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थारू समाज में तीज पर्व: परंपरा, उल्लास और सांस्कृतिक धरोहर"

"थारू समाज में तीज पर्व: परंपरा, उल्लास और सांस्कृतिक धरोहर" By Naveen Singh Rana  तीज का पर्व थारू समाज में प्राचीन समय से उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता रहा है। पुराने समय में तीज की बाजार का विशेष महत्व था, जहां सोन पापड़ी, लच्छे और नाशपाती जैसे फलों और मिठाइयों का भरपूर आनंद लिया जाता था। हालांकि, आजकल तीज मनाने के तरीके में बदलाव आया है, लेकिन इसका उत्साह और उल्लास वैसा ही बना हुआ है। तीज पर्व की एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि जब कोई बालक जन्म लेता है, तो बेमाइया देवियों का चित्र बनाया जाता है, जिन्हें हमारी मां के रूप में पूजा जाता है। सावन महीने में बहनें अपने भाइयों और भतीजों के लिए लंबी उम्र की कामना करती हुई तीज का त्यौहार मनाती  हैं, खासकर वे भाई , भतीजे जो दूर दराज में काम करने जाते हैं। इन बहनों का स्नेह और ममता गुलगुला और पूरी जलधारा में प्रवाहित कर प्रकट की जाती है और गंगा मां से उनके अच्छे होने की कामना की जाती है। समाज में इस सम्बन्ध में कई लोककथाये कही जाती हैं  उन्ही में से एक लोक लोककथा कही जाती है कि एक बार की बात है, दो बहनें वे और मईया गंग...

आयकर दिवस राष्ट्रीय प्रगति की रीढ़

**आयकर दिवस: राष्ट्रीय प्रगति की रीढ़** आयकर दिवस, जिसे हम 24 जुलाई को मनाते हैं, न केवल एक प्रशासनिक आवश्यकता है बल्कि एक राष्ट्रीय कर्तव्य और गर्व का प्रतीक भी है। इस दिन, हमें न केवल सरकार की आयकर नीतियों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, बल्कि यह भी समझना चाहिए कि यह कराधान प्रणाली हमारे देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति के लिए कितनी महत्वपूर्ण है। ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य 1860 में जेम्स विल्सन ने ब्रिटिश भारत में आयकर की शुरुआत की थी, जिससे सरकारी खर्चों को पूरा करने के लिए एक स्थायी राजस्व स्रोत स्थापित हुआ। तब से लेकर अब तक, आयकर प्रणाली में कई सुधार और परिवर्तन हुए हैं, जिससे यह प्रणाली अधिक प्रभावी और न्यायसंगत बनी है। आर्थिक विकास में आयकर की भूमिका आयकर, सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण राजस्व स्रोत है, जो देश के विकासात्मक परियोजनाओं, रक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश के लिए आवश्यक धनराशि प्रदान करता है। आयकर की वजह से ही सरकार सामाजिक कल्याण योजनाओं को क्रियान्वित कर सकती है और कमजोर वर्गों को सहायता प्रदान कर सकती है। यह धनराशि न केवल सरकारी योजनाओं...

**कहानियों का जादू: राधा की शिक्षा यात्रा**

**कहानियों का जादू: राधा की शिक्षा यात्रा** By Naveen Singh Rana  एक छोटे से गाँव में राधा नाम की एक बच्ची रहती थी। राधा को कहानियां सुनना और पढ़ना बहुत पसंद था। उसके गाँव में एक छोटी सी लाइब्रेरी थी, जिसे गांव के सभी लोगों ने मिलकर बनाया था।जहाँ वह रोज़ जाया करती थी। एक दिन, उसे एक पुरानी और धूल से भरी हुई किताब मिली। किताब के ऊपर लिखा था, "जादुई पुस्तक।" राधा ने उत्सुकता से पुस्तक खोली और पढ़ने लगी। जैसे ही उसने पहली कहानी पढ़नी शुरू की, उसे लगा जैसे वह कहानी के अंदर खींची जा रही है। वह एक घने और सुंदर फूलों के जंगल में पहुँच गई, जहाँ उसने एक बौने से मुलाकात की। बौने ने कहा, "राधा, इस जंगल में एक खजाना छुपा है। तुम्हें इस खजाने तक पहुँचने के लिए कुछ पहेलियों को हल करना होगा।" पहली पहेली थी: "मैं ऐसी जगह हूँ जहाँ सूरज कभी नहीं उगता, फिर भी मैं हमेशा चमकता हूँ। मैं क्या हूँ?" राधा ने थोड़ा सोचा और फिर मुस्कुराई, "और पहेली को दुबारा बुदबुदाया और बोली,"यह चाँद है!" बौना खुश हुआ और उसने अगली पहेली दी: "मैं हवा में उड़ता हूँ, फिर भी मेरे पा...

