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असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।।श्रीमती पुष्पा राणा जी द्वारा लिखित

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असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।। श्रीमती पुष्पा राणा जी द्वारा लिखित  Published by Naveen Singh Rana  सभी भाई,बंधू एवं मित्रगणों को ज्योति पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। यह देखा जा सकता है कि आज-कल कोई भी तीज त्यौहार, समुदाय विशेष, धर्म विशेष अथवा क्षेत्र विशेष की मान्यताओं के आधार पर नहीं मनाये जाते। हर व्यक्ति, हर क्षेत्र तथा हर समुदाय तक सोशल मीडिया की पहुंच हो जाने के कारण सभी पर्व मीडिया में दिखाये जा रहे तौर तरीकों की नकल करते हुए मनाये जाते हैं जो अक्सर मनोरंजक,लोक लुभावन और व्यवसायिक उद्देश्यों को ध्यान में रख कर दिखाये जाते हैं ।स्वयं को आधुनिक तथा ग्लैमरस दिखाने एवं रील बनाने के चक्कर में लोग इन सबका अंधानुकरण भी करते हैं।  परन्तु आज हम चर्चा करेंगे राणा समाज द्वारा मनाये जाने बाले त्योहार "दिवारी" की , जिसको तथाकथित बुद्धिजीवियों तथा लेखकों द्वारा रहस्यमय बना दिया गया है। हम अक्सर "ल" की जगह "र" अक्षर का उच्चारण करते हैं। अतः दिवाली से दिवारी शब्द प्रचलन में आ गया।लोगों ने लिखा है कि राणा लोग (थारु जनजाति) दीपावली क...

थरुहट की आत्मकथा - आत्म संघर्ष और अस्तित्व की कहानी✍️ नवीन सिंह राणा

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थरुहट की आत्मकथा - आत्म संघर्ष और अस्तित्व की कहानी ✍️ नवीन सिंह राणा  तराई की उर्वर भूमि में बसा हुआ मैं, थरुहट। आज मुझे लोग ‘थरुआट’ के नाम से जानते हैं, पर मेरी कहानी सदियों पुरानी है। इस भूमि पर राणा राजपूतों ने अपने कदम उस समय रखे, जब उनकी प्यारी वसुंधरा ‘थार’ संकटों के घेरे में थी। मुझे अब भी याद है वे कठिन समय, जब ये लोग अपनी धरा, अपनी जड़ों और अपनी संस्कृति को छोड़कर यहां, मेरे पास आ बसे थे। वह एक असहनीय पीड़ा का समय था, जब इन्हें अपने अस्तित्व और अपनी संस्कृति के सरंक्षण के लिए अपने घरों को त्यागना पड़ा था। उनके चेहरों पर छाई चिंता, दिलों में धड़कता डर, पर साथ ही, इरादों में एक अटूट संकल्प – मुझे सब कुछ अब भी याद है। जब वे पहली बार आए तो सबसे पहले मेरे एक कोने में, जिसे आज मीरा बारह राणा के नाम से जाना जाता है, पड़ाव डाला। बारह राणा राजपूतों का एक जत्था था, और उनके साथ उनकी प्रजा भी थी। इन राजपूतों ने एक अनकही जिम्मेदारी का बोझ उठाया था – अपने लोगों की सुरक्षा और अपनी विरासत का संजोना। जंगल, दलदल, और बीमारी से घिरी तराई की भूमि में वे घबरा सकते थे, पर उनके इरादों में दृढ...

