऊसर धरा को उपजाऊ बनाई।2।

तू तो खा लेगा घी चपुरी,
तेरा बेटा कहां से लाएगा।
परपोता देगा गाली तुझको,
वो घर कहां बसाएगा।
खेत बेंच रबडी कहां लुटाई,
खेत बेंच क्या होगी तेरी भलाई।
जिस बंजर को तोड़ा पुरखों ने,   
ऊसर धरा को उपजाऊ बनाई।3।

धरती है अनमोल रत्न,
खेत हमारे रत्नों की खान।
सुधरती जिससे घर की दशा,
यह धरती ही है अपना स्वाभिमान।
  बेच इसे अपनों की बाट लगाई,
खेत बेंच क्या होगी तेरी भलाई।
जिस बंजर को तोड़ा पुरखों ने,   
ऊसर धरा को उपजाऊ बनाई।4।

जरा संभल जा, सोच जरा,
क्या अब पुरखों की आन बचाई।
जिस पर खेला, बचपन बीता,
लुटा दिया, यही तेरी सच्चाई।
है तेरी भावर भूमि तराई,
खेत बेंच क्या होगी तेरी भलाई।
जिस बंजर को तोड़ा पुरखों ने,   
ऊसर धरा को उपजाऊ बनाई।5।

 नव दशक ,नव युग में अब
“नवीन “क्रांति का आगाज करो,
अपनी इस धरती मां को
हृदय से, प्रफुल्लित हो प्रणाम करो,
प्रण लो, रछक हो तुम इसके,
न बेचेंगे, है राणा इसमें तेरी भलाई।
जिस बंजर को तोड़ा पुरखों ने,   
ऊसर धरा को उपजाऊ बनाई।6।
🙏
नवीन सिंह द्वारा रचित

टिप्पणियाँ

सुरजीत सिंह राणा शिक्षक, राधे हरि राजकीय इंटर कॉलेज टनकपुर ने कहा…
बहुत-बहुत साधुवाद गुरुजी ,अपने विचारों को ,अपनी पीड़ा को कविता के माध्यम से मोतियों की तरह सजाया है I अब हमें समझना है कि हम अपनी धरती माता को कैसे सुरक्षित रख सकते हैं I
ANUJ SINGH RANA ने कहा…
Sir Apne Tharu samaj ki vartman sithiti ko is Kavita ke madhyam se bilkul satik likha hai. Yuva pidi ko is baat ko samjhna hoga.

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