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ग्रामीण और नौकरीपेशा व्यक्तियों के बीच मानसिकता का टकराव: एक विस्तृत विश्लेषण"**✍️ राणा संस्कृति मंजूषा

**"ग्रामीण और नौकरीपेशा व्यक्तियों के बीच मानसिकता का टकराव: एक विस्तृत विश्लेषण"** ✍️ राणा संस्कृति मंजूषा (श्रीमान महावीर सिंह राणा जी द्वारा दिया गया व्यक्तव्य और उसका विश्लेषण ) महावीर जी द्वारा दिया गया व्यक्तव्य: ""आजकल हमारे यहां क्षेत्र में यह सोच फैली है कि नौकरी वाला व्यक्ति धरातल पर काम नहीं कर रहा है गांव के व्यक्ति को यही लगता है कि जो कर रहे हैं l हम ही कर रहे हैंl हमारे द्वारा ही पूरा गांव को देखा जा रहा हैं l इसीलिए गांव का व्यक्ति नौकरी चाकरी वाले व्यक्तियों को अधिक तवज्जो नहीं देता हैl और अन्य जाति के कोई नौकरी वाले व्यक्ति होते हैं उसे ही तवज्जो देते हैं अपने वालों को तो बिल्कुल शून्य समझते हैं l  थारू नौकरी वाला कोई भी कुछ भी बोलेगा तो उसे यही जवाब मिलेगा की आप अपनी नौकरी छोड़कर यहां आकर देखो तो पता चलेगा l ऐसे वाक्य मैंने आए दिन सुना है l  लेकिन उस व्यक्ति को यह नहीं मालूम है कि जो लोग नौकरी कर रहे हैं वह कितने लोगों को चला रहे हैं l और कितना संघर्ष किया है उन्होंने और वे जहां नौकरी कर रहे हैं वह क्षेत्र से कितने डेवलप वाले क्षेत्र में नौकरी कर ...
राणा थारू समाज में उद्यमिता का प्रवाह कितना आवश्यक? ✍️ राणा संस्कृति मंजूषा  प्रिय साथियों, हम आज एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दे पर बात करने के लिए एकत्र हुए हैं—हमारे समाज की दशा और दिशा। हम सभी इस बात से भली-भांति परिचित हैं कि हर समाज और समुदाय अपने विशेष गुणों और परंपराओं से पहचाना जाता है। इसी संदर्भ में मैं एक विशिष्ट दृष्टिकोण साझा करना चाहूंगा, जिसे नजरअंदाज करना हमारे लिए संभव नहीं है—मुस्लिम समुदाय में उद्यमिता का प्रवाह। ध्यान दें, हर दिन हम जिन रोजगारों को देखते हैं, वे कितने आवश्यक हैं—कपड़ों की मरम्मत हो, गाड़ी की रिपेयरिंग हो, या छोटे-मोटे यंत्रों का संचालन—इन क्षेत्रों में मुस्लिम समुदाय का प्रभुत्व दिखाई देता है। आखिर ऐसा क्यों? कारण साफ है—यह दक्षता बचपन से उनके बच्चों में डाली जाती है। बाल्यकाल से ही उन्हें छोटे-छोटे कार्यों में निपुण बनाया जाता है, और यह निपुणता उम्र के साथ परिपक्व होती जाती है।  दूसरी ओर, हमारे समाज के कुछ हिस्से अपने बच्चों को तथाकथित 'पब्लिक स्कूल' में भारी फ़ीस भरकर पढ़ाते हैं, लेकिन नतीजा क्या होता है? बच्चे यह सोचने लगते हैं कि उनके ...

क्यों जानना जरूरी है मंच के बारे में यह भी?

