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बुक्सा समुदाय के दिव्य महापुरुष और देवता

बुक्सा समुदाय  के दिव्य महापुरुष और देवता  नोट: विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्णित। बुक्सा जनजाति उत्तराखंड के मूल निवासियों में से एक है, जो कुमाऊं और गढ़वाल मंडलों के तराई-भाबर क्षेत्र में बसी है। इस जनजाति का सांस्कृतिक और धार्मिक इतिहास गहराई और समृद्धि से भरा हुआ है। इनके पुजनीय पूर्वजों और देवताओं के माध्यम से न केवल इनकी धार्मिक मान्यताओं का पता चलता है, बल्कि उनकी बहादुरी, संघर्ष, और जीवनशैली की भी झलक मिलती है। आइए, इनके पवित्र पुरुषों और देवताओं के बारे में विस्तार से जानते हैं। नोट: दी गई जानकारी विभिन्न स्रोतों से ली गई है जिसमें कुछ कमी या बदलाव हो सकता है। --- कुमाऊं मंडल के पुजनीय पुरुष और देवता 1. मनीराम बाबा मनीराम बाबा बुक्सा समाज के मुख्य संरक्षक और आराध्य माने जाते हैं। उन्हें एक विद्वान और न्यायप्रिय योद्धा के रूप में पूजा जाता है। उनकी कहानियां समाज को एकजुटता और साहस की प्रेरणा देती हैं। 2. विजय शिकारी विजय शिकारी को समाज के सर्वश्रेष्ठ शिकारियों में से एक माना जाता है। उनकी वीरता और जंगल के प्रति उनके गहरे ज्ञान ने उन्हें समाज का संरक्ष...

तीस मारखा और विजय शिकारी की कथा: बुक्सा समाज की दिव्य गाथा

तीस मारखा और विजय शिकारी की कथा: बुक्सा समाज की दिव्य गाथा भूमिका यह कहानी बुक्सा जनजाति की पौराणिक और दिव्य गाथा है, जिसमें सकतपुरिया गोत्र के विजय शिकारी और उनके पुत्र तीस मारखा का उल्लेख है। यह कथा बुक्सा समाज की धार्मिक मान्यताओं और उनकी ऐतिहासिक धरोहर का हिस्सा है। विजय शिकारी और तीस मारखा को समाज में देवता के रूप में पूजा जाता है। इस कहानी को विस्तार से समझने के लिए आइए इसे क्रमबद्ध तरीके से जानते हैं। --- विजय शिकारी: एक दिव्य शिकारी की कथा शिकार और परियों का मिलन बहुत समय पहले की बात है, विजय शिकारी, जिन्हें विजुआ शिकारी भी कहा जाता है, एक दिन शिकार के लिए जंगल गए। शिकार के दौरान उन्होंने एक तालाब में स्वर्ग से आईं परियों को स्नान करते हुए देखा। उनकी दिव्य सुंदरता ने विजय शिकारी को मोहित कर दिया, और उन्होंने उनमें से एक परी को अपने जीवनसाथी के रूप में चुनने का निर्णय लिया। विजय शिकारी ने अपनी तंत्र विद्या का उपयोग करके परियों के वस्त्र छिपा दिए। स्नान के बाद, जब परियां तालाब से बाहर निकलीं, तो उन्होंने देखा कि उनके वस्त्र गायब हैं। अपनी दिव्य शक्तियों से उन्होंने पता लगाया कि व...

"डॉ. मनमोहन सिंह: सादगी, विद्वत्ता और सेवा के प्रतीक का प्रेरक जीवन"

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"डॉ. मनमोहन सिंह: सादगी, विद्वत्ता और सेवा के प्रतीक                 " भावपूर्ण श्रद्धांजलि" भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर 2024 को 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके निधन पर देशभर में शोक की लहर है, और उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही है। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के गाह नामक गांव (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। देश के विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आकर अमृतसर में बस गया। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। बाद में वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए, जहां से उन्होंने अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी से ऑनर्स की डिग्री अर्जित की। इसके बाद 1962 में उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नूफिल्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी.फिल किया।  पारिवारिक जीवन: डॉ. सिंह का विवाह गुरशरण कौर से हुआ, और उनके तीन पुत्रियां हैं। उनका पारिवारिक जीवन सादगी और विनम्रता का प्रतीक रहा, जिसमें उन्होंने अपने कर्तव्यों...

राष्ट्रीय किसान दिवस पर राणा थारु किसानों के लिए विशेष लेख

राष्ट्रीय किसान दिवस पर राणा थारु किसानों के लिए विशेष लेख भूमिका राष्ट्रीय किसान दिवस (23 दिसंबर) का महत्व भारत जैसे कृषि-प्रधान देश में अनन्य है। यह दिन उन किसानों के सम्मान में मनाया जाता है, जिन्होंने देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। राणा थारु समुदाय की खेती-किसानी की परंपरा सदियों पुरानी है। इस लेख में राणा थारु किसानों की ऐतिहासिक खेती-पद्धतियों, वर्तमान चुनौतियों, सरकारी सुविधाओं और भविष्य की संभावनाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। --- 1. राणा थारु किसानों की पारंपरिक खेती 100 वर्ष पहले का स्वरूप: राणा थारु समुदाय प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित खेती करते थे। मुख्य फसलें: धान, गेहूं, जौ, मक्का। खेती का स्वरूप: जैविक खाद, पानी के प्राकृतिक स्रोतों और बैलों का उपयोग। खेती में बदलाव: हरित क्रांति के बाद उन्नत किस्म के बीज, रासायनिक उर्वरक, और आधुनिक यंत्रों का आगमन। सिंचाई के साधनों का विस्तार। उत्पादन में वृद्धि, लेकिन मृदा की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव। --- 2. रासायनिक खेती के प्रभाव सकारात्मक प्रभाव: फसलों की उत्पादकता में वृद्धि। त्वरित परिण...

