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हल्दीघाटी का मौन वीर: चेतक" कविता का विश्लेषण

उपरोक्त रचना "हल्दीघाटी का मौन वीर: चेतक" एक अत्यंत भावनात्मक और वीररस से ओतप्रोत कविता है। इसमें महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक की बलिदान-गाथा को बहुत ही सजीव रूप में प्रस्तुत किया गया है। आइए इसका बिंदुवार विश्लेषण करें: 🔷 कविता का भावार्थ और विश्लेषण: 1. आरंभिक पंक्तियाँ: > “रोत रहय धरती, रोत रहय आसमान, महाराणा जी को चेतक, जब चेतक त्याग रहो प्रान।” 👉 यहाँ प्राकृतिक तत्वों—धरती और आकाश—को भी चेतक की वीरगति पर शोक मनाते हुए दर्शाया गया है। चेतक के बलिदान को इतिहास की सबसे मार्मिक घटना के रूप में चित्रित किया गया है। 2. चेतक के अंतिम क्षणों का चित्रण: > “थम गई रहय सांसे, थम गयो रहय तूफान, स्वाभिमानी को सेवक, जब चेतक त्याग रहो प्रान।” 👉 चेतक को केवल एक घोड़ा नहीं, बल्कि स्वाभिमान का प्रतीक, एक निष्ठावान सेवक बताया गया है। उसका प्राण त्यागना मानो पूरी सृष्टि को थमा देता है। 3. युद्धभूमि का दृश्य: > “हल्दीघाटी के रण मय, बघो लड़ रहय महान, तड़प उठो हृदय, जब चेतक त्याग रहो प्रान।” 👉 यह पंक्तियाँ हल्दीघाटी के युद्ध की उग्रता और महानता को उजागर करती हैं, जहाँ चेतक की...