क्यों जरूरी है संस्कारी शिक्षा हमारी आधुनिक नई पीढ़ी को? एक विचार ✍️ राणा संस्कृति मंजूषा

क्यों जरूरी है संस्कारी शिक्षा हमारी आधुनिक नई पीढ़ी को? एक विचार ✍️ राणा संस्कृति मंजूषा  हमारे राणा थारू समाज का गौरवशाली इतिहास हमें हमेशा अपने स्वाभिमान और मूल्यवान संस्कारों की प्रेरणा देता है। यह एक ऐसा इतिहास है जो स्वाभिमान, साहस, और नैतिकता की मजबूत नींव पर टिका हुआ है। लेकिन वर्तमान पीढ़ी में जिस प्रकार नैतिक गिरावट देखने को मिल रही है, उसे अनदेखा करना हमारे समाज के लिए अत्यधिक नुकसानदायक हो सकता है। आज, शिक्षित होने के बावजूद, हमारी नई पीढ़ी कई नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों से विमुख होती जा रही है। इसका कारण मात्र शिक्षा का अभाव नहीं है, बल्कि संस्कार युक्त शिक्षा की कमी भी है। संस्कार युक्त शिक्षा क्यों आवश्यक है? संस्कार युक्त शिक्षा केवल किताबों में ज्ञान नहीं देती बल्कि एक व्यक्ति को नैतिकता, संयम, सहानुभूति, और विवेक का महत्व भी समझाती है। यह शिक्षा जीवन में सही और गलत के बीच भेद करना सिखाती है और व्यक्ति को समाज के प्रति जिम्मेदारी का बोध कराती है। इसके बिना, व्यक्ति केवल पढ़ाई में पारंगत हो सकता है लेकिन नैतिक मूल्यों की कमी के कारण गलत निर्णय ले सकता है। संस्कार ...

तराई की आत्मकथा और राणा थारू समाज

तराई की आत्मकथा और राणा थारू समाज  ✍️नवीन सिंह राणा  मेरा नाम तराई है, और मैं उत्तराखंड के उस क्षेत्र की गाथा हूँ, जो कभी ऋषि-मुनियों की तपोस्थली हुआ करती थी। मेरे आंचल में सीता माता ने वनवास के दिन बिताए, और यहाँ ही महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था। मैंने पांडवों का अज्ञातवास देखा, अर्जुन का पराक्रम भी यहीं का हिस्सा बना जब उसने कौरवों को पराजित कर विराट राजा की गायों को सुरक्षित लौटाया। मेरे घने जंगल और शांत धाराएँ हमेशा से ही वीरों और तपस्वियों का आश्रय स्थल रही हैं। समय के साथ, मेरी भूमि विदर्भ के राजाओं के अधीन आई, जिनके पास अनगिनत पशुधन था। मैंने राजाओं के किले देखे और युद्धों की गूंज सुनी। कीचक का वध मेरे वन-क्षेत्र किच्छा के पास हुआ, और भीमसेन की वीरता का साक्षी मैं बना। फिर गुप्त काल आया और कत्यूरियों का शासन हुआ। उनके काल में मेरी समृद्धि चरम पर थी, लेकिन धीरे-धीरे उठा-पटक ने मुझे त्रस्त कर दिया। मुगलों के आक्रमणों ने मेरी शांति को तोड़ा, और मैं संघर्ष की भूमि बन गई। जब मुगल आए, उन्होंने मेरे हिस्सों पर अधिकार जमाया। अकबर ने मुझे राजा रूद्र चंद को सौंपा, और इस चंदवंश न...

खुशहाल राणा थारू समाज: बुरी आदतों को छोड़कर प्रगति की ओर"

"खुशहाल राणा थारू समाज: बुरी आदतों को छोड़कर प्रगति की ओर" ✍️ राणा संस्कृति मंजूषा  राणा थारू समाज, जो अपनी सांस्कृतिक और पारंपरिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करते हुए एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। इस समाज की खुशहाली और प्रगति के लिए जरूरी है कि इसके लोग अपनी आदतों और मानसिकता में सकारात्मक बदलाव लाएं। खुशी और संतुलन एक स्थायी प्रक्रिया है, जिसे कई छोटी-छोटी आदतों को बदलकर हासिल किया जा सकता है। इस संदर्भ में कुछ आदतों को छोड़ने का महत्व राणा थारू समाज के लिए गहरे प्रभाव डाल सकता है। 1. ओवरथिंकिंग (अधिक सोचने की आदत छोड़ना) राणा थारू समाज के बहुत से लोग अस्थिर आर्थिक स्थितियों और सीमित संसाधनों की वजह से ओवरथिंकिंग की आदत में फंस जाते हैं। वे भविष्य की अनिश्चितताओं और परेशानियों को लेकर अत्यधिक सोचते हैं, जिससे मानसिक तनाव और चिंता बढ़ती है। इससे समाज के लोग अपनी प्रगति की दिशा में कदम उठाने से डरने लगते हैं। ओवरथिंकिंग छोड़ने से लोगों में आत्मविश्वास और साहस बढ़ेगा, जिससे समाज के युवा और अन्य सदस्य नई चुनौतियों का सामना करने के लिए तैय...