गुरु पूर्णिमा और भारतीय संस्कृति: राणा संस्कृति मंजूषा द्वारा संपादकीय**

**गुरु पूर्णिमा और भारतीय संस्कृति: राणा संस्कृति मंजूषा द्वारा संपादकीय** गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो न केवल हमारे शास्त्रीय परंपराओं में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, बल्कि आज की आधुनिक जीवनशैली में भी उसका विशेष महत्व है। यह पर्व अषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, और इसे महर्षि वेदव्यास के जन्मदिन के रूप में भी जाना जाता है, जिन्होंने चारों वेदों का संकलन किया था। भारतीय समाज में गुरु का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण और आदरणीय रहा है। "गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।" इस मंत्र में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश के समान बताया गया है, जो दर्शाता है कि गुरु का स्थान हमारे जीवन में कितनी महत्ता रखता है।  गुरु पूर्णिमा का महत्व सिर्फ धार्मिक या आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं है, बल्कि यह शिक्षा और ज्ञान के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का भी प्रतीक है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमें अपने शिक्षकों और मार्गदर्शकों के प्रति आभार व्यक्त करना चाहिए, जिन्होंने हमें ज्ञान, संस्कार और जीवन के मूल्य सिखाए...

कहानी: "विनम्रता की जीत

कहानी: "विनम्रता की जीत" नवीन सिंह राणा  एक छोटे से गांव में, एक महिला जिसका नाम राधा देवी था, रहती थी। राधा देवी को उसकी तीव्र बुद्धि और ज्ञान के कारण सभी सम्मान करते थे। गांव के लोग अक्सर अपनी समस्याओं के समाधान के लिए राधा के पास आते थे, और वह हमेशा उनकी मदद के लिए तैयार रहती थी। धीरे-धीरे, राधा को अपने ज्ञान और समझ पर गर्व होने लगा और उसने खुद को सबसे अधिक बुद्धिमान मानना शुरू कर दिया।उसे अभिमान हो गया था। राधा देवी को अब लोगों का सम्मान मिलने के बजाय, वे उससे दूर भागने लगे। वह लोगों के सवालों का जवाब तो देती थी, लेकिन उनके विचारों को कभी महत्व नहीं देती थी। उसने यह मान लिया था कि केवल वही सही है और दूसरों की राय कोई मायने नहीं रखती। एक दिन गांव में एक नई महिला, सुमनदेवी, आई। सुमन देवी भी बहुत बुद्धिमान थी लेकिन वह विनम्र और समझदार भी थी। उसने लोगों के साथ बात की, उनकी समस्याओं को सुना और उनकी राय को भी महत्व दिया। धीरे-धीरे लोग सुमन देवी के पास जाने लगे और राधा देवी को भूलने लगे। राधा देवी को यह बदलाव महसूस हुआ और उसने अपने आप से सवाल किया कि आखिर क्यों लोग उससे दूर हो र...

संघठन की सच्चाई एक कहानी

संगठन की सच्चाई By Naveen Singh Rana  एक समय की बात है, एक छोटे से गांव समाज में एक समाजसेवी संगठन का गठन हुआ जिसका मुख्य उद्देश्य गांव की उन्नति और भलाई करना था। इस संगठन के अध्यक्ष, मोहन, एक विनम्र और सज्जन व्यक्ति थे, जो सबके साथ प्रेम और सौहार्द से पेश आते थे। उनके नेतृत्व में संगठन ने कई सफल परियोजनाएं चलाईं और गांव के लोग खुशहाल जीवन जीने लगे। एक दिन, मोहन ने अपने स्वास्थ्य कारणों से उच्च पद से इस्तीफा दे दिया। संगठन ने सर्वसम्मति से अमित को नया उच्च पद चुना। अमित पढ़े-लिखे और बुद्धिमान थे, लेकिन उनमें एक कमी थी—वे हमेशा अपने पद और शक्ति का दिखावा करते थे। और खुद को संघठन का कद्दावर पदाधिकारी समझता था। अमित नेउच्च पद के बाद तुरंत ही अपने पद का रौब दिखाना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने साथियों से कठोर व्यवहार करना शुरू कर दिया और अपने आदेशों को बिना किसी सलाह के लागू करना शुरू कर दिया। जहां पहले मीटिंग्स में सबकी राय ली जाती थी, अब वहां अमित के आदेश ही सबकुछ थे। और बात बात में अन्य सदस्यों को ठीक ढंग से काम न करने पर उनके पदों से हटाने की धमकियां दी जाने लगीं। धीरे-धीरे संगठन के ...

जल भराव की स्थिति: अतिक्रमण और जल निकास की कमी के प्रभाव

जल भराव की स्थिति: अतिक्रमण और जल निकास की कमी के प्रभाव Published by Naveen Singh Rana  वर्तमान समय में जल भराव की समस्या ने शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों दोनों को बुरी तरह प्रभावित किया है। इस समस्या के प्रमुख कारणों में नदी-नालों पर अतिक्रमण और जल निकास की कमी प्रमुख हैं। यह दो पहलू मिलकर न केवल स्थानीय निवासियों की जीवनशैली को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन को भी गंभीर संकट में डाल रहे हैं।  नदी-नालों पर अतिक्रमण नदी-नालों पर अतिक्रमण का मुद्दा तेजी से बढ़ रहा है। जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे भूमि की मांग भी बढ़ती जा रही है। इस मांग को पूरा करने के लिए नदी-नालों के किनारे अवैध निर्माण और अतिक्रमण की घटनाएं आम होती जा रही हैं। इन अतिक्रमणों के कारण नदियों का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है और वे अपनी प्राकृतिक दिशा में बहने में असमर्थ हो जाती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि बारिश के मौसम में जल का संचय अधिक हो जाता है और जल भराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जल निकास की कमी जल निकास प्रणाली की कमी भी जल भराव का एक बड़ा कारण है। कई नगरों और गांवों में पुरा...