राणा थारू युवा मंच संबद्ध राणा थारू युवा जागृति समिति के बारे मे कुछ मेरे अनुभव आप सभी के साथ शेयर करने का प्रयास कर रहा हूं आशा है आप सभी को कुछ जानकारी प्राप्त होगी। राणा थारू युवा मंच प्रारंभ से अब तक  Written and edited by Naveen Singh Rana  मुझे वह दिन याद है । शायद उस समय मुझे यह पता नहीं था कि जिस यात्रा पर मै निकलने वाला हूं वह यात्रा मुझे यहां तक ले आयेगी। बहुत सारे उतार चड़ाव इस यात्रा में आए।, बहुत कुछ पाने की लालसा में कभी कभी बहुत कुछ खोना भी पड़ जाता है ऐसा मैंने पहले कभी सोचा नहीं था। मै अन्य लोगों की तरह ही व्यस्त था अपनी नौकरी और घर परिवार की उधेड़ बुन में। खुश था क्योंकि उस समय मेरी खुशी का पैमाना सिर्फ मेरा परिवार था । मुझे न तो समाज की चिंता थी न किसी संघठन की। न किसी सदस्य के रूष्ट होने की चितां थी और न किसी संघठन को मजबूत बनाकर उसे मुकाम तक ले जाने की चिंता। न समिति द्वारा संचालित बायलॉज और संचालित कार्यक्रमों की चिंता थी और न हर महीने समिति को मजबूती देने हेतु मासिक सहयोग देने की।         लेकिन एक दिन, जेठ माह की तेज तर्रार लू और तपती...

डकैतों का आतंक और राणा थारू समाज की गाथा( सच्ची घटनाओं पर आधारित बड़े बुजुर्गो की स्मृतियों से सहेजी गई कहानी)

डकैतों का आतंक और राणा थारू समाज की गाथा Written and Published by Naveen Singh Rana  आज से लगभग एक सदी पहले, राणा थारू समाज के गांव समृद्धि और खुशहाली से परिपूर्ण थे। उन दिनों यह समाज अपने धान के खेतों, घने जंगलों और अनमोल प्राकृतिक संसाधनों, पशु पालन से होने वाली चांदी के सिक्कों की आय के लिए प्रसिद्ध हुआ करता था। यह धनी और संपन्न गांव डकैतों के लिए एक आकर्षण का केंद्र हुआ करते थे, ये डकैत रात के अंधेरे में अक्सर गांव के सबसे धनी परिवारों पर धावा बोलते और सभी सद्स्यों को कब्जे में लेकर घर का सारा खजाना लूट ले जाया करते थे, अंग्रेजो का जमाना था लेकिन तराई के घने जंगलों तक अंग्रेज़ी सेना का आसानी से पहुंच पाना संभव न था। और हमारे लोगो के पास सिर्फ लाठी डंडे या भाले ही हुआ करते थे, और डाकू बंदूक के आगे सभी को भयभीत कर दिया करते थे।       एक गांव धन समृद्धि से पूर्ण था जिसका  मुखिया, राजपूत बलदेव सिंह राणा अपनी सूझबूझ और नेतृत्व क्षमता के लिए जाना जाता था। उनके नेतृत्व में गांव के लोग एकजुट थे और अपने गांव की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। लेकिन डकैतों की संख्या...

वर्तमान परिपेक्ष्य में एक वार्ता: राणा संस्कृति मजूषा के साथ

वर्तमान परिपेक्ष्य में एक वार्ता: राणा संस्कृति मजूषा के साथ  संकलन कर्ता: नवीन सिंह राणा  **स्थान:** राणा संस्कृति मंजूषा ने आज आयोजित किया संवाद। स्थल कंजाबाग गाँव का मुख्य चौपाल। वृक्षों के नीचे लगी चारपाइयों पर दिल्लू सिंह, महावीर सिंह और पुष्पा राणा बैठे हैं। गाँव के कुछ और लोग पास बैठे सुन रहे हैं। सभी के मन में चिंता है कि आने वाले समय में थारू समाज किस दिशा में जा रहा है और किन मुद्दों पर काम करना जरूरी है। --- नवीन सिंह राणा: राणा संस्कृति मंजूषा द्वारा अयोजित इस संवाद कार्यक्रम में आप सभी को राम राम और स्वागत। आज के संवाद कार्यक्रम में उपस्थित सभी समाज चिंतक बधाई के पात्र है। श्रीमान दिल्लू जी से निवेदन है कि आज के संवाद कार्यक्रम को आगे बढ़ाएं । **दिल्लू सिंह:** (गहरी सांस लेते हुए) "भाई, समाज को लेकर मेरी चिंता बढ़ती जा रही है। धर्मांतरण की समस्या विकराल होती जा रही है। लोग अपनी आस्था और परंपराएँ खोते जा रहे हैं। धीरे-धीरे हमारे त्योहारों में शिरकत करने वाले लोग घटते जा रहे हैं। जब हम अपनी पहचान को भूलते जाएंगे, तो समाज का क्या होगा?" **महावीर सिंह:** (सिर हिलाते ...