होरी का महत्त्व: परंपरा, इतिहास और विज्ञान✍️ नवीन सिंह

होरी का महत्त्व: परंपरा, इतिहास और विज्ञान ✍️ नवीन सिंह  होली या होरी केवल एक त्योहार नहीं है; यह भारतीय समाज की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यह रंगों का उत्सव जहाँ धार्मिक और सामाजिक तात्पर्य से जुड़ा है, वहीं यह प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने और परंपरागत पूजा पद्धतियों से भी गहराई से संबंधित है। हमारे समाज में 'मरी होरी' और 'जिंदी होरी' जैसे प्रथाओं का अनोखा सांस्कृतिक महत्व है, जो आज भी कई सवालों को जन्म देता है। राजवीर सिंह राणा और पुष्पा राणा द्वारा साझा किए गए विचार हमें होली के पारंपरिक और वैज्ञानिक पहलुओं से जोड़ते हैं। इस लेख में, हम इन दोनों वक्ताओं के विचारों को विस्तार से समझेंगे और होरी की परंपरा, पूजा पद्धति, और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को एक नई रोशनी में देखेंगे। होरी: परंपरा और पूजा होरी, जैसा कि राजवीर सिंह राणा ने विस्तार से वर्णित किया, हमारी प्राचीन परंपरा का हिस्सा है। 'होली' शब्द से बदलकर 'होरी' का उपयोग और 'हुरक माता' की पूजा इस बात का प्रमाण है कि यह त्योहार हमारे समाज में केवल उत्सव से अधिक रहा है। यह हमारी फसलों के पकने और ग...

जीवन की सच्ची धरोहर: राणा थारू समाज के संदर्भ में एक संदेश

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जीवन की सच्ची धरोहर: राणा थारू समाज के संदर्भ में एक संदेश ✍️ राणा संस्कृति मंजूषा  रतन टाटा जैसे महान और सफल उद्योगपति के अंतिम शब्द हमें यह एहसास कराते हैं कि जीवन की सच्ची कीमत केवल धन और वैभव में नहीं है, बल्कि उसमें है, जिसे हम अपनों के साथ साझा करते हैं। यह संदेश न केवल वैश्विक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि हमारे राणा थारू समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण विचार है, क्योंकि यह एक ऐसा समाज हैं, जो अपनी परंपराओं, संस्कृति और आपसी मेलजोल पर गर्व करता है। हमारे समाज में जब हम संपन्नता की बात करते हैं, तो यह केवल भौतिक संपत्ति तक सीमित नहीं होनी चाहिए। हमारे बड़ों ने हमें सिखाया है कि सच्ची संपत्ति हमारे रिश्तों, हमारे जीवन के मूल्य और हमारी सांस्कृतिक धरोहर में है। चाहे हम कितनी भी जमीन-जायदाद, पैसा, या व्यवसाय खड़ा कर लें, अंतिम समय में यह सब कुछ उतना महत्वपूर्ण नहीं रह जाता जितना कि हमारे अपने लोग, हमारी समाज की एकता, और हमारे द्वारा किए गए सद्कर्म होते हैं। जैसा कि रतन टाटा ने बताया, जीवन की सच्ची खुशी भौतिक वस्तुओं में नहीं, बल्कि हमारे रिश्तों में है। राणा थारू समाज की पहचान ही...