साक्षात्कार : "संकल्प और सफलता: एक प्रेरक संघर्ष की कहानी"
साक्षात्कार
प्रस्तुतकर्ता: नवीन सिंह
साक्षात्कारकर्ता: निकेता (NET व JRF उत्तीर्ण)
विषय: "संकल्प और सफलता: एक प्रेरक संघर्ष की कहानी"
नवीन सिंह: नमस्कार निकेता! सबसे पहले आपको UGC-NET और JRF परीक्षा उत्तीर्ण करने पर हार्दिक बधाई। यह उपलब्धि अपने आप में बड़ी बात है, और जब हमें पता चला कि आपने 80% शारीरिक विकलांगता के बावजूद यह सफलता अर्जित की है, तो यह और भी प्रेरणादायक हो गया। सबसे पहले बताइए, कैसा महसूस हो रहा है?
निकेता: धन्यवाद नवीन जी। सच कहूं तो यह भावनाओं से भरा हुआ पल है। मैं केवल परीक्षा पास नहीं कर रही हूं, बल्कि अपने अंदर की सीमाओं को तोड़कर समाज की सोच को भी चुनौती दे रही हूं। जब मैंने परिणाम देखा, तो मेरी आंखों में आंसू थे — यह आंसू संतोष के थे, संघर्ष की जीत के थे।
नवीन सिंह: वाकई यह किसी भी युवा के लिए एक प्रेरणा है। इतनी बड़ी शारीरिक चुनौती के बीच आपने इस कठिन परीक्षा को पास किया, वो भी MA के प्रथम सेमेस्टर में। क्या आप बता सकती हैं कि किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?
निकेता: बिल्कुल। मेरी विकलांगता मेरे हर कदम पर एक चुनौती लेकर आती है — शारीरिक थकान, चलने-फिरने की परेशानी, बैठकर लंबे समय तक पढ़ पाना आसान नहीं था। कई बार शारीरिक दर्द के कारण नींद नहीं आती थी, कई बार आत्मविश्वास डगमगाने लगता था। लेकिन हर बार खुद को यही कहती थी – "अगर रुक गई, तो हार जाऊंगी।"
नवीन सिंह: यह कहना ही आपकी मानसिक शक्ति को दर्शाता है। आपने कितने घंटे पढ़ाई की? और मानसिक रूप से खुद को कैसे तैयार रखा?
निकेता: मैंने प्रतिदिन 6 से 8 घंटे नियमित रूप से पढ़ाई की। लेकिन जब शरीर साथ नहीं देता, तो पढ़ाई का समय उतना महत्वपूर्ण नहीं रह जाता जितना ‘फोकस’। मैंने पढ़ाई को बोझ नहीं, साधना की तरह लिया। ध्यान और सकारात्मक विचारों से खुद को मानसिक रूप से तैयार रखा।
नवीन सिंह: कई छात्र-छात्राएं वर्षों तक प्रयास करते हैं, लेकिन सफलता नहीं मिलती, जबकि आपने पहली बार में ही यह कर दिखाया। इसके पीछे किसका सबसे बड़ा योगदान मानती हैं?
निकेता: सबसे पहले मैं अपने माता-पिता का धन्यवाद करना चाहती हूं। उन्होंने मेरी शारीरिक स्थिति को कभी कमजोरी नहीं बनने दिया। मेरी माँ ने हर छोटी ज़रूरत का ध्यान रखा और मेरे पिता ने मुझे कभी "अलग" महसूस नहीं होने दिया। इसके अलावा मेरे शिक्षक और करीबी मित्रों ने मुझे हमेशा प्रेरित किया। और सबसे अहम — मेरी खुद की जिद और विश्वास।
नवीन सिंह: आप जैसे युवाओं की जिद ही समाज की तस्वीर बदल सकती है। अब आगे की क्या योजना है?
निकेता: मेरी योजना शोध कार्य में आगे बढ़ने की है। मैं शिक्षा के क्षेत्र में काम करना चाहती हूं, विशेष रूप से दिव्यांग बच्चों के लिए। मैं चाहती हूं कि जो संघर्ष मैंने किया है, वो अगली पीढ़ी को न करना पड़े। मैं एक ऐसी शिक्षिका बनना चाहती हूं जो बच्चों को सिर्फ किताबें नहीं, जीवन भी सिखा सके।
नवीन सिंह: अंत में, क्या आप कोई संदेश देना चाहेंगी उन छात्रों को जो परेशानियों से घबराकर पीछे हट जाते हैं?
निकेता: मैं बस यही कहना चाहूंगी — अगर शरीर साथ नहीं दे रहा, तो मन को मत गिरने दो। परिस्थिति चाहे जैसी हो, आत्मबल सबसे बड़ा सहारा होता है। सोशल मीडिया और दिखावे की दुनिया से बचें, लक्ष्य तय करें और डटे रहें। हार तभी होती है जब आप खुद को छोड़ देते हैं। कोशिश करें, फिर करें — जब तक सफलता झुककर सलाम न कर दे।
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नवीन सिंह: बहुत सुंदर और प्रेरक विचार। निकेता, आपका यह साक्षात्कार न केवल विद्यार्थियों के लिए बल्कि हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है जो मुश्किलों से लड़ रहा है। आपके उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं!
निकेता: धन्यवाद नवीन जी। मुझे आशा है कि मेरी कहानी किसी एक को भी प्रेरित कर सके तो मेरी मेहनत सफल हो जाएगी।
नवीन सिंह: निकेता जी आपने समय दिया, आप हमारे समाज के लिए एक मिसाल हैं, आशा है आपको जरूर सफलता मिलेगी धन्यवाद।
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