**"संस्कृति के प्रहरी: थारू समाज की एकता और जागरूकता की ओर एक नई दिशा"**राणा संस्कृति मंजूषा में परिचर्चा: एक संवाद

"संस्कृति के प्रहरी: थारू समाज की एकता और जागरूकता की ओर एक नई दिशा" **राणा संस्कृति मंजूषा में परिचर्चा: एक संवाद** संकलन कर्ता नवीन सिंह राणा  **(पृष्ठभूमि: हरी-भरी वादियों और पवित्र सरयू नदी के किनारे, नवीन सिंह राणा, श्रीमती पुष्पा राणा, सचिन सिंह राणा, दिल्लू सिंह राणा और महावीर सिंह राणा बैठकर अपने समाज की समस्याओं और सांस्कृतिक बदलावों पर गहन चर्चा कर रहे हैं। पक्षियों की चहचहाहट और शांत वातावरण में यह वार्तालाप प्रारंभ होती है।)** नवीन सिंह राणा: (हल्की सी मुस्कान के साथ) राणा संस्कृति मंजूषा के सानिध्य में आप सभी समाज शुभचिंतकों का हार्दिक स्वागत अभिनंदन है, आज हम सब इस सरयू नदी के किनारे अपने समाज के संबंध में विचार विमर्श करने हेतु उपस्थित हैं। मैं आप सभी से आशा करता हुं कि हमारी यह चर्चा राणा समाज के लिय मार्गदर्शन का कार्य करेगी। सबसे पहले मैं पुष्पा राणा जी से निवेदन करना चाहूंगा कि आप आज की इस परिचर्चा का श्री गणेश करें। **पुष्पा राणा:** (गहरी सांस लेते हुए) "देखिए, भैया, ये जो धर्मांतरण की समस्या है, वह हमारे समाज को अंदर से कमजोर कर रही है। हम जिस सांस...

पुष्पा राणा जी से वार्ता with राणा संस्कृति मंजूषा

### **राणा संस्कृति मंजूषा: पुष्पा राणा जी से वार्ता** संकलन कर्ता: नवीन सिंह राणा  **नवीन सिंह राणा (सवाल):** पुष्पा जी नमस्ते, राणा संस्कृति मंजूषा आपका हार्दिक स्वागत करता है। आशा है हमारे पाठकों के लिय आज आप बेहतरीन जानकारियां लाई होंगी। मेडम जी, राणा संस्कृति में देवताओं की पूजा और रीति-रिवाजों के बारे में बहुत कुछ सुना है। आपने जिक्र किया कि कुछ लोग ग़लत धारणाएं फैला रहे हैं कि देवता पूजन के समय एक विशेष गीत गाया जाता है। कृपया इस पर विस्तार से बताइए। **पुष्पा राणा (जवाब):** राणा संस्कृति मंजूषा के पाठकों को मेरा नमस्ते। बिल्कुल नवीन जी, यह एक महत्वपूर्ण विषय है। देवता पूजन के समय कुछ ग़लतफहमियां फैलाई जा रही हैं कि पूजा के दौरान "बन जयिये, बन जयिये ख्याल हमारो बन जयिये" गाना गाया जाता है। लेकिन यह पूरी तरह से ग़लत है। देवताओं की पूजा के समय इस प्रकार का कोई गाना नहीं गाया जाता। यह गाना स्वांग (नाटकीय प्रस्तुति) के दौरान गाया जाता है, जिसमें मनोरंजन और अभिनय का तत्व होता है। देव पूजन के समय हम देवताओं से हाथ जोड़कर विनती करते हैं, और उन्हें श्रद्धा से प्रसाद अर्पित करते...