#राणा: थारू: समाजः - इतिहासः, वर्तमानः च भविष्यः

 राणा समाजः - इतिहासः, वर्तमानः च भविष्यः  प्रस्तावना राणा समाजः भारतदेशे प्रतिष्ठितः समाजः अस्ति। अस्य समाजस्य इतिहासः गौरवपूर्णः, सांस्कृतिकः च अस्ति। राणा समाजे वीरता, शौर्यं, नेतृत्वं च सदैव प्रमुखं स्थानं प्राप्तं अस्ति। इदानीं वर्तमानसमाजे राणा समाजस्य भूमिका महत्वपूर्णा अस्ति, तथा भविष्ये अपि अस्य समाजस्य स्थिति उत्कर्षाय स्पृहणीयम् अस्ति।  इतिहासः राणा समाजस्य इतिहासः शौर्यपूर्णः अस्ति। अस्मिन्समाजे महानः योद्धारः, शासकाः च उत्पन्नाः। एते जनाः स्वधर्मे निष्ठाः, स्वदेशे प्रेमयुक्ताः, तथा स्वकर्मणि कटाक्षिणः आसन्। राणा प्रतापः, उदयसिंहः च प्रसिद्धयोद्धारः एतेषां मध्ये मुख्याः सन्ति। एते वीराः स्वराज्यस्य रक्षणार्थं पराक्रमं प्रदर्शितवन्तः। राणा प्रतापः विशेषतः मेवाड़ राज्यस्य रक्षायाः निमित्तं अद्वितीयं साहसं प्रदर्शितवान्, तस्य इतिहासे अनेके शौर्यकथाः सन्ति।  वर्तमानः अद्यतनकाले राणा समाजः शिक्षायाः, व्यापारस्य, सेवायाः च क्षेत्रेषु महत्वपूर्णं योगदानं दत्तवान् अस्ति। समाजे जनाः उच्चशिक्षां प्राप्तवन्तः, तथा विविधकार्ये प्रवृत्ताः सन्ति। अस्मिन्समाजे न केवलं प...

जमीन, गांव और मेरी पहचान: एक राणा थारू किसान की आत्मकथा

जमीन, गांव और मेरी पहचान: एक राणा थारू किसान की आत्मकथा  🖋️नवीन सिंह  मैं एक राणा थारू किसान हूँ। मेरा जन्म उस भूमि पर हुआ, जिसे मेरे पुरखों ने अपने पसीने और श्रम से हरियाली में बदला था। बचपन से ही मैंने अपने पिता और दादा को खेतों में काम करते देखा। उस समय हमारी जमीनें तराई की शान थीं—उपजाऊ, हरी-भरी, और आत्मनिर्भरता का प्रतीक। हमारी जिन्दगी सीधे मिट्टी से जुड़ी थी, और खेतों के बीच बहती हवा में हमारी संस्कृति, परंपरा और पहचान का एहसास होता था। लेकिन आज जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो मेरे दिल में एक टीस उठती है। वो जमीन, जो कभी हमारे गौरव का प्रतीक थी, अब पराई हो चुकी है। यह सब कैसे हुआ, इसकी कहानी मेरी जिन्दगी की सबसे बड़ी विडंबना है। जमीन की कीमत और मेरी भूल शुरुआत उस समय से हुई, जब तराई में बाजारों का विस्तार होने लगा। हमारे गांव की जमीन, जो कभी गुमनाम थी, अचानक से लोगों की नजरों में आ गई। बाहरी लोग हमारी जमीन खरीदने के लिए गांव आने लगे। उनके पास पैसे थे, और हमारी आंखों में सपने। मेरे लिए भी यह निर्णय आसान नहीं था, लेकिन जब मेरे बच्चों की पढ़ाई, घर की जरूरतों और महंगाई का ...

खेतों का दर्द: किसान की व्यथा आत्मकथा

खेतों का दर्द: किसान की व्यथा आत्मकथा मैं रामदीन हूं, एक सीधा-सादा किसान। जीवन का हर दिन मैंने अपने खेतों और परिवार के लिए जीया। मेरे पास ज्यादा कुछ नहीं था, लेकिन जो था, वह मेरे लिए सब कुछ था—मेरी तीन बीघा जमीन, जो मैंने अपनी मेहनत से खरीदी थी। यह कहानी मेरी है, मेरे संघर्ष की, मेरी हार की, और उस सबक की, जो मैंने और मेरे गांव ने सीखा। विश्वास पर किया गया सौदा: एक भूल करीब 20 साल पहले की बात है। स्नेहीलाल, जो मेरे गांव का ही एक आदमी था, मुझसे अपनी तीन बीघा जमीन बेचने को राजी हुआ। मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं थे, लेकिन मैंने अपनी जमा पूंजी और थोड़ा उधार लेकर वह जमीन खरीद ली। सौदा साधारण स्टांप पेपर पर हुआ था। मैंने उस वक्त न तो वकील से सलाह ली, न किसी गवाह को बुलाया। मेरे मन में एक ही बात थी—“हम गांव के लोग हैं, हमारा रिश्ता विश्वास पर टिका है।” उस दिन मुझे लगा कि मैंने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली। मैंने उस जमीन पर काम शुरू किया, वहां फसलें उगाईं, और अपने बच्चों के भविष्य के सपने देखे। बीस साल बाद: विश्वास का अंत समय बीता। मेरे खेतों में हर साल फसलें लहलहाती थीं। लेकिन एक ...